पिछले कुछ दिनों से सेना द्वारा पाक की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किये जाने को लेकर काफी मतभेद रहा , प्रमुख विपक्षी दल ने इसका सबूत मांगा तो उसके बडे़ नेता ने इसे खून की दलाली का जामा पहना दिया । एक ओर वह कहते रहे कि वह सेना की इज्जत करते है और उसके लिये जान भी दे सकते है लेकिन सबूत मांगकर दोनों बातों को झुठा साबित कर दिया। यह वही लोग है जो देश की संसद में बैठकर पाकिस्तान के पक्ष को भारत सरकार के सामने रखते हैं, पूंछते हैं कि आप सार्क सम्मेलन में क्यों नही गये वहां जाना चाहिये था ।
आश्चर्य की बात यह है कि खून की दलाली की बात वो लोग करते है जिनके पूरा खानदान इस तरह की दलाली करता रहा है। भारत पाक बंटवारा कांग्रेसी जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार किया था और करोडो लोेग अपनी जान गंवा बैठे। कश्मीर में सुन्नी मुसलमानों को ठहराने का मामला कांग्रेस का था , वहां कश्मीरियों का कत्लेआम हुआ किसने करवाया कांग्रेस ने , पंजाब में हालात खराब हुए किसने करवाया कांग्रेसी इंदिरा गांधी ने और हिन्दू मुस्लिम के नाम पर जो दंगे हुए वह किसने करवाये कांग्रेस ने , दलाली तो उनके डीएनए में है जवाहर लाल ने बंटवारा में की , इंदिरा गांधी ने पंजाबियों को मरवाकर की उसके बाद राजीव गांधी ने तमिलों को श्रीलंका में मरवाया इतना प्रमाण काफी होना चाहिये लेकिन इस पर कभी मीडिया में बात नही होती। अब गुजरात दंगे की बात करते है एहसान जाफरी कौन थे इस बात को कम लोग जानते होगें वह कांग्रेसी थे जो दंगे में मारे गये। क्यों मारे गये इस पर बहस होनी चाहिये लेकिन अपने कार्यकाल में कांग्रेस ने कभी बात को आगे नही आने दिया।
कौन से नेता हैं जिनके तार दिल्ली में बैठकर कश्मीर व इस्लामाबाद से जुडे हैं उन्हें बेनकाब होना चाहिये।उनको मिलने वाले फंड की जांच होनी चाहिये और यह देखा जाना चाहिये उसमें किसी मुस्लिम देश का नाम तो नही है।उन एनजीओ की जांच होनी चाहिये जिसका धन विदेशों से आ रहा है कौन भेज रहा है , उस देश से स्पष्टीकरण होना चाहिये। बोलने की आजादी का मतलब यह नही कि सार्वजनिक मंच से देश के खिलाफ बोले।जहर उगलें इस पर प्रतिबंध लगना चाहिये और देशदा्रेह का मुकदमा भी होना चाहिये। इसके साथ साथ उस पर विचार करने की जरूरत है जो फंड के नाम पर कश्मीर को एलाट हो रहा है उसका प्रयोग कहां कहां हो रहा है। सबसे पहली बात यह कि जब सेंटर के अधीन में कश्मीर नही आता , वहां उसके कानून व नियम चलायमान नही होते तो कोई अनुबंध कर रखा कि वहां हम बजट देते रहेगें और वह आतंकवादी को बढावा देते रहेगें। पूरे कश्मीर का बजट 64हजार करोड का है जबकि इसके चौथाई लोग भी वहां नही रहते।मात्र सवा करोड आदमी के लिये इतने बजट की जरूरत क्या है।इसे रोकने के उपाय करना चाहिये।
दूसरी बात यह कि आठ हजार करोड रूपये शिक्षा के लिये दिये जाते है जबकि वहां एक यूनिवर्सिटी है और दिल्ली में जहां 27 यूनिवर्सिटी है उसका बजट उसका आधा भी नही है किसलिये इस पर विचार होना चाहिये। सुरक्षा के नाम पर क्यों खर्च हो रहा है वहां की पुलिस उनकी अपनी है वह उनकी सुरक्षा बेहतर तरीके से कर सकती है उस पर खर्च क्यों ? वहां के नेताओं व सरकार को उनकी सुरक्षा देनी चाहिये, केन्द्र क्यों परेशान है इस पर विचार करना चाहिये।सब्सिडी पर विचार करना चाहिये , वहां आदमी प्रापर्टी नही बना सकता लेकिन अगर वहां का आदमी देश के किसी अन्य हिस्से में प्रापर्टी बनाना चाहे तो उसे छूट है क्यों ? एैसे तमाम सवाल है जिसका जबाब नयी सरकार को खोजना है और देश की जनता को बताना है।यह भी बताना है कि भारत को पाक से संबंध क्यांे रखना चाहिये , हर स्तर पर खत्म क्यों नही करना चाहिये। देश जानना चाहता है कि अब तक की सरकारों ने क्या किया और आप क्या कर रहें हो , सिर्फ सर्जिकल स्टाइक से काम नही चलेगा अपना पीओके वापस लाने के लिये उपाय करने होगें और यूएन में बताना होना कि हिन्दूओं पर पाक में किस तरह का जुल्म हो रहा है।
फिलहाल देश को जरूरत है एक एैसे तंत्र की जो कि जवाहर लाल नेहरू समेत तमाम नेताओं पर सार्वजनिक मंच से बहस कराये कि उन्होने जो किया वह सही था या गलत । अगर सही था तो चलायमान रखा जाय और अगर गलत था तो उसे तत्काल सुधारा जाय। ताकि देश खुशहाल हो सके। नयी सरकार से देश को कई बडी उम्मीदें है और यदि यह कायम रहा तो आने वाला समय देश का अपना होगा जो सुख व समृद्धि लेकर आयेगा।
सौ प्रतिशित सही कहा आपने….