नई राह पर दलित राजनीति

देश की राजनीति में सालों से दलित चेहरा बनकर सत्ता का सुख भोगने वाले मायावती, चिराग पासवान, उदित राज और प्रकाश आंबेडकर जैसे कई दलित चेहरों की पॉलिटिक्स खतरे में आने लगी।दलित पॉलिटिक्स की नई पौध चंद्रशेखर आजाद, जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं को भी मिर्ची लगी।वहीं संजय पासवान और जीतन राम मांझी जैसे कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। राजनीति के जानकारों की मानें तो देश में आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दूरगामी असर देखने को मिलेगा। खासकर, दलितों के नेता कहने वाले अब अपने आपको दलित नेता नहीं, बल्कि दलितों के किसी एक जाति के नेता बन कर जाने जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश के दलित राजनीति में भी विभाजन ओबीसी जैसी जातियों की तरह ही होने लगेगा। ऐसे में एलजेपी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) के जीतनराम मांझी या फिर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर आजाद रावण हों या फिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती सबकी राजनीति जाति के अंदर बंध कर रह जाएगी क्योंकि, दलितों में ही कई जातियां ऐसी हैं, जिनको 75 सालों तक आरक्षण का लाभ कम मिला है या फिर न के बराबर मिला है।

कोटे के अंदर कोटा आरक्षण का एक अलग तरह से कैटेगरी होगा।इसमें एससी, एसटी कोटा में अब सब कैटेगरी बनाई जाएगी। इससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अंदर पिछड़ी जातियों में सब कैटेगरी बनाकर ज्यादा लाभ दिया जा सकेगा। ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित पॉलिटिक्स में विभाजन तय है।उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत और पूर्वी भारत से लेकर पश्चिम भारत तक दलितों की बहुत सारी जातियां हैं, जिनको आरक्षण का लाभ अभी तक नहीं मिला है।उनका सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक हालत अभी भी काफी खराब है।’

 ‘जिन दलित जातियों ने आरक्षण का लाभ लेकर मजबूत हुई है, उन जातियों के खिलाफ अन्य दलित तबके के जातियों में नाराजगी है। कुछ राज्यों ने जैसे पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु ने दलित जातियों में सब कैटेगराइजेशन किया है, जिसका विरोध उन दलित जातियों ने किया है जो सबसे ज्यादा आरक्षण का लाभ लेने में अभी तक सफल रहे हैं लेकिन, अब अभी तक आरक्षण का लाभ लेने वाली ज्यादातर जातियों के नेताओं ने यह तर्क देना शुरू कर दिया है कि सामाजिक व्यवहार की वजह से उनको आरक्षण का लाभ मिला था, वह आज भी हो रहा है। चिराग पासवान, चंद्रशेखर आजाद और मायावती भी इसी को आधार बना कर कोटे के कोटे का विरोध कर रहें हैं।

लोगों का कहना है कि राजस्थान में मीणा जाति ने एसटी आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ लिया है। लेकिन, झारखंड के संथाल या ओड़िशा या फिर छत्तीसगढ़ की दलित जातियों को अभी तक बहुत कम ही आरक्षण का लाभ मिला है।सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मूलतः सही लगता है। इसके लिए जिम्मेदार सरकार की नीतियां भी है।ऐसे में आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश और बिहार में भी दलित पॉलिटिक्स में विभाजन होगा। दलित पॉलिटिक्स अब पॉलिटिकली यूनाइटेड नहीं रहेगी। दलित पॉलिटिक्स के अलग-अलग कैंप बनेंगे।जैसे हरियाणा में जाटव-मोची समाज की पॉलिटिक्स अलग होगी और धानुक और वाल्मीकि समाज की पॉलिटिक्स अलग होगी।’

इसी तरह यूपी में जाटव समाज की पॉलिटिक्स अलग होगी और पासी, खटीक, वाल्मीकि की पॉलिटिक्स अलग होगी। इसी तरह बिहार में पासवान और रविदास समाज एक प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा होंगे। क्योंकि अगर सब कैटेगरी बनाया गया तो बिहार में सबसे ज्यादा नुकसान पासवान और रविदास समाज का होगा क्योंकि, अभी तक आरक्षण का बड़ा लाभ इन्हीं दो जातियों को मिलता रहा है।बिहार में मांझी, डोम और दूसरी अन्य दलित जातियां इनके विरोध में खड़ी होंगी क्योंकि, अभी तक बिहार में आरक्षण का लाभ इन जातियों को न के बराबर मिला है इसलिए जीतन राम मांझी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में खड़े हैं।

आपको बता दें कि दक्षिण के राज्य तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में दलित जाति में सब कैटेगराइजेशन को लेकर दलित जातियों में जबरदस्त संघर्ष हो रहा है।आंध्र प्रदेश और तेलांगना में माला और मड्डिका जाति में आपसी टकराव पिछले 20-25 साल से बना हुआ है। तमिलनाडु में भी इसी तरह से दलितों के जातियों में आपसी टकराव है। आरक्षण का लाभ लेने वाली दलित जातियां आरक्षण का विरोध कर रही है।इसी लिए तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलांगना जैसे राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

देखिए मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करता हूं। लेकिन, जात का आधार न बनाकर फैमिली या इंडिविजुअल आधार बना कर सब कैटेगरी का लाभ दिया जाए। देखिए मेरा एक गरीब भाई है।अगर जाति का आधार बनाया जाए तो वह आरक्षण के लाभ से वंचित रह जाएगा इसलिए मैं कह रहा हूं कि सरकार सोच समझकर इस पर फैसला ले।इसलिए खुलकर चर्चा हो और उसका डॉक्यूमेंटेशन न हो। शोध के साथ मायावाती चमार की नेता हैं और सब चमार उनके साथ है ऐसा नहीं है। चिराग पासवान के साथ सब पासवान है ऐसा नहीं है। देखिए दलित राजनीति समावेशक के तौर पर बढ़ रहा है। दलित राजनीति देश में नई दिशा की तलाश में है और वह चाहता है कि वह मुख्य धारा में जुड़ कर रहे।’

कुलमिलाकर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर यह होगा कि अब भारत की राजनीति में कोई भी दलित नेता अपने आपको सारे दलितों का नेता नहीं बोल पाएगा। कोई जाटव का नेता हो जाएगा, कोई खटीक का नेता हो जाएगा, कोई रविदास का नेता हो जाएगा। इसलिए उदित राज हों या चिराग पासवान या फिर चंद्रशेखर आजाद या जीतन राम मांझी दलित नेता न होकर एक जाति के नेता हो जाएंगे।

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