वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ 11 सितम्बर, 2001 को और अमेरिका ने बदला लेने के लिए अफगानिस्तान में ऑपरेशन शुरू किया 7 ऑक्टूबर, 2001 को। यानि अटैक के लगभग 1 महीने बाद, जो कि 17 दिसम्बर,2001 तक अफगानिस्तान में चला। अमेरिका ने तालिबान की जड़ें काटी लेकिन हमले का मास्टरमाइंड लादेन मारा गया 1 मई, 2011 को यानि अटैक के लगभग 10 साल बाद।अमेरिका जैसे विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले राष्ट्र को भी बदले की कार्यवाही शुरू करने में लगभग 1 महीना लगा और खत्म करने में लगभग 10 साल …..और वो भी तब जबकि पूरा अमेरिका, वहाँ का विपक्ष एक साथ अपने राष्ट्रपति के साथ खड़ा था, कहीं कोई विरोध नहीं था। सबने एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाया था, इस घोर संकट के समय में भी अपने जनजीवन को सामान्य बनाये रखा था, अपने आप को इस आघात के मानसिक दुष्प्रभाव से दूर रखने के लिए अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने की, पार्कों में जाने की, टूअर प्रोग्राम बनाने की सार्वजनिक अपील की गई थी। क्योंकि उन्हें अपना नहीं, अपने शत्रु का मनोबल तोड़ना था।
ये एक मनोवैज्ञानिक आक्रमण था अपने शत्रु पर, उन्हें साबित करना था कि तुम कुछ भी कर लो पर हमारी हिम्मत नहीं तोड़ सकते, अपनी सेना और सरकार पर से हमारा विश्वास नहीं डिगा सकते। हम तुम्हारे इन कायराना हमलों से टूटने वाले नहीं हैं, बल्कि हम और अधिक मजबूती से तुम्हारा सामना करने को तत्पर हैं। इसी साहस और विश्वास का परिणाम था कि अमेरिका सहित पूरे विश्व को स्तब्ध कर देने वाला तालिबान खुद धूल में लोटता नजर आया। समय लगा, योजना बनी… बदला लिया गया, शत्रू को समाप्त किया गया परन्तु किसी भी अमेरिकी नागरिक ने अपनी सेना व सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं किया, उन पर पूरा विश्वास रखा और फिर एक दिन परिणाम सामने आया, जिसे पूरे विश्व ने देखा। उस परिणाम के आने में 10 वर्ष लगे, वो 10 वर्ष लम्बा मौन था और उन 10 वर्षों में प्रत्येक अमेरिकी अपने देश के साथ खड़ा था।
आज भारत के स्वाभिमान पर आघात हुए कुछ दिन बीत गए हैं, हमने उस आघात और उसके बाद की प्रतिक्रिया में अपने लगभग 50 से अधिक महावीर खो दिए हैं, पर इसके साथ ही हमने इस कायराना हमले के मास्टरमाइंड राशिद गाजी को मार गिराया है।भारत में जैश-ए-मुहम्मद के नेतृत्व को समाप्त करने में हम सफल हुए हैं।हमने उस विचारधारा का पोषण व संवर्धन करने वाले गद्दारों की सुरक्षा व सुविधाएं समाप्त कर दी हैं।हमने अपने शत्रु से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया है।हमने अपनी सेना को बदला लेने की पूरी छूट दे दी है।200% तक का टैक्स लगा शत्रु देश के व्यापार पर आघात किया है।अब पानी बन्द कर बूंद बूंद के लिए मोहताज किया जाएगा।हमने ये तब कर लिया है जब कैमरे के सामने अपनी सेना व सरकार का साथ देने के वायदे करने वाले विपक्षी दल बंद कमरे में अपने वायदों से मुकर जाते हैं। वो गद्दार ! सरकार और सेना पर इल्जाम लगते फिर रहे हैं, सैनिकों की लाश पर राजनीति कर रहे हैं।अपने शत्रु पर आक्रमण करने, कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने पर कोई विपक्षी दल सरकार का साथ नहीं दे रहा, उल्टा अपने शत्रु से बातचीत के रास्ते सुझाये जाते हैं।
सरेआम मीडिया में बातचीत का समर्थन किया जाता है, जनमतसंग्रह के जाल बिछाये जाते हैं।सर्वोच्च न्यायालय तक 370 पर शीघ्रता से सुनवाई करने से इन्कार कर देता है।जब कुछ बेशर्म इस नृशंस हत्याकांड को सरकार की ही चुनावी साजिश सिद्ध करने पर तुले हों, जब हमारे ही बीच इस हत्याकांड पर जश्न मनाने वाले मौजूद हों, जब उन गद्दारों का विरोध करने वाले देशभक्त हाइपर-नेशनलिस्ट कहे जाते हों, जब आतंक का समूल नाश करने वाले नरसंहार के दोषी ठहराए जाते हों, जब कुछ कमीने इस बर्बरता को सर्जिकल स्ट्राइक का परिणाम बताते हों, ऐसे घोर अंतर्विरोधों से घिरे होने पर तुम चाहते हो कि हत्याकांड के कुछ दिनों में ही 370 हट जाए, पाकिस्तान दुनिया के नक्शे से गायब हो जाये, ।आपको लगता है कि आपका प्रधानमंत्री कुछ नहीं कर रहा है, वो सिर्फ चुनावी रैलियों में व्यस्त है, उसके भीतर कोई आक्रोश नहीं है?अगर आपको यही सब लग रहा है तो आपको आत्ममंथन की जरूरत है। जब आप चीख चीख कर कहते हो कि मोदी जी पूरा देश तुम्हारे साथ खड़ा है तो आप सिर्फ अपनी बात कर रहे होते हो। मेरे भाई… गौर से अपने चारों ओर देखो क्या सचमुच पूरा देश साथ है? तो ये विरोध करने वाले, उपहास उड़ाने वाले, दुश्मन से सहानुभूति रखने वाले, ये सब कौन हैं? मंगलग्रह से आये हैं क्या?
जिस संकट के समय में सब मतभेद भुलाकर पूरे देश को सेना व सरकार का मनोबल बढ़ाना चाहिए, उनका साथ देना चाहिए, भरोसा रखना चाहिए, ऐसे समय में भी अपनी कुत्सित राजनीति में लगे हुए, सेना व सरकार का मनोबल तोड़ने में तल्लीन, लोग भले मरते हों, हमें मोदी को रोकने पर ध्यान देना है ऐसे घटिया बयान देने वाले, सैनिकों के बलिदान का उपहास उड़ाने वाले नीच लोग जब अपने कुचक्रों में संलग्न हैं, ऐसे संकट के समय अगर आप भी अपनी सेना, अपने प्रधानमंत्री का साथ न दोगे तो कौन देगा? अगर आप भी उन पर विश्वास न करोगे तो कौन करेगा? उसकी मानसिक पीड़ा का अनुमान लगाने का प्रयत्न करो मित्र, जिसके विरोधी ही नहीं, जिसके अपने तक उसे गरियाने में लगे हों। जो अपनों से गालियाँ खा रहा हो और इस सबके बावजूद उसने हार नहीं मानी है, वह डटा हुए है… शत्रु के सर्वनाश को कृतसंकल्प है। उनका मौन तक इतना घातक है कि शत्रु अपने घर में भी असुरक्षित महसूस कर रहा है, उनका प्रधानमंत्री अपने ही घर में अपनी ही मीडिया के सामने हकला रहा है, शत्रू अपने लॉन्चिंग पैड बदलने में लगा है, अपने ठिकाने छोड़ के भाग रहा है।