सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा फैसला लिया है और उसने अंतरजातीय विवाह की राशि बढाकर पांच लाख कर दी है यह राशि पहले ढाई लाख थी किन्तु प्रचार में नही थी। इससे एक ओर जहां जातिवाद खत्म होगा वहीं उन लोगो की संख्या भी बढेगी जो राष्टहित में इस काम को करना चाहते है।ऐसे लोगों को दिखाने व सार्वजनिक करने के साथ साथ इस राशि के प्रचार को मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता है ताकि इस सोच को बल मिल सके, जो अब तक नही हुआ।
अब इस मामले में गौर किया जाय तो प्रथम दृष्या यह कहा जा सकता है कि यह एक अच्छा कदम है क्योंकि भारतीय राजनीति पंथ व जाति पर आधारित है और विकास से किसी का दूर दूर तक नाता नही रहा। यानि जितना विकास होना चाहिये था वह नही हुआ और उल्टा उन सुविधाओं में इजाफा हुआ जो कि विकास के पहिये को रोकती थी।नेता अपनी जाति की दुहाई देकर मंत्री बन जाते थे और बाद में वह अपने परिवार को स्थायित्व देने का प्रयास करते थे। यहां एक बात और गौर करने वाली है कि इन नेताओं के यहां जो जातिगत आधार पर मंत्री बनते है जाति नाम की कोई चीज नही है। पंथ नाम की कोई चीज नही है वह दूसरी जाति व पंथ में विश्वास रखते थे और रख रहें है, न ही विकास की बाते होती है और न ही जाति का कोई काम, बातें होती है तो सिर्फ अपने विकास की।लालू प्रसाद , राहुल गांधी , मुलायम सिंह यादव आदि इसके उदाहरण हो सकते है।
अब यदि सरकार पांच लाख रूपया अंतरजातीय विवाह करने वालों को देती है, तो ऐसे में जातिबंधन तो टूटता ही है साथ ही इनका समाज भी टूटता है । इनके द्वारा पैदा किये बच्चे जातीय समीकरण के न होकर भारतीय होगे, यह भी एक कटु सत्य है कि वह सिर्फ भारत के बारे में सोचेगें और अपने बारे में सोचेगें । वह तरक्की करेगा तो देश खुद आगे निकल जायेगा। सरकार को इस दिशा में एक कदम और आगे बढाते हुए दूसरे पंथ में शादी करने पर कुछ और राशि बढाकर प्रोत्साहित करना चाहिये। इससे धार्मिक एकता भी टूटेगी। धर्मो के बारे में जो अनावश्यक धारणायें है वह टूटेगी, लोग एक दूसरे के धर्मो के बारे में जानेगें और स्वविवेक से निर्णय ले सकेगें कि किस पंथ को मानना है या किसको नही या दोनों में आस्था रखनी है। कम से कम बच्चों में एक से हटकर दो धर्मो के बारे में अपनी बात रखने का अधिकार रहेगा। सामाजिक समानता आयेगी और विकास का पहिया निर्वाध चलता रहेगा। जिस तरह से लोग अब अछूतों का खाना खाने लगे है उसी तरह से शादियों को भी अपनाने लगेंगे यही गांधी जी को अपृश्यता को लेकर दी गयी सबसे बडी भेंट होगी जो देश को जातिगत, पंथ व अपृश्यता को लेकर होगी।
अब सवाल यह उठता है कि जिस देश में गोत्र विवाद को लेकर खाप पंचायत हत्या जैसे संगीन अपराध कर सकती है , पंथ के नाम पर मुल्ला व पंडित बबाल कर सकते है । जातिगत आधार पर विवाह को लेकर तनाव बना रहता हो उस जगह यह कानून या विचार कितना मायने रखता है। इसी समाज में वालीवुड , नेता व अधिकारी इस विचारघारा को आगे बढा रहें है और लाभ उठा रहें है।तो इस पर विवाद क्यों ? विवाद की जड सरकारी तंत्र में है जहां पुरूष प्रधान सोच प्रमुख है। दलित महिला यदि अग्रणी जाति के युवक से शादी कर ले तो वह अग्रणी बन जायेगी और सरकार के तरफ से मिलने वाली सभी लाभ खत्म हो जायेगें लेकिन यदि अग्रणी युवक किसी दलित या पिछडी महिला से शादी कर ले तो उसे कोई अधिकार नही मिलता क्यों कि महिला समाज पर हमारा कानून आधारित नही है। दरअसल ऐसे लोगों के लिये ही सरकारी सुविधा होनी चाहिये जो अंर्तजातीय विवाह करे और देश को नयी शक्ल प्रदान करें। आगे ले जायें।जिस बारे में किसी सरकार ने नहीं सोचा , दलितो को आरक्षण देने के लाभ से अधिक होगा , वह एक पूंजीवादी व्यवस्था का हिस्सा है लेकिन यदि अंतरजातीय विवाह पर दिया गया तो दलितों व पिछडों को अग्रणों में धुलने मिलने का मौका मिलेगा और देश भी आगे जायेगा।सबसे बडी बात दलित व पिछडो का उत्थान भी होगा। अगडे इस काम को इसलिये करेगें क्योंकि आर्थिक स्थित उनकी सही नही है और इससे वह सही हो जायेगी .
फिलहाल केन्द्र सरकार के जो भी फैसले है। उससे देश एक हो रहा है, चाहे वह व्यापार के लिये जीएसटी हो या फिर समान नागरिक संहिता या तीन तलाक या देश की सुरक्षा पर लिया गया निर्णय , सभी लाजबाब है और ऐसा लगता है कि आने वाले समय में ऐसा ही चलता रहा तो उन लोगों को दिक्कत हो सकती है जो अब तक अपनी चलाते रहें है और देश को बांटते रहें है। अर्तजातीय विवाह के लिये अगर लोग आगे आये तो आने वाला समय भारत का होगा इसमें कोई दोराय नही है वहीं देश व समाज भी एक होगा । वह दुकाने बंद होगी जो पंथ व जाति के नाम पर लोगों को बांटने का काम करती रहती है। नेताओं को भी नया मुद्दा तलाशना होगा तब देश के प्रगति की बात होगी और वही निर्णय करेगा कि कौन सरकार अच्छी है कौन बुरी ।