किसी भी देश की प्रगति और उत्थान में राष्ट्रीयता की भावना का विशेष योगदान रहता है । राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर आदमी देश की सुरक्षा तथा उसके कल्याण में योगदान अपना परम कल्याण समझते है। राष्ट्रीयता का उस देश के नागरिक के लिये महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि वहां समस्त जाति व धर्माे के लोग निवास करते है। जैसे कि भारत के लोग। इसे एक सूत्र मे पिरोना सबसे बडी बात है, जिसमें शिक्षा का बहुत बडा योगदान होता है। यदि प्रारंम्भिक शिक्षा में इस भावना को विकसित किया जाय तो आगे चलकर नागरिक इसे जीवन से भी ज्यादा महत्व देगें इस बात के प्रति आश्वत होना चाहिये। जर्मनी, फांस, इटली ,रूस आदि देशों ने शिक्षा द्वारा अपने छात्रों में राष्ट्रीयता भावना भरने के बेहतर प्रयास किये और उनका लक्ष्य रहा । व्यक्तियों का सामाजीकरण करके उन्ळे एक सूत्र में बांधा , जिससे पूरे देश में सहिष्षणुता , सहयोग व प्रेम भावना का संचार हुआ।
भारत के एकीकरण में बहुत सी बाधायें है जो कि यूरोपीय देशो से भिन्न है जैसे जातिवाद समस्या , यहां पर जाति के समूह है जो कि उंच व नीच की परम्परा पर आधारित है। यह सनातन काल से ही है जिसे तोडना असंभव है लेकिन नामुकिन नही है। प्रत्येक जाति अपना हित लेकर आगे चलती है चाहे वह राष्ट का अहित न करती हो। चुनाव भी जातिगत आधार पर लडे जाते है। गावों में आये दिन जाति गत झगडे होते है। एक जाति दूसरे जाति को मिटाने का प्रयास करती है, यह पक्षपात की जननी है जहां व्यक्ति की योग्यता को नही बल्कि जाति देखी जाती है। जाति गत लाभ के लिये हर लाभ बेकार है। पं स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि जातिवाद पुरानी चीज है यह जातियता है जो हमें अलग अलग खानों में रखे, कमजोर करे, दुर्बल करे और बडे देश की भावनाको कम करती है।
इसी तरह भारत के एकीकरण की बाधक क्षेत्रवाद है । आजादी के बाद देश में प्रान्तीयता व क्षेत्रीयता की भावना ने उग्र रूप धारण कर लिया । मुबंई ,तमिलनाडू व पंजाब में इसे लेकर कई तरह के आंदोलन भी हुए। किन्तु अब लगता है कि राज्यों में परस्पर वैमनस्य बढता ही जा रहा है। गुजरात व महाराष्ट एवं पंजाब व हरियाणा इसके ज्वलंत उदाहरण है। इसी तरह सम्प्रदायिकता एकीकरण में बाधक है कुछ लोग धार्मिक भावनाओं को आहत कर अपनी रोटी सेंक रहें है। हिन्दू मुस्लिम विवाद इसमें प्रमुख है। शिया सुन्नी विवाद दूसरे व मौकापस्त ईसाई मिशनरी तीसरे स्थान पर है। यह सभी मौके की ताक में रहते है कि कैसे देश में दंगे हो और उसका लाभ उठाया जा सके ताकि देश एक न हो सके। नागपुर , रांची , अहमदाबाद में हुए साम्प्रदायिक दंगे तो इतिहास में कलंक के रूप में मौजदू थे ही साथ ही गोधरा भी शामिल होगया । कई और दंगे कराने की फिराक में अलगाववादी बैठे है। बस मौकों का इंतजार है।
इसी तरह भाषाई विद्वेष भी है, हिन्दी को राष्टभाषा घोषित किया गया लेकिन हिन्दी को लेकर अभी भी कई राज्यों में मतभेद है तमिलनाडू ,केरल , कर्नाटक व आंध्रप्रदेश इसके मौजूदा प्रमाण है, अंग्रेजी पूरे देश में बोली जाने वाली इसलिये बन गयी क्योंकि सरकारों ने इसे बढावा दिया और और मातृभाषा को दूसरे दर्जे व क्षेत्रीय भाषा को तीसरे दर्जे का बना दिया। जबकि होना यह चाहिये था कि हिन्दी पूरे देश में , क्षेत्रीय भाषा राज्यों में व अंगेजी अतिविशिष्ट वर्ग की भाषा या वैकल्पिक भाषा होनी चाहिये थी, जैसे अन्य विदेशी भाषा है। पहाडी क्षेत्र के लोग अपनी भाषा की मांग को लेकर अन्य प्रदेश बनाने की बात करते है और किसी से मिश्रित नही होना चाहते यह देश के एकीकरण के लिये नुकसान दायक है।
इसके अलावा असमानता देश के एकीकरण में बाधक है , देश की सारी व्यवस्था पूंजीपतियों के लिये है इस काम को प्रचार में समय समय पर लाया जाता रहा है। गरीब और गरीब होते गये , चोर व मक्कार लोग देश में तरक्की कर अपना मुकाम बनाकर नजीर बनते गये। किसी गरीब से देश भक्ति की उम्मीद करना तो बेबकूफी है क्योंकि पहले वह अपना पेट पालेगा और बाद में यदि जिन्दा रहा तो देश की सोचेगा लेकिन पूंजीपति जिसे देश के बारे में सोचना था वह हर प्रभाव को अजमाकर पैसा इकट्ठा कर रहा है। ताकि अगली पीढी के लिये रास्ता बना सके। इसके अलावा कुछ विदेशी ताकतें है जो नही जानते देश एकीकरण की राह पर चले, अमरीका व इंग्लैड के बारे मे सभी को पता है कि वह दूसरे देशों के अलगाव वादी तत्वों को हरतरह का मद्द करती है। भारत में मौजूद तमाम मिशनरी इस बात को इंगित करते है कि वह वैमनस्य का बीज बोकर ईसाईयों का निर्माण करने में लगे है। भारत व पाकिस्तान का मामला इसी बात का ताजा उदाहरण है।
सबसे खास बात यह कि देश के राजनेता ही नही चाहते कि भारत एक हो, यहां का संविधान व व्यवस्था नही चाहता एक हो। कई दल ऐसे है जो देश हित के बजाय राज्य हित को लेकर बने है । डीएमके उत्तर भारतीयों का विरोध कर रहा है और हिन्दी को हटाने की बात करता है तो अकालीदल खालिस्तान बनाने की मांग कर रहे है। शिवसेना को अपने राज्य मे किसी और राज्य के वासियों पर आपत्ति है तो कुछ मुसलिम संगठन भारतीयकरण के प्रश्न को उलझा रहें है। मुस्लिम लीग ने तो मुसलमानों को गुमराह करने का बीडा ही उठा रखा है। ऐसे में देश का एकीकरण कैसे हो। यह जटिल प्रश्न है और जब तक यह समस्या रहेगी , महात्वाकांक्षा रहेगी देश एक नही होगा। फिलहाल आधारकार्ड से कुछ फर्क पडा है और ईमानदारी दस प्रतिशत दबाब में लौटी है। जीएसटी से व्यापारिक एकीकरण हो सकता है, संविधान की समीक्षा कर उसे ठीक ठाक किया जाय और एक कानून बनाया जाय तो एकीकरण की राह मजबूत हो सकती है लेकिन यह इतना आसान नही है जितना समझा जा रहा है। इस पर पूरी सिद्दत से विचार कर आगे की ओर बढाना होगा।