आस्था से आचमन और श्रद्धा की डुबकी

यमुना में छठी मैया के पूजन के लिए जन सैलाब यमुना मैया के आंचल में दिखता है ।प्रदूषण के सफेद झागों की शक्ति यमुना में आस्था हाथ जोड़े खड़ी दिखती है। हम सभी यह कष्टकारी नजर देख रहे हैं लेकिन इसके प्रति संवेदनशील नहीं है अगर होते तो पूजा सामग्री व अन्य कचरा यमुना में नहीं डाला जाता। हर साल गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा ,दीपावली पर मूर्ति पूजन कर विसर्जन तो कर देते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि प्लास्टर ऑफ पेरिस रासायनिक तत्वों से बनी मूर्तियां यमुना के लिए कितनी कष्टकारी होगी।

यमुना की रक्षा जरूरी है और रक्षक हमारी आस्था, हमारा विश्वास और हमारा समर्पण ही हो सकता है। इसी तरह सरकारी योजनाएं यमुना के चल बहन की कल्पनाओं में डुबकी तो खूब लगती है पर वह कागजों पर सुखी रह जाती है ।उन्हें पूरा करने की रफ्तार बहुत ही सोचता है जिम्मेदार भी ध्यान नहीं देते हैं पर वह मनाने के बाद हम पलट कर भी यमुना की तरफ नहीं देखे ,यह व्यवहार बहुत दुखकारी है। 

यह सही है कि दो-तीन दशक से यमुना को साफ करने के लिए किया जा रहे सरकारी प्रयास करोड़ों रुपए पानी में बह जाने के बावजूद अब तक पूरी तरह विफल रहे हैं लेकिन यह भी सही है की जमुना की सफाई को लेकर दिल्ली एनसीआर के लोगों के प्रयास किसी आंदोलन या जन अभियान का सुख स्वरूप लेकर नहीं छलके।अपने देश में ही ऐसे कई उदाहरण है जहां स्वयं के लोगों ने आगे जाकर नदी को साफ करने का बीड़ा उठाया और उसे साफ करके ही दम लिया उन्होंने सरकारों को कोसने के बजाय अपने पुरुषार्थ पर विश्वास किया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर सरकारों को खोजते हुए अपना भविष्य उनके हाथों में ही छोड़े रखना कहां तक उचित है। जन भागीदारी दिल्ली, एनसीआर में यमुना को साफ करने में कितनी लाभकारी साबित हो सकती है यह आगे आने वाला समय ही बताएगा।

दिल्ली में यमुना में प्रदूषण की स्थिति ऐसी है की राजधानी के प्रमुख स्थानों पर नदी में देव यानी डिसोल्व ऑक्सीजन की मात्रा ही नहीं है सभी जगह शून्य है ।इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम यमुना को मराणासन अवस्था में पहुंचा रहे हैं। जिम्मेदार सिर्फ सरकार ही नहीं, हम सब भी बराबर के भागीदार हैं क्योंकि भगीरथ प्रयास सभी योजनाओं पर नहीं फैलने बल्कि उनके लिए अधिवेशन और नैतिक कर्तव्यों का वहन करने की आवश्यकता होती है ।इसमें अभी हम दूसरों पर उंगली उठाने की अवस्था में है और चिंतन मरण करने को दूसरों की ओर देखते हैं ।

यूं तो राजधानी में यमुना का कुल क्षेत्र 54 किमी है लेकिन प्रदूषण 22 किमी है यह लगभग आधे हिस्से का प्रदूषण यमुना में समग्र रूप से हावी पड़ता है।

आंकड़ों पर गौर करें तो 80% शिवराज की हिस्सेदारी, 20% औद्योगिक और ठोस कचरा, 70% नजफगढ़ व सप्लीमेंट्री नाले से गिरने वाले कचरे की हिस्सेदारी ,

238 एनजीटी बगैर शोध के यमुना में गिरने वाला शिवराज और 738 एनजीटी दिल्ली में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाला शिवरा,136 एमजीडी सीवरेज और एसपी सौतन क्षमता में अंतर और 120 एमजीबी शोषण क्षमता की तुलना में प्रतिदिन कम शोध कुल मिलाकर 84% सरकारी योजनाओं से जमुना प्रभावित हो रही है।

यमुना नदी हमेशा ऐसी नहीं थी इसका एक बहुत उजाला पक्ष भी है कि कभी यमुना के दाहिने किनारे पर सुंदर घाट को मंदिर थे ।नजफगढ़ नाले से आगे गुरुद्वारा मजनू का टीला है जहां कभी गुरु नानक जी आया करते थे ।यही कारण है कि बाद में कई सिख गुरु भी यहां आए ,इसके आगे मौजूद घाट और अखाड़े दिल्ली की समय गतिविधियों के मुख्य केंद्र थे। यहां पर तैराकी भी सिखाई जाती थी। एक समय था जब जमुना लाल किला के निकट से हुआ कर गुजरती थी ।दलदली भूमि पर साइबेरियन सारस आया करते थे ।जहां नेताओं की समाधिया बनी है वह पूरा क्षेत्र नदी का बेसिन था ।वर्तमान में दिल्ली के पास अपना भूजल नाम मात्र बचा है ।लंबे समय से यमुना नदी ही दिल्ली के प्यास बुझाने का मुख्य स्रोत रही है। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

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