क्रीमी लेयर को लेकर विवाद

 क्रीमी लेयर  पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करनी चाहिए तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। पीठ ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि जैसे ओबीसी कैटगरी पर क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू होता है, उसी तरह SC/ST कैटगरी में भी लागू होना चाहिए।

आरक्षण व्यवस्था में क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल फिलहाल अन्य पिछड़े वर्ग कैटगरी के तहत उन सदस्यों की पहचान के लिए किया जाता है जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से उसी कैटगरी के पिछड़े लोगों के मुकाबले समृद्ध हैं। क्रीमी लेयर के तहत आने वाले वाले लोग सरकार की शैक्षिक, रोजगार और अन्य व्यावसायिक लाभ योजनाओं के लिए पात्र नहीं माने जाते हैं।क्रीमी लेयर शब्द 1971 में सत्तानाथन आयोग द्वारा पेश किया गया था। तब आयोग ने निर्देश दिया था कि क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सिविल सेवा के पदों में आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।

 फिलहाल ओबीसी कैटगरी के तहत क्रीमी लेयर में परिवार की सभी स्रोतों से कुल आय 8 लाख रुपये निर्धारित की गई है। यह सीमा समय-समय पर बदलती रहती है।1992 के इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण को बरकरार रखने के बाद, ओबीसी के बीच क्रीमी लेयर के मानदंड निर्धारित करने के लिए सेवानिवृत्त जज आरएन प्रसाद के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। इस समिति के सुझाव पर 8 सितंबर 1993 को, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने कुछ रैंक/स्थिति/आय वाले लोगों की विभिन्न श्रेणियों को सूचीबद्ध किया, जिनके बच्चे ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते थे।

1971 में सत्तानाथन समिति ने क्रीमी लेयर के तहत पिछड़े परिवारों की सभी स्रोतों से माता-पिता की कुल वार्षिक आय प्रति वर्ष एक लाख रुपये निर्धारित की थी, जिसे 2004 में संशोधित कर 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष, बाद में 2008 में 4.5 लाख, 2013 में 6 लाख और 2017 में 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष कर दिया गया। डीओपीटी ने निर्धारित किया था कि आय सीमा हर तीन साल में संशोधित की जाएगी, हालांकि, पिछले संशोधन के बाद से यह तीन साल से अधिक हो गया है।जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, उनकी सभी स्रोतों से कुल वार्षिक आय 8 लाख रुपये प्रति वर्ष। जिन बच्चों के माता-पिता सरकारी नौकरी में हों और उनका पद व रैंक प्रथम श्रेणी के अधिकारी का हो।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकारें कोटे के अंदर कोटा का वर्गीकरण कर सकती हैं। वह वैधानिक माना जाएगा। इसके अलावा एससी-एसटी कैटगरी के तहत क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए समिति बनाई जा सकती है, जो क्रीमी लेयर के तहत कुल वार्षिक आय का निर्धारण कर सकती है। इसके तहत ऐसे लोगों को आरक्षण से वंचित किया जा सकता है, जो कैटगरी की अन्य जातियों के लोगों मुकाबले अधिक संपन्न हों और आर्थिक रूप से सशक्त हों। इसमें दलितों के अंदर महादलित जैसा वर्गीकरण हो सकता है, जैसा कि पिछड़ा वर्ग के तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग होता है।

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 क्रीमी लेयर  पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करनी चाहिए तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। पीठ ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि जैसे ओबीसी कैटगरी पर क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू होता है, उसी तरह SC/ST कैटगरी में भी लागू होना चाहिए।

आरक्षण व्यवस्था में क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल फिलहाल अन्य पिछड़े वर्ग कैटगरी के तहत उन सदस्यों की पहचान के लिए किया जाता है जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से उसी कैटगरी के पिछड़े लोगों के मुकाबले समृद्ध हैं। क्रीमी लेयर के तहत आने वाले वाले लोग सरकार की शैक्षिक, रोजगार और अन्य व्यावसायिक लाभ योजनाओं के लिए पात्र नहीं माने जाते हैं।क्रीमी लेयर शब्द 1971 में सत्तानाथन आयोग द्वारा पेश किया गया था। तब आयोग ने निर्देश दिया था कि क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सिविल सेवा के पदों में आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।

 फिलहाल ओबीसी कैटगरी के तहत क्रीमी लेयर में परिवार की सभी स्रोतों से कुल आय 8 लाख रुपये निर्धारित की गई है। यह सीमा समय-समय पर बदलती रहती है।1992 के इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण को बरकरार रखने के बाद, ओबीसी के बीच क्रीमी लेयर के मानदंड निर्धारित करने के लिए सेवानिवृत्त जज आरएन प्रसाद के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। इस समिति के सुझाव पर 8 सितंबर 1993 को, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने कुछ रैंक/स्थिति/आय वाले लोगों की विभिन्न श्रेणियों को सूचीबद्ध किया, जिनके बच्चे ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते थे।

1971 में सत्तानाथन समिति ने क्रीमी लेयर के तहत पिछड़े परिवारों की सभी स्रोतों से माता-पिता की कुल वार्षिक आय प्रति वर्ष एक लाख रुपये निर्धारित की थी, जिसे 2004 में संशोधित कर 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष, बाद में 2008 में 4.5 लाख, 2013 में 6 लाख और 2017 में 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष कर दिया गया। डीओपीटी ने निर्धारित किया था कि आय सीमा हर तीन साल में संशोधित की जाएगी, हालांकि, पिछले संशोधन के बाद से यह तीन साल से अधिक हो गया है।जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, उनकी सभी स्रोतों से कुल वार्षिक आय 8 लाख रुपये प्रति वर्ष। जिन बच्चों के माता-पिता सरकारी नौकरी में हों और उनका पद व रैंक प्रथम श्रेणी के अधिकारी का हो।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकारें कोटे के अंदर कोटा का वर्गीकरण कर सकती हैं। वह वैधानिक माना जाएगा। इसके अलावा एससी-एसटी कैटगरी के तहत क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए समिति बनाई जा सकती है, जो क्रीमी लेयर के तहत कुल वार्षिक आय का निर्धारण कर सकती है। इसके तहत ऐसे लोगों को आरक्षण से वंचित किया जा सकता है, जो कैटगरी की अन्य जातियों के लोगों मुकाबले अधिक संपन्न हों और आर्थिक रूप से सशक्त हों। इसमें दलितों के अंदर महादलित जैसा वर्गीकरण हो सकता है, जैसा कि पिछड़ा वर्ग के तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग होता है।

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