नागरिकता संशोधन अधिनियम दुराग्रहियों की विक्षिप्त मानसिकता का शिकार

नागरिकता संशोधन अधिनियम स्पष्ट रूप से उन अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए लाया गया जो कभी अखण्ड भारत के अंग रहे देशों में अपनी उपासना पद्धति के कारण प्रताड़ित और वंचित कर दिये गये हैं। बाल की खाल निकालने वाले कभी यह कहते हैं कि 1947 में तो जनगणना हुई ही नहीं तो अल्पसंख्यकों के प्रतिशत किस प्रकार निकाले गये? कैसे मूढ़मति लोग हैं जो आँकड़े उपलब्ध नहीं होने का हवाला देकर कथन की विश्वसनीयता को नकारते हैं और आँकड़ों की उपलब्धता होने पर उसे असत्य करार देते हैं। ऐसा उन्हीं परिस्थितियों में होता है जब हठधर्मिता और कट्टरपन्थिता अपने चरम पर होती है। कोई भी अत्याचारी स्वयं को अत्याचारी कब कहलाना चाहता है? वह अपने अत्याचार को अनेक कुतर्कों के माध्यम से उचित ही ठहराना चाहता है। क्या इस तथ्य से इनकार किया जा सकता है कि जिन तीन देशों के अल्पसंख्यकों को भारत में शरण देने और नागरिकता प्रदान करने का संकल्प लिया जा रहा है उन देशों में स्वतन्त्रता के पश्चात अभूतपूर्व ढंग से अल्पसंख्यकों की संख्या में ह्रास हुआ है। प्रतिशत पर न जायें तो भी यह सत्य है कि उन अल्पसंख्यकों का औरंगजेबकाल की भाँति धर्मान्तरण, अपहरण, बलात्कार और प्रताड़ना केवल इसीलिए किया गया क्योंकि वे इस्लाम धर्म के अनुयायी नहीं थे। क्या इस्लाम धर्म की उपासना न करने वालों को सदैव हिंसा का ही शिकार होना पड़ेगा? इन लोगों को आखिर कहाँ शरण मिलेगी? इनके दु:ख का निवारण करने के लिए कौन-सा देश आगे आयेगा? क्या भारत को छोड़कर इन्हें कहीं अन्यत्र ससम्मान जीवन व्यतीत करने का विकल्प शेष है?

इन प्रश्नों का उत्तर न देना पड़े, इसलिए देश में जहाँ-तहाँ हिंसक आन्दोलनों को उग्रतर करने की परिपाटी निकल पड़ी है। स्वतन्त्रता के पश्चात मुस्लिम तुष्टिकरण की प्रतिस्पर्द्धा में बहुसंख्यकों पर अत्याचार करना एक फैशन बनता गया जिसकी परिणति आज खुलकर सम्मुख आ रही है। बात तीन देशों के अल्पसंख्यकों की हो रही है किन्तु हमारे देश के कुछ प्रगतिशील अविवेकी बुद्धिमान अपनी सत्ता समाप्त होने की टीस को मुसलमानों पर अत्याचार करार देने का कुत्सित प्रयास करने में संलग्न हो गये। भारत के मुसलमानों पर इस नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रतिकूल प्रभाव किस प्रकार पड़ेगा, इसका उत्तर उनके पास है ही नहीं लेकिन अपप्रचार में संलग्न ये बुद्धिहीन बुद्धिजीवी इसे मुसलमानों पर अत्याचार करने वाला अधिनियम बता रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें जाति, धर्म, सम्प्रदाय और वर्ण के नाम पर मानवता में विभेद करके सत्ता सुख की आदत पड़ चुकी थी जिसे अब इस देश ने नकार दिया है।

इन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि इस प्रकार का ध्रुवीकरण करने का उनका प्रयास देश को हिंसा की गहनतम ज्वाला में झोंकने की ओर अग्रसर करने वाला है। ऐसा नहीं है कि उन्हें यह ज्ञात नहीं कि उनके इन प्रयासों से देश में सामाजिक समरसता को भीषण आघात पहुँचेगा, वे जानबूझ कर देश में अशान्ति का वातावरण उत्पन्न करना चाहते हैं ताकि पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल करने में मदद मिल सके। कांग्रेस के तथाकथित वरिष्ठ नेता पाकिस्तान जाकर भारत के प्रधानमन्त्री के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने में कोई संकोच नहीं करते हैं किन्तु पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध कहने के लिए उनके पास शब्दों का अभाव हो जाता है। साम्प्रदायिकता आग में देश को झोंकने वाले इन नेताओं से देश की जनता को सतर्क रहना ही होगा अन्यथा ये हिंसा की जो आग भड़काने का प्रयास कर रहे हैं उससे भारत के अल्पसंख्यकों के लिए गम्भीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। परोक्ष रूप से ये भारत के अल्पसंख्यकों में हलचल पैदा करके बहुसंख्यकों की भावनाओं को भड़काने में लगे हुए हैं ताकि भारत के बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के बीच भीषण संघर्ष प्रारम्भ हो जाये और ये उस ज्वाला में अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक सकें।

देश की जनता को भी यह समझना होगा कि देश की अखण्डता, देश के सम्मान, देश की समरसता, देश की सहिष्णुता और देश की संस्कृति को आहत करने वाले ये लोग देश की बात करते हुए मिलेंगे लेकिन बन्द कमरों में ये शत्रु देशों का ही पक्ष प्रबल करने की योजना बनाते हुए मिलेंगे। सरकार जब एक ओर देशवासियों और सीमाओं की सुरक्षा के प्रयत्न में अनवरत लगी हुई तो दूसरी ओर ये षडयन्त्रकारी विभिन्न रूपों में देश में अशान्ति का वातावरण पैदा करने में तत्पर हैं। चूहे की भाँति ये देश को कुतरने में संलग्न हैं और साम्प्रदायिक सौहार्द्र स्थापित न होने देने के लिए कटिबद्ध हैं। इन्हें न तो देश के मुसलमानों से कुछ लेना-देना है और न ही देश के अन्य समुदायों से। इन्हें मात्र सत्ता चाहिए भले ही वह मनुष्यों की लाशों पर ही क्यों न निर्मित हो।

मैं अपने मुसलमान भाइयों से भी निवेदन करना चाहूँगा कि वे इन षडयन्त्रकारी और देशद्रोही लोगों की मंशा को उचित रूप से समझें और उसका विश्लेषण करें। मैं सरकार की ओर से उन्हें आश्वस्त करना चाहता हूँ कि भारत जैसे देश में उनका किसी भी प्रकार से अहित नहीं होने वाला है। हाँ, कानून का उल्लंघन करने वाला भले ही किसी भी धर्म या सम्प्रदाय का होगा तो उसे दण्डित तो किया ही जायेगा। यदि कहीं कोई असन्तोष है तो भारत की न्यायपालिका पर भरोसा रखिए, यदि कहीं से कोई न्याय नहीं मिलता है तो न्यायपालिका आपको अवश्य न्याय देगी। हिंसा का मार्ग अपनाने से समस्या का समाधान तो नहीं ही हो सकेगा किन्तु समस्या जटिल से जटिलतर अवश्य होती जायेगी। हमारे देश की संस्कृति मनुष्य मात्र को प्रधान मानती है। यदि मानवता जीवित रहेगी तो ही धर्म का अनुपालन हो पायेगा, मानवता की राह में यदि धर्म आड़े आता है तो वहाँ संशोधन अनिवार्यत: कर देना चाहिए। धर्म के नाम पर मनुष्य का वध कदापि उचित नहीं। सभी लोग अपने-अपने धर्म का अनुसरण करें किन्तु मानवता को सर्वोपरि मानें। यही समरसता का सार है।

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