आतंक पर अंतिम जंग


लोकतंत्र के महापर्व यानि लोकसभा चुनावों की घोषणा के पूर्व ही पुलवामा में अत्यंत कायराना आतंकी हमले से देशवासियों की मनोदशा व राजनीतिक माहौल दोनों ही बुरी तरह बदल चुके हैं। देश में देशभक्ति का ज्वार उफान पर है और देशवासी अब आतंकियों व पाकिस्तान के खिलाफ आरपार की जंग के पक्ष में आ चुके हैं। जवाबी कार्यवाही के रूप में भारतीय वायुसेना ने पाक अधिकृत कश्मीर के बालकोट में आतंकी शिविरों पर किये बड़े हमले में सैंकड़ों आतंकियों को नेस्तनाबूद कर जंग का उद्घोष कर दिया है। पाकिस्तान जानता है कि प्रत्यक्ष युद्ध में वह भारत को नहीं हरा सकता, इसलिए उसने सन 71 की अपमानजनक हार के बाद गुरिल्ला युद्ध का सहारा ले रखा है और जब तब भारत में आंतरिक अशांति फैलाने वाले कार्य करता रहता है।

यह होना स्वाभाविक भी है। तिनके तिनके जोड़कर हर भारतीय ने विभाजन के दंश के बाद मिली आजादी के बाद पिछले 72 सालों में अनेक झंझावात झेलते हुए देश को आगे बढ़ाया है और आज जब देश के प्रत्येक गांव में विकास की लहर पैदा हुई है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम व काम सराहा जाने लगा है, ऐसे में हर हिंदुस्तानी को लगने लगा है कि अगर अगले कुछ वर्ष इसी तरह से देश की प्रगति होती रही तो हम विकसित देश की श्रेणी में पहुंच सकते हैं। इन इरादों व कार्यों के बीच कोई कट्टरपंथी, रूढि़वादी व विभाजनकारी सोच आतंक के सहारे देश को अस्थिर व दिशाहीन करने की कोशिश करे तो यह जनता बर्दाश्त नहीं करने वाली। इसीलिए पुलवामा की आतंकी घटना जिसमें हमारे अद्र्धसैनिक बलों के 42 जवान शहीद हुए, ने देश मे अभूतपूर्व उबाल पैदा कर दिया है जिसे देख सरकार, बुद्धिजीवी, पत्रकार व राजनीतिक दल सब हैरान हैं। पिछले 7-8 सालों में देश में अनेक आंदोलन हुए व बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ जिसमें जनता की सक्रिय भूमिका रही।   सोशल मीडिया के बढ़ते नेटवर्क ने लोगों को सूचनाओं की तुरंत पूर्ति के साथ ही विश्लेषण भी उपलब्ध कराया। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के काम अधिक तेजी व पारदर्शी तरीके से जनता तक पहुंचे। सरकार के अनेक फैसलों जैसे विमुद्रिकरण व जीएसटी, स्वच्छ भारत अभियान आदि ने हर नागरिक को प्रभावित किया व अब तक हाशिए पर पड़ा समाज देश की मुख्यधारा में आ गया और उसका देश से लगाव व जुड़ाव आशातीत रूप से बढ़ गया है।                             

 पिछले कुछ वर्षों से विशेषकर मोदी सरकार के आने के बाद कश्मीर घाटी के अलावा देशभर में दंगे, आतंकी व नक्सली हमले, बम विस्फोट आदि की घटनाएं बहुत कम हो गयी हैं। ऐसे में कश्मीर में जब तब होती आतंकी घटनाओं से देशवासी पहले से ही दुखी व आक्रोशित थे, जब बड़ा हमला हुआ तो सड़कों पर उतर गए। देश में यह आम राय बन गयी है कि पहले पाकिस्तान, आतंकी समस्या व कश्मीर का स्थायी समाधान किया जाए, इसके बाद बाकी काम किए जाएं। जनता के इस जज्बे ने सरकार व विपक्षी दलों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है और अब आतंकियों व पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी मुहिम की शुरुआत हो चुकी है। भारत सरकार बहुस्तरीय रणनीति पर कार्य कर रही है जैसे, कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को अलग थलग करना, आर्थिक रूप से उसको कमजोर करना व भौगोलिक संसाधनों जैसे जल आदि पर नियंत्रण करना, पाकिस्तान में आंतरिक अलगाववादी आंदोलनों को समर्थन, आतंकी गुटों पर अंतरराष्ट्रीय व पाक सरकार द्वारा प्रतिबंध व कार्यवाही करवाना, साथ ही आतंकियों के ठिकानों व प्रशिक्षण कैपों की रेकी कर उन पर बड़े हमले। सरकार ने यह भी ध्यान रखा है कि भारत एक पल भी न रुके और पाकिस्तान अभूतपूर्व मानसिक तनाव व दबाव में आ जाए और युद्ध की आशंका से भयग्रस्त हो अंतत: बिना लड़े ही घुटने टेक दे व आतंकवाद को समर्थन, फंडिंग व प्रशिक्षण देना सदा के लिए समाप्त कर दे। यह निश्चित रूप से कठिन है व इसके लिए भारत को शीघ्र ही पाकिस्तान पर सीमित मात्रा में ही सही मगर हमले की कार्यवाही करनी पड़ेगी।                                       

ऐसे में जब कि आम चुनावों की घोषणा किसी भी समय हो सकती है भारत सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती है। इसके बीच आतंकी शिविरों पर हमला किया जा चुका है, ऐसे में मोदी सरकार को व्यापक जनसमर्थन व भारी बहुमत मिलना तय है। इसीलिए विपक्षी दलों की स्थिति अजीबोगरीब हो गयी है। वे मोदी सरकार का समर्थन करते हैं तो भी उनकी राजनीतिक ताकत कम होती है और विरोध करते है तब भी। इससे बड़ी बात यह है कि आतंक के विरुद्ध कोई भी बड़ी कार्यवाही अगर भारत-पाक युद्ध में बदल गयी तो इसके परिणाम क्या होंगे यह कोई नहीं जानता। रक्षा विश्लेषक मानते हैं कि अंतत: भारत-पाक युद्ध में भारत ही जीतेगा किंतु दोनों पक्षों को बड़ा नुकसान होगा। बल्कि भारत को अधिक नुकसान होगा क्योंकि यह पाकिस्तान के मुकाबले बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है।

ऐसे में देश दुधारी तलवार पर है। इस्लामिक देश होने के नाते पाकिस्तान को अन्य मुस्लिम देशों से मदद व समर्थन मिलता ही रहेगा व कूटनीतिक लाभ के चक्कर में चीन भी उसके साथ खड़ा रहेगा। तब भारत पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से पूर्णत: अलग थलग नहीं कर पायेगा। ऐसे में भारत को पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए छोटी या बड़ी सैन्य कार्यवाही तो करनी ही पड़ेगी। निश्चित रूप से देश की जनता को भी बड़े बलिदान के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा व सरकार व सेना को भी इस प्रकार कार्यवाही या आक्रमण करना होगा कि पाकिस्तान की असली ताकत व फसाद की जड़ पाकिस्तानी सेना व आईएसआई को बुरी तरह कमजोर व बर्बाद किया जा सके।

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