दीपावली जन-मन को भी प्रकाशित करे……

diwaliदीपावली भारत वर्ष के मनाये जाने वाले त्यौहारों में सबसे बड़ा त्यौहार है। न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी इसे अत्यन्त उत्साह से मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति के मूल का वहन करने वाला यह त्यौहार मात्र प्रकाश पर्व ही नहीं बल्कि स्वच्छता की स्वीकार्यता को भी प्रश्रय देता है। आज विश्व में जो उथल-पुथल हो रही है, संघर्षों के नित नये तांडव प्रारम्भ होते हैं उसमें उस भावना से इस त्यौहार को मना पाना सम्भव नहीं जिस भावना की अपेक्षा इस त्यौहार के लिए होती है। हमारे देश की वीर जवानों की जिस प्रकार से हत्याएं की गयीं उसमें इस पर्व को हम उस भाव से तो नहीं मना पायेंगे किन्तु अपने उन शहीदों को नमन करते हुए उनके नाम का एक दीप अवश्य प्रज्वलित करेंगे।

हमारे प्रधानमन्त्री ने देश के वीरों में जिस उत्साह का संचार किया है वह भी अद्वितीय रहा। हमारी सेना के नौजवानों को अपने देश और देशवासियों के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में कोई संकोच नहीं। एक ओर हमारे वीर आतंकवाद और आतंकवादियों का सीमा पर सम्यक् प्रत्युत्तर दे रहे हैं और दूसरी ओर हमारे प्रधानमन्त्री अपनी अद्भुत कूटनीति से शत्रुओं को विश्व बिरादरी में पृथक करते जा रहे हैं। इसमें सन्देह नहीं कि हमारे देशवासियों में भी स्वाभिमान का भाव प्रबलतर हुआ है। विदेशों में रहने वाले हमारे देशवासियों को अपने देश पर गर्व हो रहा है। विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका जो हमारे प्रधानमन्त्री को पूर्व में वीजा देने में गुरेज करता था आज वहाँ के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी उन्हीं के नाम का आश्रय लेकर चुनाव में अपनी विजय के स्वप्न देख रहे हैं, देश के लिए इससे बड़ी प्रतिष्ठा का विषय और क्या हो सकता है?

दीपावली का यह प्रकाश पर्व हम उस परिवेश में मनाने जा रहे हैं जब कि देश की सीमा पर शत्रु अकारण हम पर निरन्तर आग्नेयास्त्रों की बौछार कर रहा है। उनका सम्यक प्रत्युत्तर देने में हमारे वीरों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ रही है। हमारी सुरक्षा के लिए हमारे वीर सीमा की विषम परिस्थितियों में उनके मंसूबों को नाकाम कर रहे हैं। शत्रु देश के सैनिक अपने तैयार किये गये आतंकवादियों के साथ छद्मयुद्ध का बिगुल फूंक रहे हैं। हमारे कश्मीरी भाइयों का जीवन दुष्कर हो गया है। निरीह जनता हमारे शत्रु देश द्वारा प्रायोजित आतंक का आघात सह रही है। किन्तु जो मानवता के शत्रु हैं वे मानव जीवन का मूल्य नहीं समझ सकते। उन्हें वही भाषा प्रिय है जिस भाषा में हमारे सैनिक उन्हें जवाब दे रहे हैं।

आज स्वयं हमारे देश में कुटिल राजनीति अपने चरम पर है। इस सरकार की दृढ़ संकल्प शक्ति, देश को प्रगति की राह पर ले जाने का साहस और विश्व पटल पर देश को शीर्ष पर प्रतिष्ठित करने की गति को देखकर हमारे ही देश के कतिपय राजनीतिज्ञ अपना राजनीतिक भविष्य अधर में देख रहे हैं जिसके कारण बौखलाहट में अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं और देश की सुरक्षा में तत्पर सैनिकों के मनोबल को निम्नतर करने का प्रयास कर रहे हैं। कहीं जातिवाद को लेकर, कहीं छात्रों को बरगलाकर, कहीं धर्म निरपेक्षता के नाम पर साम्प्रदायिकता को प्रश्रय देकर, कहीं आतंकवादियों का पक्ष लेकर देश को अशान्त करने का प्रयास कर रहे हैं। स्वयं की अस्मिता बनाये रखने के लिए देश को वे अन्धकूप में डालने का प्रयास कर रहे हैं जो कि अत्यन्त निन्दनीय है।

हमारा देश प्रगति के पथ पर बढ़ चुका है और अब इसमें किसी भी प्रकार की बाधा डालने का प्रयास इन बढ़े हुए कदमों को पीछे करने में सक्षम नहीं हो सकेगा। इस दीपावली पर हमें यह संकल्प लेना होगा कि अब हम ऐसी दीपमालाओं को प्रज्वलित करेंगे जो धर्म में व्याप्त कुरीतियों, मानव हृदय के अन्धकार, बुद्धि के विकार, राजनीतिक ईर्ष्या-द्वेष, निरर्थक टकराव, भय, तृष्णा और अन्यान्य मनोविकार रूपी अन्धकार को नष्ट करे और देश में शुचिता, सौहार्द्र, समन्वय, देश के प्रति अनुराग और सैनिकों के प्रति निष्ठा की भावना का संचार करे। पवित्र मन से जलाया गया हमारा एक लघु दीप गहनतम अन्धकार को तिरोहित करने में सक्षम है। आइए हम उन घरों में भी एक-एक दीप जलायें जिनके घरों के दीप त्यौहार आने से पूर्व ही बुझ चुके हैं ताकि उन्हें अपनों को खो देने की पीड़ा को कुछ कम कर सकें।

कवि गोपालदास ‘नीरज’ के शब्दों का उल्लेख करना यहाँ मेरे लिए प्रासंगिक होगा :

            सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,

            कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,

            मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,

            कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,

            चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही,

            भले ही दिवाली यहां रोज आये।

            जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना

            अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये।

यह दीपावली मेरे समस्त देशवासियों को सुख, शान्ति और समृद्धि प्रदान करे।

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