आज देश में पशुवध को लेकर विस्तार से चर्चाएँ की जा रही हैं। पूर्व में अनेक सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने पशुवध के विरोध में आन्दोलन किये। भारतीय संविधान में पशुओं से क्रूरता को भी दण्डनीय माना गया है। पशुओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता को लेकर भारतीय नेताओं में कहीं न कहीं पशुओं के प्रति प्रेम और संवेदना रही होगी इसी कारण इस प्रकार के निषेध संविधान में सम्मिलित किए गये। पशु संरक्षण से सम्बन्धित अब तक 20 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्याएँ तक हो चुकी हैं। सरकारों की निष्क्रियता और दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव के कारण अब तक इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया जिसके कारण अवैध बूचड़खानों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती गयी। देश में 4000 अधिकृत बूचड़खाने हैं जबकि 1,00,000 से अधिक अवैध बूचड़खाने खुले आम चल रहे हैं। इन अवैध बूचड़खानों से होने वाली आय का कोई ब्यौरा नहीं है। इस प्रकार इनसे प्राप्त होने वाली आय का लाभ आखिर कौन उठाता है? क्या यह सम्भव नहीं कि इस रिकार्ड रहित धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों, असामाजिक तत्वों, देश को अस्थिर करने वाले लोगों और उग्रपन्थियों की सहायता के लिए किया जाता हो? देश के कालेधन के भण्डार में इस प्रकार की आय की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
23 नवम्बर, 2001 में लोकसभा के प्रश्न सं. 1112(एच) के उत्तर के अनुसार भारत में भैंसों के कुल मांस का उत्पादन 72,00,000 मीट्रिक टन था। यदि एक भैंस का भार 300 किग्रा हो तो उससे 75 किग्रा मांस प्राप्त होता है। और इस प्रकार 72,00,000 मीट्रिक टन मांस प्राप्त करने के लिए लगभग 9,60,00,000 भैंसों की हत्या करनी होती है। कृषि मन्त्रालय, भारत सरकार के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय की रिपोर्ट के अनुसार 1987 में भैंसों की कुल संख्या 7,59,66,000 और 1992 में 8,42,06,000 थी। और 1992 के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई गणना ही नहीं की गयी। 1992 में कांग्रेस नीत सरकार की आक्रामक मांस निर्यात नीति के पश्चात मांस उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई जिसका सीधा अर्थ है कि पशुधन के विनाश को और तीव्रता मिली। केन्द्र में वर्तमान की भाजपा सरकार बनने के बाद प. बंगाल सीमा पर बांग्लादेश में अवैध रूप से तस्करी कर पहुंचायी जाने वाले पशुधन पर काफी हद तक रोक लगायी गयी है जिससे वहां के बूचड़खानों में पहुचने वाली गायों संख्याा में भारी कमी आयी है। यह निश्चित ही अभिनंदनीय है।
यद्यपि गोहत्या विरोध के कारण अनेक राज्यों में गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाया गया है किन्तु पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में अब भी इस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से बांग्लादेश में गायों की तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है। पश्चिम बंगाल सरकार के संज्ञान में यह तथ्य होने के बावजूद उस पर रोक लगाने में कोई सक्रियता नहीं दिखाई जाती है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक गाय की तस्करी पर रिश्वत की राशि नियत है। एक गाय, बैल अथवा भैंस पर 1000 रुपये की रिश्वत दी जाती है जिसका बंटवारा स्थानीय पुलिस, सीमा सुरक्षा बल तथा ग्रामीण राजनीतिज्ञों के मध्य किया जाता है। और इसका परोक्ष लाभ राज्य के राजनीतिज्ञ भी उठाते हैं। यह तथ्य पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित है।
अब जबकि केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हो चुका है और साथ ही साथ देश के अनेक राज्यों ने भाजपा की नीतियों से प्रभावित होकर अपना विशाल समर्थन देकर भाजपा सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त किया है तो सरकार को इस दिशा में गम्भीर होना पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश में व्यापक जनसमर्थन के साथ योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद का भार ग्रहण करते ही अवैध बूचड़खानों को बन्द करने की दिशा में जो तत्परता और दृढ़ता प्रदर्शित की है वह देश के अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श है। भाजपा शासित महाराष्ट्र में किसी भी अन्य राज्य की अपेक्षा सर्वाधिक बूचड़खाने हैं, इसके पश्चात उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु राज्य आते हैं। उत्तर प्रदेश में तो इस दिशा में सार्थक प्रयास प्रारम्भ किये जा चुके हैं किन्तु देश के अन्य राज्यों में भी इस प्रकार के प्रयासों की नितान्त आवश्यकता है। अवैध बूचड़खानों में स्वास्थ्य सम्बन्धी दिशा-निर्देशों का अनुपालन न होने के कारण इनसे उत्पादित मांस के सेवन से देशवासियों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया जाता है। मांस के लिए ये बूचड़खाने अनेक बीमार और विषाक्त पशुओं का भी वध कर डालते हैं जिससे मनुष्य में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अमेरिका में तो मैड-काउ रोग से अनेक व्यक्ति ग्रसित हो चुके हैं। अतः इस प्रकार सरकार पर चिकित्सा सम्बन्धी व्यय में भी अनावश्यक रूप से वृद्धि हो जाती है। गुजरात सरकार ने भी एक महत्वपुर्ण फैसला लिया है जिसके लिए वह बधायी की पात्र है जिसमें गौहत्या करने वाले को उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया है।
यद्यपि धीरे-धीरे भाजपा शासित राज्यों में अवैध बूचड़खानों को बन्द करने की मंशा जाहिर की जा रही है किन्तु अब इसमें तीव्रता लाने की आवश्यकता है। राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले कुछ लोग इसका विरोध कर सकते हैं किन्तु देश के पशुधन को बचाने और जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इस पर अंकुश लगाना अनिवार्य हो गया है। साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पशुओं का वध करना किसी भी धर्म का अनिवार्य विषय नहीं है अतः इसके साम्प्रदायिक सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा से भी राजनेताओं को परहेज करना होगा। इस पशुधन का उपयोग दुग्ध उत्पादन, बायो गैस उत्पादन एवं अन्य परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के रूप में व्यापक स्तर पर करने से देश का पर्यावरण भी स्वच्छ होगा और देश का स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा।