रामायण और महाभारत संसार के श्रेष्ठतम ज्ञान ग्रंथ है। महाभारत के विषय में तो कहा गया है कि “जो कुछ यहां है वही सब जगह है, जो यहां नहीं है वह कहीं नहीं है”। आजकल दोनों महाग्रंथों की कथा का फिल्मी रुपांतर साथ-साथ ही टेलीविजन पर प्रसारित हो चुका हैं। शिक्षाएं तो बहुत हैं लेकिन जो एक बात मुझे बहुत स्पष्ट रूप से समझ में आ रही है वह यह है कि हर युग की एक समयावधि होती है और हर युगपुरुष का भी एक समय होता है। युग परिवर्तन के साथ युगपुरुष और उनके मूल्य क्षीण होने लगते हैं और फिर नये युग पुरुष आते हैं नये मूल्यों के साथ। वे सनातन मूल्यों की पुनर्व्याख्या और पुनर्स्थापना करते हैं।न शक्ति, न सत्ता और न विजय किसी के पास स्थाई रूप से रहती है। सत्ता, शक्ति, विजय और इससे संबंधित हर वस्तु संक्रमणीय (transitional) है।
सहस्त्रबाहु के अत्याचारों का कोई अंत नहीं था। उसे लगता था उससे बड़ा शक्तिशाली कोई नहीं। वह अपराजेय है। उसकी सत्ता, शक्ति और दर्प का मर्दन भगवान परशुराम ने किया। फिर उस युग में उनके बराबर कोई नहीं। लेकिन श्रीराम के उदय के बाद वह क्षीण हो गए। रावण ने सभी देवताओं, गंधर्वों, मनुष्यों और जाने किन-किन को हरा दिया। इंद्रजीत ने तो इंद्र को बंदी बना लिया। सोने की लंका, कितना उन्नत वैज्ञानिक ज्ञान, अपराजेय वीरों से भरा हुआ दरबार और परिवार। रावण को लगा कि वह अपराजेय है। उसे कोई जीत नहीं सकता। श्रीराम ने उसका दर्प चूर चूर कर दिया। सोने की लंका ठह गई। राम का युग आरंभ हो चुका था। लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, अंगद को लगने लगा उनके समान कोई वीर नहीं; आखिर उन्होंने रावण को हराया है। भगवान बाल्मीकि शिष्य, दो छोटे-छोटे ऋषि कुमारों ने उन सभी का दर्प चूर-चूर कर दिया। राम का युग खत्म हो चुका था, लव-कुश का युग प्रारम्भ हो चुका था।
और यही सिलसिला चलता रहा।
उधर महाभारत में गंगा पुत्र देवव्रत जैसा कोई वीर नहीं, कोई धनुर्धर नहीं। यौवन और शस्त्र शक्ति के मद में चूर काशीराज की सभा से उनकी तीन कन्याओं को बलात उठा कर ले आए, कोई कुछ न कर सका। वह उनका युग था। परशुराम शिष्य होने का बहुत घमंड था। द्रोणाचार्य शिष्य अर्जुन ने विराट युद्ध में उनके दर्प को चूर-चूर कर दिया। अर्जुन का युग प्रारंभ हो चुका था। अर्जुन ने उस युग के समस्त वीरों को हराया, महाभारत का युद्ध जीता। भीष्म-पितामह, आचार्य द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण, जयद्रथ इत्यादि सब धराशाई हुए। अर्जुन के बराबर कोई योद्धा नहीं। वह अर्जुन का युग था, उसे अपने गाण्डीव पर बहुत गर्व था। बस एक दिन कुछ भीलों ने अर्जुन को उसके गाण्डीव के साथ बंदी बना लिया। ना दिव्यास्त्र काम आए, ना गुरु द्रोणाचार्य द्वारा दी गई महान शिक्षा, ना पिता इंद्र सहित विभिन्न देवताओं को द्वारा दिए गए दिव्यास्त्र, न ही महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्ति का अनुभव। अर्जुन का युग समाप्त हो रहा था नए युग की शुरुआत हो रही थी।
यूनान से चला हुआ एलेग्जेंडर विश्व विजय की कामना लेकर निकला था। कहीं हार उसे छू तक नहीं सकी। लेकिन धनानंद के मगध की सीमाओं में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं हुई । वितस्ता (झेलम) तो पार कर लिया लेकिन व्यास को पार करने के पहले ही पौरव के पुरू ने ऐसे दांत खट्टे किए कि अलेक्जेंडर जीतकर भी हार सा गया। सैनिक साथ छोड़ने लगे और वह स्वयं घायल होकर वापस चला गया। घर पहुंचने के पहले ही मृत्यु हो गई। एलेग्जेंडर का युग खत्म हो रहा था । धनानंद का घमंड उसे पागल कर चुका था उसके अत्याचार कमजोर, गरीब और ब्राह्मणों पर भी बढ़ते जा रहे थे। फिर आया विष्णु गुप्त चाणक्य। चंद्रगुप्त को प्रशिक्षित कर धनानंद की सत्ता, राज्य और परिवार को जड़ से उखाड़ फेंका। धनानंद का युग समाप्त हुआ चंद्रगुप्त का प्रारंभ हुआ। कोई सोच नहीं सकता था पारसीक (पर्सिया/ईरान) से लेकर कलिंग तक फैला हुआ मौर्य साम्राज्य का भी कभी पतन होगा।
पुष्यमित्र शुंग ने उनकी सनातन विरोधी/ बौद्ध समर्थक नीतियों के कारण अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ को उसके ही सैनिकों के समक्ष हत डाला और स्वयं राजा हुआ । मोर्यों का युग समाप्त हुआ और शुंगों का प्रारंभ हुआ। पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा की “जिसके माथे पर तिलक नहीं होगा उसका सिर काट दिया जाएगा”। सभी को सनातन धर्म को स्वीकार करना पड़ेगा। सनातन धर्म का पुनरोत्थान प्रारंभ हुआ और शुंगों का उदय हुआ था।शुंग, सातवाहन, कण्व, गांग, हर्षवर्धन और फिर कितने ही राजपूत राजा। कई सौ सालों तक शासन करते रहे। सनातन धर्म की सत्ता इन राजाओं द्वारा चलाई जाती रही। बीच में छोटे-बड़े बहुत से राजा आये और गए। फिर मुसलमानों/मुगलों का युग आया और पुष्यमित्र शुंग द्वारा की गई घोषणा के बिल्कुल विपरीत घोषणाएं हुई। घोषणाएं की गईं “जिनके सिर पर तिलक होगा उनका सिर काट दिया जाएगा” यह शुंग द्वारा शुरू किए गए युग का अंत हो रहा था । म्लेक्षों के युग का प्रारंभ हो रहा था। हिंद महासागर से हेरात तक फैला उनका साम्राज्य, लगता था कभी खत्म नहीं होगा।
अंग्रेज आए और आखरी मुगल बादशाह को देश निकाला दे दिया, रंगून में। “अपराजेय” मुगल साम्राज्य खत्म हो चुका था। अंग्रेजों के राज का उदय हुआ था। कई वर्षों तक लगा अंग्रेजों का राज्य कभी खत्म नहीं होगा। उनके राज्य में सूरज नहीं डूबता था। साम्राज्य के एक कोने में डूबता है तो दूसरे में उगता है। इनका साम्राज्य कैसे खत्म होगा? वह अंग्रेजों का युग था। आज अटलांटिक महासागर में अपने छोटे से द्वीप में इंग्लैंड अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा हैं। उनका युग समाप्त हो चुका था।
यह स्वतंत्र भारत के नागरिकों का अपना युग है। हर युग का एक नायक होता है, उसके कुछ मूल्य होते हैं। लेकिन ना तो नायक स्थाई होता है, ना उसके मूल्य, ना उसकी विजय, न उसका साम्राज। आने वाली हर पीढ़ी अपने युग का स्वयं निर्माण करती है, अपने नायक चुनती है। अपने नायक बनाती है। परंतु संघर्ष, और परिणाम स्वरुप बलिदान और विध्वंस के बिना यह परिवर्तन सम्भव नहीं होता। आइए हम भी अपने सुयोग्य नायक चुने और अपने युग का निर्माण करें।