अति आत्मविश्वास में अपने न छूटने पायें

चुनावी समर की तैयारियाँ अब अपने चरम की ओर अग्रसर हो रही हैं। पक्ष और प्रतिपक्ष के रणनीतिकार व्यूह निर्माण में संलग्न हैं। राजनीतिक दल अन्य ऐसे दलों से गठबन्धन की लालसा संजोए बैठे हैं जिनके आदर्शों और सिद्धान्तों में कभी किसी प्रकार का सामंजस्य नहीं रहा था। अपनी सम्पूर्ण शक्ति से मुखर होकर आलोचना करने वाले दल ऐसे दलों को मात्र इसलिए गले लगाने के लिए आतुर हैं कि उनका सिंहासन किसी प्रकार सुरक्षित रह जाये। कल्पना की जा सकती है कि ऐसे गठबन्धन की यदि सम्भावित सरकार बनती भी है तो उनकी दिशा क्या होगी? परस्पर मौलिक विरोध की भावना में आवेष्टित उन दलों का एकीकरण मात्र अवसर की उपज है। और इसमें सन्देह नहीं कि अपने वर्चस्व को सर्वोपरि रखने की आकांक्षा में गठबन्धन के घटक दल शासन की शुचिता का अनुरक्षण कर सकेंगे। सम्प्रदायवाद, जातिवाद, भाई-भतीजावाद और न जाने कितने वाद चुनावी नारों का आश्रय बनते हैं और स्पष्ट रूप से दिखाई भी देते हैं। चुनाव आयोग के स्पष्ट निर्देशों के उपरान्त भी इनका खुल्लमखुल्ला उल्लंघन हो रहा है किन्तु इस पर जिस स्तर की कार्यवाही होनी चाहिए उसका अभाव भी दिखाई दे रहा है। इस उल्लंघन का सबसे पहला सेहरा बसपा प्रमुख ने ही बाँधा। अन्य दल भी कुछ इसी प्रकार के ध्रुवीकरण की जुगत में लगे हुए हैं। किन्तु संघ समर्थित भाजपा जिसका आदर्श प्रारम्भ से ही श्रीराम रहे हैं, राम का नाममात्र लेने पर ही इसे साम्प्रदायिक घोषित करने की तैयारियाँ जोर पकड़ने लगती हैं।

नोटबन्दी के बाद भाजपा की जो स्वच्छ छवि निर्मित हुई है उसकी पुष्टि सम्पूर्ण देश की जनता के समर्थन से हो जाती है। इस अपार जनसमर्थन के कारण ही भाजपा अनेक विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं को आकर्षित भी कर रही है और विरोधी खेमे के अनेक नेता भाजपा में सम्मिलित भी इसी कारण हो रहे हैं। इसमें सन्देह नहीं है कि भाजपा सरकार सुशासन की दिशा में तीव्रता से आगे बढ़ रही है और इसे जनता का निरन्तर समर्थन भी मिल रहा है, किन्तु यही वह अवसर है जब हमें सावधानी बरतनी होगी और मात्र चुनावी जीत की आकांक्षा में अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं करना होगा। ध्यान रखना होगा कि हम संघ के आदर्शों से पोषित और पल्लवित हैं, और किसी भी स्थिति में कहीं पर भी न तो अपने आचरण से विमुख होना है और न ही इस भावना की ज्योति को अखण्ड रखने वाले अपने कार्यकर्ताओं की किसी भी रूप में उपेक्षा करनी है। वर्षों से तिरस्कार और उपेक्षा सहते हुए भी इन्हीं कार्यकर्ताओं ने अपने कन्धों को इतना सशक्त किया है कि आज हम जिस गन्तव्य तक पहुँचे हैं ये ही उसका आधार हैं।

नवागन्तुकों का स्वागत है, किन्तु इस बात से भी हमें आश्वस्त होना होगा कि उनकी विचारधारा में सकारात्मक परिमार्जन हो और वे हमारे सिद्धान्तों को अंगीकार करने के अनुकूल बनें। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उनके आगमन से भाजपा को इस स्थिति तक लाने वाले कार्यकर्ता प्रभावित न होने पायें और उन्हें किसी भी रूप में अपमानित न होना पड़े। यद्यपि परिवर्तन प्रकृति का नियम है किन्तु परिवर्तन में तारतम्यता का ध्यान रखना होगा। हमारे कार्यकर्ता ही हमारे संवेदी अंग हैं जिनकी सहायता से हमें वस्तुस्थिति का धरातलीय बोध हो पाता है अतः इनकी सुरक्षा एवं सम्मान ही हमारे अस्तित्व का सूचक है। तेजी से आगे बढ़ने की लालसा में हमें देखना होगा कि हमारे पोषक पीछे न छूट जायें। यदि हमारी मुट्ठी पहले से ही भरी हो तो मुट्ठी में कुछ और समा लेने की आकांक्षा में मुट्ठी की वस्तु छिटक सकती है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम उतना ही ग्रहण करने का प्रयास करें जिसे आत्मसात कर सकें और अपनी संस्कृति की रक्षा भी कर सकें।

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