भारतीय जनता पार्टी की विकासपरक नीति और जनता में सुरक्षा तथा संरक्षा को लेकर पूर्ववर्ती सरकार के प्रति अविश्वास ने असम में भारतीय जनता पार्टी के स्वागत में अपने द्वार खोल दिए। असम की जनता ने भाजपा की केन्द्र सरकार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को सुरक्षित करने की कठोर नीति ने भी असम में भाजपा नेतृत्व प्रति आस्था का प्रदर्शन करते हुए इतिहास रच दिया। बांग्लादेशी घुसपैठियों से त्रस्त असम की जनता को भाजपा सरकार से राहत की एक किरण दिखाई दी। गत अनेक दशकों से वहाँ के स्थानीय निवासी घुसपैठियों के कारण अल्पसंख्यक होते जा रहे थे और कांग्रेस की सत्तासीन सरकार ने सदैव उपेक्षित रखा। सरकार के प्रति उनका अविश्वास निरन्तर बढ़ता गया। भाजपा शासित जम्मू-कश्मीर में उग्रवादियों के प्रति सरकार की कठोर नीति और उग्रवादियों के होने वाले निरन्तर हमलों को जिस प्रकार वहाँ की सरकार कठोरता से विफल कर रही है, उससे असम की जनता का भाजपा सरकार में विश्वास जताना स्वाभाविक है।
असम की जनता की पीड़ा सहज और स्वाभाविक थी। असम ने देश को प्रधानमन्त्री दिया था। उसे यह आशा थी कि सम्भवतः देश का प्रधानमन्त्री होने के नाते ही सही, कांग्रेस नीत सरकार उसकी अन्य कोई सहायता करे या न करे, किन्तु बाहरी आक्रान्ताओं से सुरक्षा देने की पहल तो करेगी ही। प्रत्येक चुनाव में वह उसी आशा और विश्वास के साथ कांग्रेस को अपना समर्थन देती आ रही थी। किन्तु कांग्रेस हताशा और अवसाद की उस चरम स्थिति में पहुँच गयी कि उसे अपने ही शासित राज्यों के प्रति ध्यान देने का अवसर ही नहीं मिला। कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने की चिन्ता छोड़कर संघमुक्त भारत के स्वप्न में डूब गयी। इतना ही नहीं, वह भाजपा को पराजित करने की अपेक्षा में अपने चिर प्रतिद्वन्द्वी और प्रबल शत्रु वाम दलों के सम्मुख झुकने के लिए भी तत्पर हो गयी। पार्टी कोई भी हो, यदि वह अपने सिद्धान्तों और नीतियों को तिलांजिल देकर व्यक्तिगत द्वेष की तुष्टि के लिए समझौतावादी रवैया अपनायेगी तो उसका यही परिणाम होगा। भाजपा की कांग्रेस मुक्त भारत की संकल्पना में स्वयं कांग्रेस भी परोक्ष रूप से सहयोग दे रही है। द्वेष की पराकाष्ठा में तपती कांग्रेस ने भाजपा को पराजित करने के लिए अवसरवादी रवैया अपनाया था। यहाँ भी उसे अपने अस्तित्व की चिन्ता कम, भाजपा को हटाने की चिन्ता अधिक थी। अपने दूसरे अभियान में तो उसे अप्रत्यक्ष सफलता मिल गई किन्तु बिहार की सत्ता में उसे अपना स्थान ढूंढने में पूरा कार्यकाल समाप्त हो जायेगा। किसी नये राज्य में प्रवेश करना तो दूर, उसे वर्तमान कांग्रेस शासित राज्यों को बचा पाना भी दूभर होता जा रहा है। और वह दिन दूर नहीं दिखाई देता जब वह क्षेत्रीय दल की श्रेणी से भी वंचित न हो जाये।
भाजपा की नीतियों और सिद्धान्तों का कोई निहितार्थ नहीं है। यह सदैव पारदर्शी रही है। और इसी का परिणाम है कि देश की जनता अन्य पार्टियों के शासन की तुलना स्वयं कर रही है और अन्य पार्टियों की नीतियों में उसका विश्वास कम होता जा रहा है। जनता को कुछ समय तक ही दिग्भ्रमित किया जा सकता है, किन्तु धरातल पर जब उसे भाजपा की शैली का परिणाम दिखाई देता है तो भाजपा को उसे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता।
‘सबका साथ, सबका विकास’ का जो नारा लोकसभा चुनावों से प्रारम्भ हुआ था उसकी गति कहीं भी मन्थर नहीं हुई। सड़क, विद्युत, कृषि, परिवहन और स्वच्छता के क्षेत्र में इन दो वर्षों में जो उपलब्धि प्राप्त हुई, कांग्रेस के शासन काल में इसकी तुलना करना अब पूर्णतः अप्रासंगिक लगता है। अब भाजपा की तुलना भाजपा के अतिरिक्त किसी अन्य से करने की सम्भावना भी दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती।
पूर्वोत्तर में जहाँ भाजपा सरकार की आशा ही नहीं की जा सकती थी, वहाँ अब एक पूर्ण बहुमत की सरकार स्थापित हो चुकी है। वामदलों का तो नामो-निशान मिटने के कगार पर आ गया है। कांग्रेस-वामदल की युगल जोड़ी एक-एक करके आपस में ही अपनी जड़ों को समूल नष्ट करने में लिप्त हो गये हैं। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा ने कमल की पंखुड़ियाँ फैला दी हैं। केरल प्रदेश में भाजपा के जनाधार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। थोड़ा समय और लगेगा जब वहाँ की जनता वामदलों और कांग्रेस के सम्मोहन से मुक्त होगी और भाजपा की कार्यशैली के मूल को समझ पायेगी। आगाज तो हो चुका है, परिणति की प्रतीक्षा है।
अन्त में श्रेष्ठ संगठन प्रबन्धन और कुशल रणनीति के लिए अपने नीति निर्माताओं और संगठन के सम्पूर्ण कार्यकर्ताओं का अभिनन्दन करता हूँ और आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा को स्थापित करने का सफल प्रयास किया है और जनता में पार्टी के प्रति विश्वास को मुखर किया है।