मालवीय जी ने 1916 में बीएचयू की स्थापना की। एह एशिया का सबसे बड़ा भारतीय विश्वविद्यालय है।
मालवीय जी 1919 से 1938 तक इसके उपकुलपति भी रहे।
मालवीय जी जब इलाहाबाद स्थित म्योर सेंट्रल महाविद्यालय में पढ़ रहे थे तब उनके ध्यान में आया कि उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु अनेक भारतीय युवक इंग्लैंड में जाते थे और लौटने के बाद अपने धर्म के बारे में कुत्सिल भावना लेकर आते थे। इस पर वे सोचते थे भारतीयों को स्वदेश -स्वभाषा-स्वसंस्कृति का शाष्त्रशुद्ध संस्कार हो तो उच्च शिक्षा हेतु यहीं पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की संस्था बनानी होगी। जब उन्होंने अपने सहकारियों से चर्चा की तो सबने उनकी खिल्ली उड़ाई। उस समय केवल उनके पिताजी ने उन्हें प्रोत्साहित किया। लेकिन पंडित जी निराश नहीं हुये सन् 1887 में प्रयाग में विश्वविद्यालय स्थापना का मूल प्रस्ताव बदलकर ’काशी में अपने सपनों का भव्य विश्वविद्यालय बनाने का निश्चय किया।
अंग्रेजों द्वारा उसी कालखंड में बंबई , कलकत्ता , मद्रास, लाहौर, प्रयाग में महाविद्यालय खड़े किए गये थे। यहां से पढ़कर निकलने वाले अधिकतर छात्र अंग्रेज सरकार की नौकरी करने में रूचि रखते थे।
जब उन्होंने पिता से भारतीय पद्वति पर आधारित विश्वविद्यालय की बात पर चर्चा की तो पिता ने उनसे कहा था, मैं तुम्हारी इस भावना का सम्मान करता हूँ। किंतु विश्वविद्यालय की स्थापना में लगने पर तुम्हें अपनी इस चमकती हुयी वकालत को छोड़ना पड़ेगा, तुममें इसकी सिद्वता होनी चाहिए, तभी यह काम हाथ में लेना। पिताश्री का परामर्श मालवीय जी को जंच गया। उन्होंने विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प लिया और वकालत को तिलांजलि दे दी। जब अपने पिताजी को यह इस विश्वविद्यालय के स्थापना की बात बतायी तो पिताजी ने आशीर्वाद के साथ प्रािम दान स्वरूप 51 रूपये दिए।
1907 में काशी मे काशी महाराज की अध्यक्षता में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का औपचारिक प्रस्ताव पारित किया। इसके पश्चात श्री मालवीय जी ने वकालत को पूर्ण विराम देकर इस विश्वविद्यालय के निर्माण हेतु अपने आप को पूरी तरह झोंक दिया। इस कार्य में दैवी आर्शीवाद प्राप्ति हेतु उन्होंने गायत्री मंत्र का अनुष्ठान किया।
बाद में उन्होंने पत्रक निकालकर दान प्राप्ति हेतु सभी राजाओं के पास भेजा। उसी साल प्रयाग स्थित कुंभ मेले मे जगद्गुरू शंकराचार्य की अध्यक्षता में भी प्रस्ताव पारित किया गया।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना भारतीय युवकों को केवल पदवी देने हेतु नहीं बल्कि विद्यार्थियों में देशभक्ति जगे वो सच्चा हिन्दू बने यह भावना थी। यहां से तैयार छात्र समाजहित और अपना कार्य करें यह अपेक्षा थी।
मालवीय जी ने विश्वविद्यालय हेतु धनसंग्रह उन दिनों में करीब 9 करोड़ रूपये दान स्वरूप में एकत्रित किए। श्री मालवीय जी की विश्वविद्यालय निर्माण संकल्पना की धुन का वर्णन करते डाॅ. ऐनीबेसेंट 31 जनवरी 1912 में कहती हैं कि मालवीय जी ने अपना घरसंसार, अपनी सारी शक्ति, खुद का आरोग्य इसका बलिदान इसके लिए किया।
इस भव्य विश्वविद्यालय के लिए जब वे घर से निकलते थे तो चंदा कितना एकत्रित करना है इसका लक्ष्य मन में तय करते थे और जब तक वह आंकड़ा पूरा नहीं होता तब तक अन्न ग्रहण नहीं करते थे।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मालवीय जी के जीवन का सर्वश्व है। इसके लिए उन्होंने भारी बलिदान किए हैं। यहां तक की उन्हें उनके व्यक्तिगत उपयोग के लिए जो धन प्रदान किया गया उस भी उन्होंने विश्वविद्यालय कोष को समर्पित कर दिया था। उनकी पत्नी को महारानी नेपाल ने एक बहुमूल्य हार भेंट किया था, मालवीय जी ने उसे भी विश्वविद्यालय कोष में डलवा दिया।
मालवीय जी कहा करते थे कि गंगा के किनारे महादेव विश्वनाथ की इस काशी में तीर्थयात्रा के इस पावन और प्राचीन स्थान में जहां नहाकर राजा हरिश्चंद्र ने दान में न केवल अपना सर्वस्व राज्य दे डाला था बल्कि अपने पुत्र और पत्नी को भी अर्पित कर दिया था। इस नगरी में जहां बड़े बड़े ऋषि मुनि रहते थे और जहां प्रत्येक हिन्दू को अपने अंतिम दिनों को बिताने और सांस लेने की इच्छा रहती है, जहां असंख्य हिन्दुओं ने अपनी राख पवित्र गंगा में विसर्जित की है, प्राचीन काल से ही वह शिक्षा का एक स्थान रहा है। ऐसे स्थान में मैं एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहा हूँ। जहां प्राचीन काल का पदार्थ विज्ञान और आधुनिक काल का विज्ञान साथ होगा।