आरक्षण के नाम पर हिन्दूओं का बंटवारा कब तक ??

देश में आरक्षण की समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है और अब हर जाति आरक्षण की मांग कर रहा है । न मिलने पर दंगा फसाद हो रहा है और देश में एक अलग तरह का माहौल पैदा हो रहा है। जिससे देश को सामाजिक , आर्थिक व जनहानि उठानी पड रही है। आजादी के बाद से उपजी इस समस्या को दस साल तक के लिये उपजाया गया था लेकिन यह अब अमर बेल बनती जा रही है इतना ही नही नेताओं का जो हाल है वह इसे स्वर्ग की सीढी तक मान बैठे है । देश रहे या जाय इससे इन्हें कोई फर्क नही पडता । यह विचार धारा है जिसके कारण देश हजारो साल तक गुलाम रहा है और अब ऐसा लगता है कि अपने ही देश में हमे अपनों के मुद्दों को लेकर गुलाम जिन्दगी बिता रहें है।
वास्तव में आरक्षण है क्या ? यह वह प्रतिशोध है जो सर्वणों के व्यवहार के चलते उनसे लिया गया और आज दलित जो उस व्यवहार को याद करके उनके साथ कर रहें है वह उस कडी में नही आता।इससे देश केा काफी नुकसान हुआ है और देश की उन प्रतिभाओं को सम्मान नही दिया गया जो उसे लेकर आगे जा सकते थे।उनके दिया गया जो उनके आस पास भी नही ठहरते थे।यहां तक कि प्रमोशन आरक्षण देकर सर्वणों को जमींदोज करने का प्रयास किया गया। हैरत की बात यह है कि एक पद पर किसी दलित की भर्ती किसी भी अंक पर होती है उसी पद पर सवर्ण की भर्ती अस्सी फीसदी अंको पर हो जायेगी इस बात की गांरटी नही होती है लेकिन चंद वर्षो में दलित सबसे बडा अधिकारी बन जाता है और सवर्ण उसी पद पर बना रहता है । उसे उसके अधीन काम करना पडता है जो उसके साथ ज्वाइन करता है। हैरानी तब और बढ जाती है जब उसकी नौकरी भी उस आदमी की इच्छा पर निर्भर होती है।देश क्या इससे आगे जायेगा , हो सकता है आजादी के समय जरूरत रही हो लेकिन क्या हमेशा इसकी जरूरत है इस बात को लेकर सवर्ण नेता भी चिंतित नही है जबकि दलित नेता इसे अपनी जान से भी ज्यादा मानते है।
आरक्षण की जड़ में जाये तो स्पष्ट होे जायेगा कि अंग्रेजों के चाटुकार नेता जब सत्ता के भागी बने तो अंग्रेजों के गुण उनके भी आ गये । फुट डालो राज करो की नीति पर सफल राज किया और देश केा टुकडों में बांटा , हिन्दू को मुस्लिम से लड़ाया , ईसाइयों को बढाया। हिन्दू को हिन्दू से आरक्षण के नाम पर लड़ाया और राज किया ।राजीव गोस्वामी की तरह जिसने सर उठाया उसे उसी के आदमी से मरवा दिया यह उनके खास कामों में शामिल रहा ।देश वासियों को समझना चाहिये कि उनकी कोई भी नीति देश के प्रति नही थी । वह देश के वफादार थे इसमें भी दोमत है।उनका जीवन रहस्यों से भरा पडता है जिसे महिमा मंडित करना चाहा उसे कर दिया जिसे नही करना चाहते थे उसे रास्ते से हटा दिया। तमाम ऐसे काम जो देश के लिये नासूर बने वह काम किया।क्या इन नीतियों पर पुर्नविचार नही करना चाहिये।
फिलहाल जो इस समय हालात है उसे देखकर लगता है कि नये प्रधानमंत्री ने इस आरक्षण का हल खोज लिया है। काम भी शुरू कर दिया है लेकिन इस समय विचारकों की नजर नही पड़ पायी है।आने वाले सालों में आरक्षण की व्यवस्था जड़ से जमीदोंज होगी इस बात का विश्वास लोगों को होने लगा है क्यों कि वर्तमान समय में उच्च पदों पर वही बैठ पायेगें जिनके परिवार के लोग सरकारी नौकरी में होगें।कपिल सिब्बल के दिखाये मार्गपर चलकर शिक्षा इतनी महंगी होगी कि आम लोगों के लिये वह स्वप्न जैसा है।मध्यम वर्गीय परिवार के लिये कलर्क व सुपरवाइजर जैसे पद होगे क्यों इनकी शिक्षा इसी दायरे आती है। निचले स्तर पर हाईस्कूल व इंटर पास लोग आयेगें जो वर्कर का काम करेगें। कोई भी मानव संसाधन विकास मंत्री आये इस पैटर्न को बदलने का प्रयास नही करता बल्कि शिक्षा को और महंगी कर देेता है।इसलिये जब शिक्षा ही नही होगी तो आरक्षण व नौकरी कहां से मांगेगें।
आरक्षण का हल तभी संभव है जब नौकरी की वैकेंसी के निकलने पर उम्र का बंधन हो और इंटर चाहिये तो 18 साल , स्नातक चाहिये तो 22 साल , परास्नातक चाहिये तो 25 साल व डाक्टर व इंजीनियर के लिये 28 साल तय हो। सरकार ने इस पर मसौदा तैयार कर लेना चाहिये, जिससे आगे आने वाले समय में बेराजगार नही होगें उनका समायोजन होता जायेगा और जो पुराने बेरोजगार है उन्हें आनलाइन का काम सौपा जाए, जिससे उनके घरों की रोजी रोटी चल सके और आराम से रह सके , सरकार को अपने नुमाइंदों पर कम ही भरोसा है इसका मुख्य कारण उनका काम न करना है व रिश्वतखोरी को बढावा देना है। अब समय आ गया है कि आरक्षण के नाम पर तार्किक बहस कर उसके आस्तिव पर सभी पक्ष आने चाहिये ताकि देश को इस नासूर से छुटकारा मिल सके । आखिर आरक्षण के नाम पर हिन्दूओं का बंटवारा कब तक?

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