सरकार देश में महिलाओं को सुरक्षित करने में लगी है
लेकिन महिलायें इसके प्रति कितनी जागरूक है इस बात का पता जब पुलिस का रिकार्ड
देखते है तो पता चलता है।मारपीट की घटनाओं में छेडछाड हुई , कपडे फाडे गये , यह बात
अब आम हो गयी है क्योंकि प्राथमिकी में अब यह सब दिखाने से उसका वजन बढ जाता है ऐसा
कुछ पुलिस वालो का मानना है । इसके प्रमाण भी मिल रहें है।कुछ दिनों पहले रेप की कोशिश
का मामला रोशन था लेकिन अब इसमें माल दिखता है यह बात जगजागिर है। आरोपी मुह मांगी
कीमत पुंलिस और वादी दोनों के लिये तैयार हो जाता है क्योंकि हर आदमी आशाराम बापू
और राम रहीम आज के युग में नही बनना चाहता। यह एक तरह से जजिया कर है जो पुलिस
अपने मुखबिरों द्वारा महिला तैयार कर आम लोगों पर लगवाती है और थाने का बजट चलाती
है। इस बात पर महिला विकास मंत्रालय संसद में चिंता व्यक्त कर चुका है ।
महिला विकास
मंत्रालय का कहना है जहां पचास फीसदी महिलाये काम करती है वहां उत्पीडन नही है
जहां कुछ प्रतिशत काम करती है वहां ज्यादा है । पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में 50ः से
ज्यादा नौकरीपेशा महिलाएं, पर
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का एक भी केस नहीं है आखिर क्यों ? बिहार व उत्तर प्रदेश में ही क्यों है सबसे ज्यादा
महिला उत्पीडन के केस इस मामले को लेकर अब सवाल उठने लाजमी हो गये है।कार्यस्थल पर
महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए 2013 में
बने कानून के तहत सबसे ज्यादा केस बिहार में दर्ज हुए।यह जानकारी पिछले दिनों
महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में दी।दिल्ली में कम है ,मुंबई में कम है लेकिन उत्तर प्रदेश व बिहार में
ज्यादा है । इसका मतलब इस कानून के साथ कहीं न कहीं छेडछाड की जा रही है, जो देशहित में नही है।
उन्होने कहा कि 2014 में देशभर में 57, 2015 में 119 और 2016 में 142 केस इस कानून के तहत दर्ज किए गए। 2015 में कुल 119 मामले
दर्ज हुए। इनमें सबसे ज्यादा 36 मामले
दिल्ली में दर्ज हुए। इसी बीच, नागरिक
उड्डयन राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी उड़ान के दौरान हुए उत्पीड़न के मामलों
का ब्योरा रखा। बताया कि तीन साल में (2014-2016) एयरलाइन
कंपनियों में महिला क्रू मेंबर्स के साथ छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार के 15 मामले दर्ज किए गए। इनमें 10 मामले एयर इंडिया, 2 इंडिगो, 2 विस्तारा और एक मामला जेट एयरवेज से संबंधित है।
इस पर कई सवाल उठ
सकते है जैसे कि पहले आरोप लगता था कि सहकर्मी ने उत्पीडन किया, कई साल तक शादी का झांसा देकर रेप करता रहा। घर में
बुलाकर दोस्तों के साथ रेप किया। बाद में पता चला कि महिलायें इसका इस्तेमाल कर
सामने वाले को ब्लैकमेल करती थी । यह मामला कम हुआ और दिल्ली व मुंबई शांत हुई ।
फिर सरकार केा लगा कि छेडछाड होती है महिलाओं के लिये कानून बना दिया । किन्तु
जहां मारपीट हुई ,खून निकला , दोनों
वादी व प्रतिवादी है कई सालों से मुकदमें चल रहें है वहां छेडछाड का मामला बनता है
क्या यह बात न्यायालय व वकील दोनों की समझ से परे है। यह कानून किस लिये बना था
इसका मौलिक ज्ञान बिहार व उत्तर प्रदेश की पुलिस को नही है । इसलिये हर मामले में
इस धारा को डालकर धन उगाही का काम किया जा रहा हैं। औरतों ने भी आत्मरक्षा के लिये
न प्रयोग कर धनउगाही का मामला बना रखा है ऐसे 164 का
बयान मजिस्टेट के सामने देती है कि लगता है सही में उसके साथ गलत हुआ है।
इससे भी बडी बात यह
है कि इस कानून से बचा कैेसे जाय। पुलिस जब प्राथमिकी दर्ज करे तो सबसे पहले अपने
पडोसियों से या आसपास के लोगों से एफीडेविड लेकर सीओ के पास में जाये और उसे कापी
दे । छायाप्रति अपने पास जरूर रखें। कोर्ट मे देने के काम आयेगा। वैसे अधिकतर
मामले में पुलिस वसूली करने के बाद फाइनल रिपोर्ट
लगा देती है क्योंकि इस घारा से उसका मतलब लोगों को न्याय के लिये प्रेरित करना
नही बल्कि धन उगाही करना ही था। यह उसका अपना बचाव होता है जिसे आप गलती करने वाले
के लिये करते हो।
वास्तव में देखा जाय
तो सहमति और उगाही दो अलग अलग चीजें पर जिस पर पुलिस का ध्यान केन्द्रित होना
चाहिये। पास्को कानून जब आया था , तब हर
मामले में जिनमें महिला का नाम होता था उसमें उसे समायोजित कराने का प्रयास किया
जाता था। लेकिन ऐसे मामले न्यायालय में टिक नही पाये । पुलिस उत्पीडन जरूर हुआ
लेकिन जो न्यायालय की शरण में गये सभी बेदाग बरी हुए। क्योंकि धनउगाही के लिये
लिखे गये मामले न्यायालय में चले गये किन्तु सवाल जबाब में प्राथमिकी काम नही आये
। लोग बदनामी से डरते है लेकिन औरतें नही , वह
परिवार के कहने में एफआईआर लिखा जरूर देती है लेकिन बाद में फंस जाती हैं। ऐसा
क्यों होता है यह बात उनकी समझ में नही आता । जबकि सही यह है कि वह बहू है बेटी
नही , यह परिवार की धारणा होती है जिसका वह षिकार हो जाती
हैं।
सरकार को चाहिये कि
जिन मामलों में नतीजा महिला के खिलाफ आया है उसमें महिलाओं पर भी निर्णय ले ताकि
इस कानून की परख हो सकें । अभी तक जो भी इस कानून केा लेकर हो रहा है मैं नही कहता
कि गलत है लेकिन 90 फीसदी मामलों में पुलिस की भूमिका ठीक नही है और वह
पहले एफआईदर्ज करने के लिये पैसे लेती है और बाद में एफआर लगाने के बाद , वादी प्रतिवादी दोनों खुश होते है कि प्राथमिकी दर्ज
हो गयी और खत्म हो गयी। पुलिस का काम भी बन जाता है । क्या यह कानून की
वेश्यावृत्ति नही है जिसे पुलिस करा रही है।