जब कुछ नहीं था ,तब भी कॉल अर्थात समय था ।जब इस सृष्टि का आरंभ हुआ तब कॉल नहीं ,इसका मस्त अभिषेक किया फिर काल में ही इस सृष्टि के चलाई। मान रखने के लिए संघार का विधान भी रचा, उसी काल के अधिपति देवता है महाकाल, जो विराजे हैं। इस पृथ्वी के मध्य अर्थात भारतवर्ष की गौरवशाली प्राचीन नगरी उज्जयिनी में, जो मध्य प्रदेश में स्थित है। अनंत काल से इस सृष्टि के कण-कण में महाकाल का जो वैभव गूंज रहा है उसकी प्रतिध्वनि आप उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर क्षेत्र में बनाए गए श्री महाकाल लोक में भी सुनाई देने वाली है।920 वर्गमीटर क्षेत्र में भगवान महाकाल, मां पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय की प्रतिमाओं के माध्यम से वेद पुराणों शास्त्रों में वर्णित शिव के विभिन्न स्वरूपों का यश गान करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सनातन धर्म के श्रद्धालुओं सहित प्रत्येक देश वासियों के लिए उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर के समीप बने नवनिर्मित भव्य महाकाल लोक का उद्घाटन किया। केदारनाथ और काशीनाथ के बाद महाकाल तीसरे ज्योतिर्लिंग है जहां पर परिसर को भव्य बनाया गया है। महाकाल मंदिर पुराणों में वर्णित रुद्रसागर ,भारत माता मंदिर, भारत के प्राचीन वैभव को अपने में समेटे त्रिवेणी संग्रहालय सहित समूचा नवनिर्मित महाकाल लोग दिखाई देगा ।यह श्रद्धालु जन शिव पुराण, महाभारत से स्कंद पुराण में वर्णित शिव की गाथा प्रतिमाओं के दर्शन कर सकेंगे ।लोक में टहलते प्रतिमाओं के दर्शन करते हुए श्रद्धालु महाकाल मंदिर पहुंच सकेंगे। इस नए महाकाल लोक भवन में विशाल दीवार पर भित्ति चित्र बने हैं । इसमें देवाधिदेव महादेव, मां पार्वती, भगवान कार्तिकेय व भगवान गणेश की कथाओं के दर्शन होंगे ।
इतिहासकारों के अनुसार 1761 से लेकर 1811 तक उज्जैन सिंधिया शासन की राजधानी थी। इसके बाद सिंधिया ने अपनी राजधानी ग्वालियर में बना ली। ग्वालियर में राजधानी बनाने के बावजूद महाकाल को राजा मानकर सिंधिया शासन की बैठक उज्जैन में होती रही। 1818 में सिंधिया ने अंग्रेजों की संप्रभुता स्वीकार कर ली ,तब से उज्जैन में शासन स्तर की बैठक नहीं हुई थी, इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कैबिनेट बैठक करते हुए कहा कि 200 से अधिक वर्ष बीत जाने के बाद यह वैभव प्राप्त हुआ है , उज्जैन में बैठक हुई ।इस बैठक में कहा गया कि देश के पहले से चारधाम हैं इसलिए विस्तारित क्षेत्र का नाम महाकाल लोक रखा जाए ।नामकरण को लेकर कई विद्वानों के सुझाव मिले। जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर महा मंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी के नाम को लेकर चर्चा हुई। नाम को लेकर विद्वानों ने कहा कि लोक का मतलब संसार है, देवता के रहने का विशिष्ट स्थान से है ।आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर की मान्यता शिवलिंग से है। मान्यता के अनुसार महाकाल पृथ्वीलोक के अधिपति हैं ।तीनों लोक और संपूर्ण जगत के अधिष्ठाता ही हैं इसलिए नाम अति उत्तम है इस प्रकार इस जगह का नाम महाकाललोक रखा गया।
इस लोक में त्रिवेणी संग्रहालय, जहां उज्जैनी के 5000 वर्ष पुराने इतिहास के दस्तावेज प्राचीन प्रतिमाएं आदि देख सकते हैं। यह संग्रहालय इतिहास पुरातत्व और धर्म के प्राचीन स्वरूप के अध्ययन करने वालों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं होगा। यहां उज्जैनी के प्राचीन स्वरूप पर शोध किया जा सकता है ।तीसरी जो खास बात है वह यह है कि 920 वर्ग मीटर के महाकाल लोक का , इससे ऐसा होगा जहां धूप अथवा छांव वाली जगह है ।श्रद्धालु महाकाल के दर्शन करते समय कुछ देर के लिए यहां सुस्ता सकेंगे और रुद्रसागर के शीतल जल को छूकर आती ठंडी बयार का आनंद ले सकेंगे।
महाकाल लोक में महाकाल मंदिर की ओर जाने वाला गलियारा श्रद्धालु इससे होकर इस में बनी प्रतिमाओं के दर्शन करते हुए आगे की ओर बढ़ेंगे इस हिस्से में समुद्र मंथन मार्कंडेय ऋषि की रक्षा सहित महादेव की अन्य कथाओं की प्रतिमाएं हैं यह भाग श्रद्धालुओं के लिए पौराणिक रूप से लोक में ले जाया जाएगा ।वहां लोग का अंतिम सिराजे महाकाल मंदिर के पृष्ठ भाग पर आकर समाप्त होगा ।यहां से महाकाल मंदिर में प्रवेश के लिए द्वार भी बना है जिसके कारण लोग देश को एक नई दिशा देने के लिए तैयार है।
भौगोलिक दृष्टि से उज्जैनी कर्क रेखा पर स्थित है। मान्यता है कि लंका से सुमेर पर्वत तक जो देशांतर रेखा है वह अवंतिका नाथ महाकाल मंदिर के शिखर के ऊपर से जाती है। इसी कारण भारतीय पंचांग में उज्जैनी को प्राचीन काल से गणना का आधार माना गया है ।महाकाल को काल चक्र का प्रवर्तक भी कहा जाता है इसलिए उज्जैन सदियों से काल गणना का प्रमुख केंद्र रहा है जब पश्चिम सभ्यताएं समय की गणना सीखी भी नहीं थी तब भारत में उज्जैनी के महान सम्राट विक्रमादित्य ने काल गणना के लिए विक्रम संवत संचालित किया था। आधुनिक काल में भारत में जो चार वेदशाला स्थापित की गई उनमें से एक उज्जैन में इसलिए स्थित है क्योंकि यहां से ग्रह नक्षत्रों के आधार पर काल की सटीक गणना करना संभव है।
नवनिर्मित श्री महाकाल लोक में भी श्रद्धालुओं की कालगणना का यह देख सकेंगे। नवनिर्मित श्री महाकाल लोक करीब 316 करोड़ की लागत से बना है । यह महाकाल क्षेत्र का विस्तार का पहला चरण होगा। 750 करोड़ खर्च से इस क्षेत्र को और विस्तार दिया जाएगा । शिप्रा नदी को महाकाल मंदिर के समीप स्थित रुद्रसागर से जोड़ने वाली सिद्ध पीठ हरसिद्धि मंदिर क्षेत्र का ,विस्तार राशि से सुविधाओं का निर्माण करना होगा।