जब भी हम लोग इस्लामी आक्रमण जिहाद से संबंधित कोई कठोर लेख लिखते है तो अधिकतर बुद्धिजीवी यह कहते हुए बिदक जाते है कि यह एक साम्प्रदायिक पोस्ट है क्योंकि, वे मुस्लिमों के जेहाद से ज्यादा जीडीपी, विकास, रोजगार आदि के लिए चिंतित रहते है इसीलिए, आज जीडीपी की बात ही बता करता हूँ…!जब हमारी जीडीपी 10वीं सदी तक विश्व की 40% थी और हमारे मंदिर स्वर्ण भंडारों से भरे हुए थे तथा देश सोने की चिड़िया कहलाती थी…उस समय रेगिस्तान से आए मजहबी बर्बर वहशी लुटेरों ने हमारी मंदिरें तोड़ी और उनके स्वर्ण भंडार लूट कर ले गए।उन वहशी दरिंदों ने महिलाओं और लड़कियों को लूटा और घसीटते हुए अफगानिस्तान ले गए जहां उन्हें दो-दो दिनारों मे गुलामों की तरह बेचा।जब कभी आपकी व्यक्तिगत जीडीपी हाई हो और पर्यटन का इरादा हो तो आप एक बार अफगानिस्तान के शहर गजनी जरूर घूम आना…जहां एक स्तम्भ के नीचे लिखी एक इबारत -दरख्ते मीनार, निलामे दो दीनार, आपको तत्कालीन 40% जीडीपी को मुंह चिढ़ाती मिलेगी.. जिसका शाब्दिक अर्थ होता है कि इसी मीनार के पास लुटेरे गजनवी ने भारत से लाई लड़कियों और महिलाओं को 2-2 दीनार में नीलाम कर दिया था।
यहाँ तक कि…. जब भारत की जीडीपी 1725 तक पूरे विश्व की लगभग 24% थी… तो, उस समय चंद जहाजों पर बैठकर सुदूर यूरोप से आए कुछ तथाकथित व्यापारियों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया और हम देखते रह गए। 1857 के बाद ब्रिटिश सरकार ने जीडीपी के प्रोडक्शन हाउस हथकरघा उद्योग स्वरोजगार करने वालों टैक्स पर टैक्स लगाकर उनसे 45 ट्रीलियन डालर टैक्स को लूट कर उन्होंने हमारे देश के टुकड़े टुकड़े किए, बेतहाशा जुल्म ढाए और अत्याचार की सारी सीमाएं लांघ डाली।और, जब ये यूरोपियन विदेशी 1947 में देश से गए तब भारत की जीडीपी विश्व की कुल जीडीपी का मात्र 2% के बराबर रह गई थी। इसीलिए…. एक बात हमेशा याद रखनी चाहिये कि जीडीपी हमारी खुशहाली का एक कारक हो सकता है… लेकिन, यह खुशहाली कितने दिन रहेगी इसकी सुरक्षा जीडीपी नहीं दे सकता।
अभी… बहुत दिन नहीं हुए जब ढाका के मलमल के व्यापारी अपनी संपन्नता और विलासिता के लिए मशहूर थे।मगर, उनकी ये संपन्नता और खुशहाली और उनकी व्यक्तिगत जीडीपी मात्र कुछ ही दिनों में विस्थापित होकर भारत के शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गया।यही हाल पाकिस्तान मैं बसे हिंदू , सिख और सिंधी व्यवसायियों का हुआ।कराची में… एक समय पश्चिम भारत और अभी का पाकिस्तान का… सबसे संपन्न वर्ग 1947 में दिल्ली की सड़कों आधे अधूरे परिवार के साथ शरणार्थी बनकर भटक रहा था।उनकी संपन्नता की गवाही देते खबरें यदा-कदा आज भी आती हैं जब पता चलता है कि उनकी पुरानी हवेलियां तोड़ी जाती हैं.. तो, उनसे सोने के सिक्के और सोने की मूर्तियां निकलती है।यहाँ तक कि… अपने ही देश में एक वक्त कश्मीर में… कश्मीरी पंडितों के बड़े-बड़े सेब के बागान थे और अपने आलीशान जिंदगी जी रहे थे ।व्यक्तिगत तौर पर उनकी जीडीपी देश के अन्य लोगों से बहुत हाई थी…लेकिन, उन्हें भी जम्मू और दिल्ली की सड़कों पर शरणार्थी बनकर भटकने के लिए मजबूर होना पड़ा… और, आज तक भटक ही रहे है पिछले 30-40 साल से।अगर…. बहुत पीछे ना भी जाएँ तो वर्तमान में ही पश्चिम के विकसित और बहुत ऊंची जीडीपी वाले सारे राष्ट्र एक-एक कर धराशाई होते जा रहे है।स्वीडन का उदाहरण सब के सामने है।यही हाल यूरोप के कई देशों में है…।विश्व के सबसे ऊंची जीडीपी वाले अमेरिका मे हाल का अश्वेत आंदोलन और इस्लामी जिहाद प्रायोजित दंगे इसी जीडीपी के खोखलेपन को उजागर करता है।
असल में…. गिरती जीडीपी की विधवा विलाप के बीच ये तथ्य दिलचस्प है कि जब हमारी जीडीपी हाई थी…. तब, चीन मील दर मील हमारी जमीन कब्जा करता जा रहा था और, आज जब जीडीपी माइनस बताई जा रही है तब हम चीन से अपनी छीनी हुई जमीन वापस ले रहे है।इसीलिए…. तथाकथित जीडीपी और किसी भी अलाने-फलाने से ज्यादा जीवन और जीवन की सुरक्षा महत्वपूर्ण होती है।क्योंकि,जीडीपी फिर भी आ जाएगी लेकिन एक बार जीवन गया तो वो फिर नहीं आने वाला है।कारण साफ है कि आप जीडीपी बढ़ा के एक करोड़ का घर और 50 लाख की कार खरीदोगे और वे 50 रूपये के पेट्रोल बम फेंक के एक ही घंटे में सब स्वाहा कर देंगे।फिर, सड़क किनारे बोरे पर बैठ कर कैलकुलेट करते रहना कि किसकी जीडीपी कितनी बढ़ी।