राफेल फोबिया से ग्रस्त कांग्रेस


भ्रष्टाचार और कांग्रेस का चोली-दामन का साथ है। कांग्रेस की यह धारणा है कि सत्ता केवल भ्रष्ट साधनों से धन अर्जित करने का एक सुगम साधन है। यही कारण है कि देश की सुरक्षा को भी दाँव पर लगाने में कांग्रेस कभी गुरेज नहीं करती है। उसे इस परिपाटी पर पूर्ण विश्वास है कि रक्षा सौदों में दलाली के माध्यम से कुछ मोहरे दाँव पर लगा देने से स्वत: धन की प्राप्ति हो जाती है। वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती है कि देश की रक्षा बिना दलाली के भी सम्भव है। आज जब दो देशों की सरकारों ने बिना किसी बिचौलिये के माध्यम से रक्षा सहयोग पर सहमति जताते हुए विमानों का सौदा किया तो कांग्रेस को इस बात ने परेशान कर दिया कि हमने तो इस प्रकार के सौदों में अकूत सम्पदा एकत्र की थी और छीछालेदर भी हुआ तो यह सरकार रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार से परे कैसे है? सावन के अन्धे को बारहो मास हरियाली ही दिखाई देती है उसी प्रकार बिना भ्रष्टाचार के रक्षा सौदों की कल्पना कांग्रेस की संस्कृति में नहीं है।

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के बचकाने बयान के कारण फ्रांस के राष्ट्रपति को स्पष्टीकरण देना पड़ा। यह स्थिति कितनी असहज हो सकती है इसकी कल्पना करना कठिन है। इतनी पुरानी पार्टी के अध्यक्ष को स्वयं यह ज्ञात नहीं कि उनका वास्तविक प्रश्न क्या है। क्या वे इस विमान सौदे को उचित नहीं मानते? या क्या वे सौदे की प्रक्रिया को उचित नहीं मानते? या क्या वे विमान के मूल्य पर प्रश्न खड़ा करना चाहते हैं? या क्या वे अम्बानी की कम्पनी को विमान के निर्माण का दायित्व मिलने पर प्रश्न खड़ा करना चाहते हैं? इसके अतिरिक्त कोई प्रश्न उनके सम्मुख नहीं है जिसके लिए वे संयुक्त संसदीय समिति का गठन कराना चाहते हैं। कांग्रेस के शासनकाल में बोफोर्स दलाली (1987), हर्षद मेहता काण्ड (1992), केतन पारेख शेयर घोटाला (2001), सॉफ्ट ड्रिंक कीटनाशक मुद्दा (2003), टू जी स्पेक्ट्रम केस (2011) तथा वीवीआईपी चॉपर घोटाला (2013) संयुक्त संसदीय समितियाँ गठित की गयीं किन्तु उनका हश्र उन्हें ज्ञात है। कांग्रेस को न तो देश की संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास है और न देश की शासन व्यवस्था पर। इसका कारण है कि भाजपा सरकार से पूर्व देश की शासन व्यवस्था का पर्याय कांग्रेस पार्टी थी। कांग्रेस पार्टी की सरकार में वही संविधान होता था जो गांधी परिवार के सदस्यों की इच्छा होती थी। अपने मनोनुकूल सरकारी संस्थाओं का उपयोग करने की कला में कांग्रेस निपुण थी जिसके माध्यम से वह विपक्षी दलों में भय उत्पन्न करके मनमाने ढंग से देश की सम्पदा को स्विस बैंकों तक पहुँचाया करती थी। अब यह कार्य सम्भव नहीं हो पा रहा है और वर्तमान सरकार देश के बाहर और भीतर बिचौलियों के प्रभुत्व को समाप्त करके देश की सम्पदा का संरक्षण कर रही है इसलिए उसे वर्तमान सरकार की कार्यप्रणाली से क्षोभ है।

राफेल सौदे का प्रारम्भ कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में प्रारम्भ हुआ था। यदि कांग्रेस को देश की सुरक्षा का ध्यान होता तो वह अपने कार्यकाल में इस सौदे को परिणति तक पहुँचा सकती थी। किन्तु सौदे में दलाली की पर्याप्त गुंजाइश न हो पाने के कारण इसे लटका दिया गया। अब जब प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए अति अनिवार्य विमान की इस खरीद को अमली जामा पहना दिया तो कांग्रेस के खेमे में खलबली मच गयी है। उन्हें आधुनिक तकनीक से युक्त विमान के मूल्य और सामान्य विमान के मूल्य में अन्तर करना केवल इसलिए कठिन लग रहा है कि उनके पास नरेन्द्र मोदी को घेरने और उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के लिए कोई अन्य मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है। कांग्रेस न तो संसद में जवाब सुनने के लिए तैयार है और न कोई तथ्य प्रस्तुत करने के लिए तैयार है। वे मानसिक रूप से इतने असन्तुलित हो चुके हैं कि एक काल्पनिक टेप को इस विमान सौदे में किसी भ्रष्टाचार का प्रमाण बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं और हास्यास्पद बात तो यह है कि वे गोवा के जिस मन्त्री का टेप होने का हवाला दे रहे हैं वे स्वयं इसे हेर-फेर कर बनायी गयी रिकार्डिंग बताकर इसे साफ तौर पर अस्वीकार कर चुके हैं। उन्होंने स्वयं इसकी फोरेंसिक जाँच कराने का भी आग्रह किया है।

कुल मिलाकर केवल इतना कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपनी भ्रष्टाचारी संस्कृति से न तो कभी मुक्त रही है और न कभी मुक्त हो सकेगी। आज देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रतिष्ठा मिली है वह इससे पूर्व कभी नहीं मिल पायी थी। देश में चारों ओर विकास की बयार निकल पड़ी है और देश कांग्रेस के इस प्रकार अनर्गल प्रलापों पर तटस्थ है। उसे वर्तमान प्रधानमन्त्री पर भरोसा है जिसका निर्वहन शत-प्रतिशत ईमानदारी के साथ हमारे प्रधानमन्त्री और हमारी सरकार कर रही है। लोकसभा 2019 के चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया जा सकता है किन्तु उसकी सुई फिर भी कांग्रेस की ओर ही घूमती हुई दिखाई देगी। देश का कायाकल्प होना प्रारम्भ हो चुका है और प्रगति के इस रथ का रुकना अब सम्भव नहीं है।

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