स्वामी विवेकानन्द जी ने भारत भूमि के दो राज्यों जम्मू – कश्मीर एव असम की राष्ट्र को प्राप्त दो स्वर्ग से तुलना की थी।
किन्तु आज इन दोनों ही प्रांतों को पता नहीं किसकी नजर लगी कि शैतानी घुसपैठ में भाजपा नीत सरकार के असम में शपथ गहण से भारी मात्राा में कमी देखी गयी है। पर भाजपा की केन्दz सरकार ने सीमाओं पर बाड़ लगाने का कार्य तेजी से किया है। साथ ही साथ सीमा पर चौकसी भी संवेदनशीलता के साथ जारी है। जबकि वोटबैंक की राजनीति के तहत पूर्वोत्तर भारत सहित सारे भारत
बांग्लादेशी घुसपैठियों का दंश मंशा ने इन्हें अपने आगोश में ले लिया है। जम्मू-कश्मीर आजादी से लेकर आज तक आतंकवाद से प्रताड़ित है तो असम घुसपैठ से। पूर्वोत्तर भारत की लापरवाह चौकसी रहित सीमाओं में असम की सीमायें ही मूलत: ७०% घुसपैठ के लिए आदर्श साबित हुई हैं। और तो और असम के रास्ते की गई ९०% घुसपैठ धुबरी जिले की विभिन्न नदी से ही होती रही है। इस कांग्रेस और वामपंथियों ने काफी समय से ही असम और प. बंगाल में घुसपैठ का नंगा नाच खेला है। अब यही कार्य तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी नीत सरकार कर रही है। कोई सरकार किसी कार्य को प्रत्यक्ष अंजाम नहीं देती किन्तु उसके सोचने और कार्य करने के नजरिये का अप्रत्यक्ष रूप से घुसपैठियों पर सकरात्मक प्रभाव पड़ता रहा है। यही इन सरकारों ने अपने में ही अव्यवस्था फैला कर किया है। विगत वर्षों में असम की मतदाता सूची में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। इनमें सबसे अधिक सीमा से सटे जिले प्रभावित हुए हैं। सिपर्फ 2009 की मतदाता सूची में धुबरी जिले में लगभग ७% तक वृद्धि दर्ज की गयी।
25 मार्च, 1971 की स्थिति के बाद बांग्लदेशी घुसपैठ की ही देन है कि 1991 तक जहाँ असम में हिन्दू वृद्धि दर ४२% रही तो वहीं मुस्लिम जनसंख्या में ७५% से अध्कि आबादी जुड़ी थी। इसी प्रकार 1991-2001 के दशक में हिन्दू-मुस्लिम वृद्धि दर 15-३०% क्रमश: रही है। बांग्लादेशी सीमा से सटे जिलों में यह स्थिति और भयावह है। जहाँ पर दुगुनी गति से मुस्लिम जनसंख्या बढ़ रही है। ये घुसपैठिये असम की असमिया संस्कृति को ही नष्ट कर रहे हैं। मध्यकालीन संत गुरु शंकरदेव ने जिस तरह असम के सांस्कृतिक स्वरूप को वैष्णवमय किया था आज वह स्वरूप पूरी तरह छिन्न-भिन्न होता चला जा रहा है। असमिया गीत-संगीत के मशहूर गायक भूपेन हजारिका जी के गीतों में भी यह दर्द साफ तौर पर झलका है जिसमें उन्होंने घुसपैठ से बदलने वाले जनसांख्यिकीय स्वरूप को असम के लिए अत्यंत घातक माना है।
साफ तौर पर यह मानने में कतई अतिशयोक्ति या अत्युक्ति नहीं माननी चाहिए कि इस सारी समस्या के पीछे कांग्रेस ही जड़ के रूप में रही है। आखिर इसके पीछे वोट बैंक की मंशा जो ठहरी। तो क्या वोट बैंक की खातिर आप सारे देश को ज्वालामुखी पर बिठा देंगे। इतिहास इस बात की गवाही देता है कि नेहरू और इंदिरा गाँधी ने अपने समय मुस्लिम तुष्टीकरण की जो नीति का प्रयास किया उसी का नतीजा है कि आज सारा भारत इन घुसपैठियों के दंश से कराह रहा है। रही-सही कसर संप्रग सरकार के समय गठित राजेंद्र सच्चर कमेटी ने सांप्रदायिक जनगणना में सुरक्षा बलों के अन्तर्गत मुस्लिमों की गिनती की बात उठाकर पूरा कर दिया। इस मांग को तत्कालीन सेनाध्यक्ष जे. जे. सिंह ने सेना के मनोबल के लिहाज से तुरन्त खारिज कर दिया था। इससे यह साफ है कि सोनिया गाँधी जी इस देश के प्रति किस प्रकार की सोच रखती हैं।
सरकार हिन्दू बहुसंख्यकों के प्रति अपनी नफरत बढ़ाती रही और मुस्लिमों को संरक्षित करती रही ताकि भविष्य में कांग्रेस के लिए एक ऐसा पुख्ता वोट बैंक तैयार रहे कि यदि हिन्दू चाहे भी तो कॉग्रेस को सत्ता से डिगा न सकेें। वास्तविक रूप में इस सोच का असर घुसपैठियों की बढ़ती आबादी अपने आप प्रदर्शित कर देती है। स्थिति इतनी भयावह होती जा रही है कि असम और पं. बंगाल के सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या ४६% तक पहुँच चुकी है। बिहार के किशनगंज, कटिहार और अररिया जिले तो मिनी बांग्लादेश बनकर उभरे हैं।
ध्यान देने योग्य बात है कि पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ते गलियारे चिकन पट~टी अर्थात~ सिलीगुड़ी कारिडोर जो कि 32 किलोमीटर लंबा तथा 22 किलोमीटर के लगभग चौड़ा गलियारा विशेष रूप से घुसपैठियों का गलियारा कहा जा सकता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी सुरक्षा भारत सरकार को सेना के हवाले कर देनी चाहिए, क्योंकि यहीं से बांग्लादेशियों का वितरण पूरे देश के विभिन्न क्षेत्राों में फैलाव लेता है। पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्रि श्रीप्रकाश जायसवाल ने इस बात को माना था कि डेढ़-दो करोड़ बांग्लादेशी भारत में मौजूद हैं जिनमें से लगभग 20 लाख देश में गायब हो चुके हैं। इसी प्रकार 1997 में इंद्राजीत गुप्ता, जो कि गृह मंत्री थे, ने कहा था कि लगभग एक करोड़ बांग्लादेशियों की मौजूदगी देश में उस समय थी। आज यह अनुमान के मुताबिक 3 करोड़ की संख्या पार कर चुके हैं।
घुसपैठ की समस्या देश के लिए एक गंभीर खतरा बन चुकी है। घुसपैठिये न सिर्फ गरीबों का हक मार रहे हैं बल्कि देश की एकता और अखंडता के लिए भी नासूर बनते जा रहे हैं। इन्होंने अपने आप को राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र में शामिल करवाकर न सिर्फ बीपीएल राशन व रोजगार पर हाथ साफ किया है वरन~ चुनाव में अव्यवस्थित मतदान से राष्ट्रवाद को निशाने पर भी रखा है। प. बंगाल में लगभग 80 लाख बांग्लादेशी मतदाताओं एवं बिहार में 30 लाख से अधिक मतदाताओं की मौजूदगी देश की अस्मिता के लिए खतरा बनती जा रही है। इसी प्रकार महानगरों की विभिन्न स्लम बस्तियों में भी ऐसे ही अवैध् बाशिन्दों की भरमार है। देश की राजधानी दिल्ली में जहांगीर पुरी, ओखला, उस्मानपुर पुश्ता, सीलमपुर, सीमापुरी, यमुना पुश्ता, जामिया नगर, नंदनगरी, त्रिालोकपुरी आदि ऐसे इलाके हैं जहां से शहर के विभिन्न संगठित गिरोहों द्वारा सुनियोजित अपराधें को अंजाम दिया जा रहा है। इन अपराधें में यहां बसने वाले बांग्लादेशियों का तीन-चौथाई योगदान
है। इस तरह देश के प्रत्येक महानगर में अपराधें की श्रृंखला को इसी तरह बदस्तूर जारी रखा गया है। देश के ५०% अपराध् इन्हीं की देन हैं। भविष्य में कहा नहीं जा सकता कि ये आतंकी नहीं बनेंगे क्योंकि चोरी, लूटपाट, नकली मुद्रा , पशु तस्करी, डकैती एवं नशीली दवाओं के कारोबार में तो ये पहले से ही लिप्त हैं। ऐसी सोच वालों का पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों एवं आई.एस.आई.एस. के हाथों खिलौना बनना एक आम बात है। अभी-अभी 7 रोहिंग्या शरणार्थियों को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वापस म्यांमार भेजने का आदेश दिया है। इससे यही सापफ नहीं होता कि रोहिंग्या जैसे शरणार्थी भी उसी तरह देश के लिए खतरा हैं जिस तरह बांग्लादेशी, क्योंकि दोनों की सोच उसी प्रकार की है। यदि ऐसा नहीं होता तो क्यों बुद्ध का देश म्यांमार इनसे इस तरह आतंकित होता और तो और शांतिप्रिय बौद्ध -मुस्लिम दंगों में यही बात निकलकर आई कि जब इनकी संख्या में बढ़ोतरी होती है तो वो अन्य समुदायों के लिए खतरा बनकर उभरते हैं। ऐसा ही म्यांमार में हुआ, ऐसा ही आसाम, प. बंगाल में भी होना शुरू हो चुका है। आसाम का कुछ समय पूर्व हुआ दंगा इस कहानी को कहने के लिए काफी है कि किस प्रकार ज न संख्या की बढ़ोतरी ने वहां के स्थायी बाशिन्दों के साथ टकराहट को
अंजाम दिया था। वो दिन सभी को याद है कि किस तरह आईटी सिटी बंगलोर से असमीज वापस घर लौटने लगे थे। यह सभी करतूत बहुसंख्यक होते जा रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों की ही थी। खैर, यह तो अब आम लोगों को सोचना होगा कि वे इन घुसपैठियों का साथ देने वालों के साथ हैं या उस सरकार के जो उन्हें उसके अंजाम तक पहुंचाकर अपनी जनता को उसका वाजिब हक दिलाना चाहती है। इसीलिए एन.आर.सी. पर बिना राजनीति किये इनकी पहचान कर उन्हें उनके देश भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए। एन.आर.सी. सही रूप में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो, यह भी अत्यन्त आवश्यक है।