कांग्रेस नीत सरकार को अपदस्थ कर सत्ता में बहुमत के साथ आई भाजपा सरकार ने अपने शासन के दो वर्ष पूरे कर लिए। इन दो वर्षों में सरकार ने विपक्ष की अनेक प्रताड़नाओं और मिथ्यारोपों का सफलतापूर्वक सामना किया। सरकार के सम्मुख विपक्ष कभी भी विपक्ष की भूमिका में नहीं रहा। भाजपा के सहयोगी दलों को छोड़कर लगभग समस्त विपक्ष स्वस्थ राजनीति का पूरी तरह परित्याग कर शत्रुभाव में सम्मुख खड़ा दिखाई दिया। किन्तु सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति, नैतिक दायित्व और कर्तव्यपालन की निष्ठा के सम्मुख उसे नतमस्तक होना पड़ा। संसद में विपक्ष के अवांछित गतिरोध को सम्पूर्ण देश देख चुका है। जब भाजपा सत्ता में आई थी तो उस समय देश की अर्थव्यवस्था संघर्षरत थी। नींव खोखली हो रही थी किन्तु प्रदर्शन के लिए भव्य महल तैयार थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थिति याचक जैसी थी। काले धन का व्यापार बाजार को समृद्ध किये हुए था। भ्रष्टाचार करने वाले स्वच्छन्द भाव से अपने कर्म में रत थे। विरासत में मिली ऐसी व्यवस्थाओं को पटरी पर लाना एक दुःस्वप्न सा प्रतीत हो रहा था। जनता त्रस्त थी अतः उसने खुले मन से भाजपा और नरेन्द्र मोदी के प्रति अपनी आस्था उजागर की। पूर्ण बहुमत मिला और सरकार ने भी जनता की अपेक्षाओं पर शत-प्रतिशत खरा उतरने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
आज विश्व के विकसित देश भी मन्दी के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। किन्तु सरकार की दूरदर्शिता और सधे तथा अनुभवी मन्त्रिमण्डल ने भारत पर इस मन्दी को प्रभावी नहीं होने दिया। जिसका परिणाम यह है कि वैश्विक मन्दी के दौर में भी भारत की आर्थिक विकास दर 7.6 से ऊपर बनी हुई है। मन्दी के इतर देश की प्रतिकूल परिस्थितियों (बाढ़, सूखा) के बीच भी औसत महंगाई दर 9.46% से घटकर 4.91% रह गयी है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 40 अरब डालर तक पहुँच गया। ऐसा मात्र कल्पना के आधार पर नहीं बल्कि कार्यशैली और दृढ़ संकल्पशक्ति के कारण ही सम्भव हो पाया है। मात्र दो वर्षों में 20 से अधिक जनकल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन स्वयं इस बात का परिचायक है कि यदि हृदय में जनसेवा की वास्तविक भावना है तो कार्य कोई भी असम्भव या दुरूह नहीं होता है।
प्रधानमन्त्री द्वारा इस अवधि में 40 से अधिक विदेशी दौरे करना मनोरंजन के दृष्टिकोण से नहीं था। सभी यात्राएं आधिकारिक और उद्देश्यपूर्ण थीं। प्रत्येक दौरे में विदेशी राष्ट्रों से सम्बन्धों को नये आयाम मिले। बांग्लादेश सीमा समझौता इसी शासन की देन है। भारत द्वारा ईरान में बन्दरगाह का विकास करना सरकार की कूटनीतिक विजय है जिसे शायद विपक्ष किसी अन्य ढंग से परिभाषित करे। अपने पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों की नई इबारतें लिखी गयीं जिसमें छोटा या बड़ा कोई भी देश अपने को उपेक्षित नहीं महसूस कर सकता। पाकिस्तान और चीन को अपवाद मान लें तो शेष अन्य देशों के साथ भारत बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थान को लेकर अब गम्भीरता दिखाई जाती है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी जैसे विकसित देशों में भारत की तेजी से विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था की धमक पहुँच चुकी है।
इन दो वर्षों में देश का आधार और दिशा तैयार की जा चुकी है। भारत जैसे विशाल देश को पटरी पर लाने के लिए 65 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। यदि इन दो वर्षों की तुलना किसी भी अन्य शासनकाल से की जाये तो इस दर से आज भारत विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होता। यह कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा कि सरकार ने अपने सभी वादे पूरे कर लिए किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि सरकार अपने सभी वादे समय रहते पूरे कर लेगी। दो वर्ष का कार्यकाल तुलनात्मक दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखता किन्तु भाजपा सरकार की निष्ठा ने वर्ष के महत्त्व को महत्त्वपूर्ण बना दिया। जिस तत्परता से कार्य सम्पन्न किये जा रहे हैं उसके सियासी मायने निकाले जा सकते हैं किन्तु यह भाजपा के लिए नैतिक दायित्व है जिसे पूरा करना उसके लिए जनता को कृतज्ञ करना नहीं बल्कि अपने दायित्व का निर्वहन करना है। इसीलिए भाजपा का प्रधानमन्त्री लालकिले की प्राचीर से स्वयं को प्रधानमन्त्री की जगह प्रधानसेवक घोषित करता है।
देश की जनता ने देखा कि संसद में अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण जीएसटी तथा भूमि अधिग्रहण बिलों को विपक्ष ने अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण पारित नहीं होने दिया। क्योंकि इससे जनता को महंगाई से मुक्ति मिलने की सम्भावना थी और देश में अवसंरचनात्मक प्रगति को गति मिल जाती। इसका श्रेय वर्तमान सरकार को न मिल पाये मात्र जनहित के इन बिलों की अनदेखी कर विपक्ष ने संसद के सत्रों को अनावश्यक विषयों की बलि चढ़ा दिया। किन्तु सरकार का मनोबल इससे बढ़ा ही है क्योंकि उसका विश्वास जनता में है न कि संसद में अपने निहित स्वार्थ सिद्ध करने वाले नेताओं पर। देश की जनता आने वाले समय में विपक्ष के इस कृत्य का सम्यक प्रत्युत्तर देगी।