पिछले कुछ दिनों से देश की राजनीति में दमन का काम चल रहा है। दलित मारा जाय तो दलित उत्पीडन, ब्राहमण हो तो ब्राहमण उत्पीडन, ठाकुर हो तो ठाकुर का उत्पीडन व पिछडों का हो तो उत्पीडन ? क्या है यह इस पर विस्तार से चर्चा करते है। इस तथ्य की शुरूआत कांग्रेस के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में हुआ। उत्तर प्रदेश में हरिशंकर तिवारी व लाल प्रताप शाही , बीर बहादुर सिंह को कांग्रेस का समर्थन था यह बात किसी से नही छिपी थी और यहीं से राजनीति का अपराधीकरण हुआ। उसके बाद समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश व बिहार में लालू प्रसाद के राज के साथ विधिवत शुरूआत की गयी। बिहार में जहां पप्पू यादव , सरीखे जहां सरकारी राज में विस्तार पाये वहीं उत्तर प्रदेश में एक खाप बना दी गयी जिसके सरदार सरकार की मद्द से प्रदेश को लूटने लगे । उनमें आजमगढ के रमाकांत व उमाकांत यादव , गाजियाबाद के डीपी यादव, जौनपुर से परशुराम यादव ,आज के प्रयागराज के स्वर्गीय जवाहर यादव आदि थे। जिन्होने हजारांे लोगों की जमीन हडप ली और सत्ता सरकार के नीचे काम कर सुख भोगा। इसके बाद मायावती आयी तो राजू पाल समेत कई कुख्यात अपराधी उनके कार्यकाल में पले। जो समाजवादी पार्टी के गुगें थे वह भी बसपा में अपनी ताकत बढाने आ गये। लेकिन इन सबके आगे आने से बात नही बनी। कई ब्राहमण व ठाकुर परिवारों को जो इसक्षेत्र में अपना बर्चस्व बनाये हुए थे । उन पर आंच नही आयी।
इसका एक मात्र कारण यह था कि जमीन जायदाद इन्ही के पास थी और इनको छेडने का मतलब प्रदेश में अस्थिरता का माहौल बनाना था। अब इनको नीचे ले आने के लिये इनको उलझाया जाने लगा । फर्जी मुकदमों की बाढ सी आ गयी , जेलों में भेजा जाने लगा । जो जमीन वाले थे और शान्ति से काम कर रहे थे उनकी जमीनों पर कब्जा करवाया गया और बोलने पर जबरन लडाई करवाई गयी । ताकि उनको अस्थिर किया जा सका । यह दोनों की राज्यों में व्यापक पैमाने पर चला। पूरे प्रदेश में ब्राहमणों की व ठाकुरों की दुर्गति हुई। सारी राजनीति धरी की धरी रह गयी। इसके बाद इनकांउटर का दौर शुरू हुआ हलाकि यह शब्द कानून में नही है फिर भी पुलिस जिसे चाहे मार दे इस बात के चर्चाओं में रहने लगी। दलित व पिछडों को सरकारी तंत्र के नीचे बढाया गया और गैंगेस्टर यह कहकर बनाया गया कि जब ब्राहमण ठाकुर हो सकते है दलित व पिछडे क्यों नही ? बडे दिनों बाद बिहार में जब नीतिश की सरकार आयी तो इस मामले से बिहार वालों को राहत मिली।विकास का काम शुरू हुआ और बिहार तरक्की करने लगा लेकिन जो मलाई लालू राज में यादवों ने खायी उसकी याद उनके दिल से न गयी। वह वर्चस्व रह रह कर यादवो ंको सता रहा है बार बार कह रहें है उधौ मोहि लालू राज बिस्रत नाही। लेकिन प्रदेश की जनता मूर्ख थोडे ही है कि बार बार अपना दमन करायेगी।
यही हाल उत्तर प्रदेश का है , जब से योगी आदित्यनाथ से प्रदेश की कमान संभाली है तब से प्रदेश से गुण्डाराज खत्म सा हो गया हैं।डीपी यादव जिन्होने अरबों गुण्डागर्दी से कमाये जेल में है। अतीक अहमद जो कुख्यात माफिया थे गैग चलाते थे परिवार समेत जेल में है। विजय मिश्रा परिवार समेत जेल में है। जिन्होने कईलोगों को जान से मारा आज चिल्ला रहे है कि मेरी जान को खतरा है। मुझे मार देगें ? अब सवाल यह है कि पुलिस को पहले ही मुडभेड दिखाकर मार देना था। कम से कम शहर खामोश रहता लेकिन ऐसा नही हुआ। प्रयागराज की कई वारदातें ऐसी रही जिसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही किन्तु कारवाई नेताओं की दबाब में नही हुई। अपवाद के तौर पे राजूपाल विधायक की हत्या को लिया जा सकता है। प्रदेश में देखें में मिर्जापुर में विधायक व कई बार मंत्री रहे राकेश घर त्रिपाठी के भाई की हत्या , गोपीगंज में विधायक व सांसद रहे गोरखनाथ पाण्डेय के भाई की हत्या है जिससे सरकार व प्रशासन अपना दामन दागदार होने से नही बचा सकता।
अब बात करते है राजनीति की ,बिहार में लालू राज में पप्पू यादव , आनंद प्रधान , अनंत सिंह , तस्लीमुद्दीन जैसे तमाम अपराधी नेता बने और सरकार से मिलकर तरक्की की। लालू राज के बाद जब नीतिश आये तो बिहार के इन बाहुबलियों को जेल का रास्ता दिखाया। प्रदेश में शान्ति लायी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के आजमगढ से रमाकांत व उमाकांत यादव, गाजियाबाद के डी पी यादव ,आज के प्रयागराज से जवाहर यादव समाजवादी पार्टी के मुखिया के भाई शिवपाल यादव के सहयोगी रहें है। इनको उनका समर्थन प्राप्त था।इसके अलावा 29 कुख्यात अपराधियों की टीम थी जो उनके सरकार में लाल बत्ती में सुरक्षाकर्मियों के साथ धूमते थे।बाद में उन्होने अतिथिगृह कांड को अंजाम दिया । इसके बाद विखरना शुरू हुआ।कईलोगों ने अपने दल बदल लिये और तत्कालिक सरकार से अपने को बचाने के लिये चले गये और दल बदलने के कारण ही आज बाहर घूम रहें है।किन्तु यह कहा जा सकता है क्रीम माफियाओं का उत्तर प्रदेश की राजनीति से पलायन हो चुका है। उनकी गुण्डागर्दी फिर से कायम होने में कई जन्म लग जायेगें।
अब बात करते है जातिगत दमन की तो दमन किसका , इन अपराधियों केा जब निपटाया जाता है तो सरकार पर आरोप लगता है कि वह जाति विशेष का दमन कर रही है ।सोशल मीडिया पर माहौल बनाया जा रहा है सरकार इनकेा विरोध में काम कर रही है। दूसरे जाति के अपराधी को बताकर उत्पीडन की बात कही जाती है। मैं उनसे यह पूछना चाहता हूं यूं टयूब पर अपना विडियों डालने वाले व ब्राहमणों के दमन की बात करने वाले विजय मिश्रा पर किनकी हत्या की आरोप है वह सभी ब्राहमण ही है। एक नही दो नही दर्जनों , रमाकांत उमाकांत पर किनके हत्या का आरोप है, सभी यादव है। अतीक अहमद पर कितने मुसलमानों की हत्या का आरोप है एक मात्र राजूपाल को छोड दिया जाय तो किसी हिन्दू की हत्या का आरोप नही है।डी पी यादव ने किसी जमीन हडपी या हत्यायें की ज्यादातर यादव ही है। अब यह लोग अगर जातिगत प्रतिनिधित्व की बात करें तो बात ओझी है। सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वालों को यह समझना चाहिये कि अपराधी की कोई जाति नही होती , वह समाज का अपराधी होता है इसलिये उसे खत्म कर देना ही उचित है।बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश केा आतंक से मुक्त होना जरूरी है।