हमारे यहां मान्यता है कि किसी भी शुभ काम के लिए जाने से पहले घर से निकलते समय दही-चीनी का सेवन करना चाहिए इससे वह काम अच्छे से संपन्न होता है | आज भी कई लोग घर से बाहर निकलने से पहले दही-चीनी खाकर निकलते हैं |
दही एक दुग्ध- उत्पाद है जिसका निर्माण दूध के जीवाणु के किण्वन द्वारा होता है| दूध को जमा कर दही बनाया जाता है | दूध को गर्म करके थोड़ा सा दही उस में डाला जाता है | दूध को दही में परिवर्तित करने वाला रेनिन नामक एंजाइम होता है |
बिना गर्म किए हुए दूध में पहले से ही लेक्टोबेसिलस नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) मौजूद होते हैं | दूध को जब हम 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड पर गर्म करके इसमें थोड़ा सा पुराना दही मिलाते हैं दही बनाने हेतु तो उसमें मौजूद लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु बढ़ने लगता है | यह जीवाणु दूध में मौजूद लेक्टोज (lactose) को लैक्टिक एसिड (lactic acid) में बदल देते हैं | लैक्टिक एसिड के कारण है दही का स्वाद हल्का खट्टा या कड़वा लगता है |
दही में कौन से घटक होते हैं
100 ग्राम दही में-
ऊर्जा 60 कैलोरी
कार्बोहाइड्रेट 4.79
शर्करा 4.7
प्रोटीन 10.5
वसा 3.3 (संतृप्त 2.19, एकल संतृप्त 0.999)
कैल्शियम 121 mg
लौह 0.2 ml
ओमेगा -3
ओमेगा – 6
विटामिन A 102 unit
विटामिन सी 1 ml
जल 89%
विटामिन B6 2 ml
vitamin B12 3 ml
दही में दूध की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में कैल्शियम होता है | दही में जो बैक्टीरिया (जीवाणु) होते हैं अंग्रेजी में उसे प्रोबायोटिक बैक्टीरिया कहा जाता है क्योंकि यह बैक्टीरिया अपने शरीर में उपयोगी या सहायक है | दही में लाभदायक जीवाणु (Good bacteria) बहुत अधिक संख्या में होते हैं इस वजह से पेट, जेनिटल अंग में लैक्टोबैसिलस पाए जाते हैं | यह जीवाणु हमें बीमार नहीं करते बल्कि बीमार होने से बचाते हैं |
एक कप दही चलते फिरते अरबों जीवाणुओं का भंडार है | दही को आयुर्वेद की भाषा में पाचक जीवाणुओं का घर माना जाता है | दही स्वास्थ्य के लिए अत्यंत गुणकारी भोज्य पदार्थ माना जाता है | आयुर्वेदीय ग्रंथों चरक संहिता, सुश्रुत संहिता व अष्टांग हृदय आदमी दही को त्रिदोष नाशक, बल ,वीर्य तथा मांसवर्धक बताते हुए अमृत समान बताया गया है |
देसी गाय के दूध से बना दही बलवर्धक शीतल, पौष्टिक, पाचक और कफ नाशक होता है | भैंस के दूध से बना दही रक्तपित्त, बलवीर्य-वर्धक, स्निग्ध, कफ़कारक और भारी होता है | मक्खन निकाले दूध से बना दही शीतल, हल्का, भूख बढ़ाने वाला, वातकारक, दस्त रोकने वाला होता है|
दही दोपहर से पहले खाएं तो बेहद गुणकारी होता है | सुबह खाली पेट खाने से जल्दी हजम होता है और साथ ही एसिडिटी, पेट की गर्मी, जलन, अल्सर की समस्या से भी छुटकारा दिलाता है |
रात को दही खाना टालना चाहिए ऐसा वैद्य कहते हैं क्योंकि दही की तासीर ठंडी होती है | इसे रात में खाने से खांसी-जुखाम और फेफड़ों की बीमारी के साथ जोड़ों के दर्द की समस्या हो सकती है |
दही के साथ नमक नहीं खाना चाहिए क्योंकि नमक के कारण इसमें विद्यमान जीवाणु मरते हैं | दही में मीठी चीजें जैसे गुण, मिश्री आदि मिलाकर खाने का प्रचलन है| जन्माष्टमी में इसलिए भगवान कृष्ण को दही मिश्री का भोग लगाया जाता है | दही में मीठी चीजें डालने से इसमें मौजूद बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है और दही पहले से ज्यादा फायदेमंद हो जाता है |
शरीर के लिए प्रोटीन आवश्यक है
शरीर के निर्माण करने वाले तत्वों में प्रमुख प्रोटीन है | मानव शरीर का करीब 16% भाग प्रोटीन से बना होता है | प्रोटीन हमारी मांसपेशियों को मजबूत बनाता है साथ ही शरीर के संतुलन को बनाए रखने के लिए जरूरी है | प्रोटीन से हमारी हड्डियों, मांसपेशियों को मजबूत बने रहने में लाभ मिलता है | प्रोटीन की उचित मात्रा शरीर में होने से लगने वाली चोट, घाव आदि जल्दी ठीक हो जाते हैं |
दही में प्रोटीन की अच्छी मात्रा में उपलब्ध होने के कारण यह शरीर के लिए काफी उपयोगी है | दही शरीर में श्वेत रक्त कणिकाओं ( WBC ) की संख्या बढ़ाता है इससे रोग प्रतिकारक क्षमता का तेजी से विकास होता है | एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभाव से बचने के लिए आजकल डाक्टर भी दही खाने की सलाह देते हैं |
दही एक पौष्टिक खाद्य पदार्थ है | यह प्रोटीन,, कैल्शियम खनिज-पदार्थों का बहुमूल्य स्रोत है |
प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉक्टर एसी मैचीकाक के मुताबिक लैक्टिक एसिड की कमी से शरीर में शिथिलता आती है तथा त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं , बाल सफेद होने लगते हैं तथा बुढ़ापा असमय ही दरवाजे पर दस्तक दे जाता है |
बढ़ती उम्र के साथ पाचन नलियों में हानिकारक जीवाणुओं एवं क्षारों की वृद्धि से उत्पन्न विष रक्त में मिलकर वृद्धावस्था के लक्षण पैदा कर देते हैं | दही में लैक्टिक एसिड की प्रचुरता होती है तथा इसके सेवन से इन व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है |
दही के लैक्टिक एसिड जीवाणु आंतों के क्षार को बाहर निकालकर आंत के क्षार की विषताई को उत्तेजना प्रदान कर सक्रिय करते हैं | इससे पाचन की शक्ति बढ़ती है | दही रक्त के क्षार को भी घटाता है | दही आंत के क्षार के कणों को घटाता है इससे आंत का लचीलापन बढ़ता है तथा पाचन क्रिया तेज होती है | दही में पाए जाने वाले जीवाणु शरीर के अनेक रोगोत्पादक जीवाणुओं को नष्ट करते हैं | यह भोजन को पेट में सड़ने से बचाते हैं तथा जीवनी शक्ति एवं मस्तिष्क बल प्रदान करते हैं |
रक्त में छार की मात्रा बढ़ने से शरीर के जोड़ों पर सूजन आ जाती है इससे गठिया रोग हो सकता है | दही का सेवन रक्त के क्षार को घटाकर गठिया से बचाता है |
दही खाने से-
- पेट में गैस नहीं बनती |
- शरीर का पीएच संतुलित रहता है |
- पेट की गर्मी को शांत करता है |
- त्वचा के लिए फायदेमंद है |
- हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में लाभदायक |
- सिर के बालों के लिए उपयोगी |
- दांतो की मजबूती के लिए लाभप्रद |
- मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायक |
- लू से बचाता है |
- पेट भरे रहने का अनुभव होता है और यह एहसास लंबे समय तक बना रहता है | (बिहार झारखंड में दही चूड़ा खाने का प्रचलन है | )
दही और बीमारियों का उपचार
- नियमित दही खाने से आंतों का कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है |
- नियमित दही के सेवन से कब्ज की शिकायत नहीं रहती | बवासीर की मुख्य वजह कब्ज है |
- गुल्मवायु हिस्टीरिया में दही का सेवन लाभदाई है |
- अनिद्रा, काली खांसी में उपयोगी है |
- दस्त लगने पर दही चावल खाने से लाभ होता है |
- आधासीसा-दर्द (माइग्रेन-पेन) में दर्द शुरू होने से पहले सुबह सूर्योदय के समय दही चावल खाने से लाभ मिलता है |
- अगर आप के सर में डैंड्रफ ( रूसी ) है तो आप दही बालों में लगाकर रूसी से छुटकारा पा सकते हैं |
- दही में बेसन मिलाकर इसे उबटन की तरह लगाकर नहाने से पसीने की बदबू से छुटकारा मिलता है ।
दही भारतीय आहार परंपरा का अभिन्न रही है। दुर्भाग्यवश हमारी आहार परंपरा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कुुुुुटिल चाल की भेंट चढ़ती जा रही हैं। यहां खाद्य तेल का उदाहरण प्रासंगिक हैै। जो सरसों का तेल रसोईघरों की शान हुआ करता था उसे एग्रीबिजनेस कंपनियों ने ऐसा बदनाम किया कि वह रसोई से गायब ही हो गया। उसकी जगह पामोलिव और सोयाबीन के तेल नेे ले ली। कैंसर, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियां मुफ्त में आ गईं। जब सरसो के तेल में आर्जीमोन की अफवाह फैली थी तब मैं कृषि भवन के खाद्य तेल विभाग मेें था। इसलिए इस साजिश के बारे में जान पाया।
आप इसी तरह भारतीय आहार परंपरा के बारे मेें जागरूकता फैलाते रहें।
सादर