दस्यु उन्मूलन या स्वउन्मूलन ?

कांग्रेस के शासनकाल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने जब क्षमा के नाम पर दस्युओं का उन्मूलन किया तो किस लिये , क्या उन्होने अपराध नही किया ।जो परिवार प्रभावित थे वह क्या इस देश के नही थे।जिनके घर लूट लिये गये और जिन्होने लूटा वह सरेआम घूम रहा है यह इंसाफ है। इसी तरह मुलायम सिंह यादव ने जब मुख्यमंत्री थे तब फूलन देवी का मुकदमा वापस लिया, जिसने 21 ठाकुरों की हत्या की थी और पूरे इरादे के साथ की थी। यह मान भी लिया जाय कि उन्होनें अत्याचार किया था तो उन 21 विधवाओं का क्या जो कि इस अत्याचार के एवज में अपना सबकुछ खो बैठी।मुलायम सिंह को यह बात समझ में नही आयी। ऐसा क्यों है।यह बात आज मै समझाता हूं।
कानून में प्रावधान है कि आप अपनी बात को लेकर जब भी थाने जायेगें और प्राथमिकी दर्ज होगेी सरकार बनाम प्रतिवादी ? यह फसाद की जड है जो अंग्रेज देकर गये और हमारे नामानिगारों ने आजतक पकड रखा है। विश्व के किसी देश में ऐसा नही है किन्तु भारत में है।आपका मुकद्मा सरकार लडती है। आप सिर्फ गवाह मात्र रहते हो और आपका कुछनही होता। सरकारी वकील आपकी तरफ से लडता है। आप चाहे तो अपना वकील कर सकते है लेकिन वह वैकल्पिक होता है पहले नंबर पर सरकारी वकील ही होता है दूसरे पर आपका वकील,सरकारी वकील चाहे तो सरकार के इशारे पर कुछ भी कर सकता है।यहां तक कि आपका मुकद्मा खत्म करने की सिफारिश कर सकता है ऐसा प्रावधान है।इसलिये दंडात्मक कानून में जब तक सरकार आपकी लडेगी तब तक सरकारी अधिकारी के खिलाफ कुछ ही कर पायेगें और प्रतिवादी हमेशा आप पर इसलिये हावी होगा क्योंकि आप वादी न होकर सिर्फ गवाह है।भले आप से सरकार कहती हो कि गरीबों का केस वह लडती है तो फिर अमीरों का केस सरकारी वकील क्यों लडता है इस बात का जबाब सरकार के पास नही है। सही मायने में यह केस ही लडना ही सरकार की दलाली को चरित्रार्थ करती है जो वह अंग्रेजी हूकूमत से सीख कर आयी है और यही उसका बल है जिसके सहारे वह जब चाहे आपको जिधर चाहे उलझा सकती है।
अब बात करते है स्वर्गीय अर्जुन सिंह की , तो वह कोई महात्मा तो नही थे जो इस काम के बदले कुछ नही लेते, बकायदा अपना दलाल छोड रखा था जो दस्युओं से बात करता था और उन्मूलन के लिये तैयार करता था फिर दस्यु आते थे और हथियार डालकर सम्मानित होते थे। उन्हें बदले में पैसा खेत आदि नया जीवन शुरू करने के लिये दिया जाता था। इतना सबकुछ वह करते थे तो बात यह भी उठती है कि उनकी लूट का माल ठिकाने कहां लगाया जाता था। क्योंकि उन्मूलन उन्ही का हुआ जो जेल गये और बरामदी हुई , जिनकी नही हुई वह तो आज भी मध्यप्रदेश के जंगलों में है या फिर जेलों मे ंसड रहें हैं । तो उन्मूलन किसका ? दस्युओ का या स्वर्गीय अर्जुन सिंह का ?उनका परिवार आज उसी दौलत के लिये लड रहा है।मां बेटे लड रहें है। जिस दौलत के लिये इतना सबकुछ किया वह दौलत अब अपना रंग दिखा रही है।
अब बात करते है मुलायम सिंह की, तो जब वह मुख्यमंत्री बने तो उन्हें फूलनदेवी की याद आयी , उन्होनें अर्जुन सिंह की तरह ही फूलन देवी पर से सारे मुकदमंे वापस लिये और भदोही से सांसद का उम्मीदवार बनाया । बूथ कैपरिंग से बनी। वीरेन्द्र सिंह ने कई दलीलें दी धांधली की लेकिन सपा की सरकार में एक न सुनी गयी और फूलनदेवी सांसद बन गयी। मुलायम सिंह भी सुर्खियों में रहे । मै मुलायम सिंह से यह पूछना चाहूंगा कि चंबल उप्र में आता है क्या और जहां फूलन ने बेहिसाब अपराध किया। मध्यप्रदेश की सरकार ने उसे जेल में रखा और आपने बेहमई की औरतों की क्यों नही सुनी। एक ने इरादन हत्यायें की , बेहिसाब हत्यायें की उसे निकालकर सांसद बना दिया और दूसरी तरफ 21 औरतों की पुकार आपके कान तक नही पहुंची। कहां है फूलन देवी का नाम , जैसे आपका समय के साथ खत्म हो गया उसी तरह वह भी खत्म हेा गया । अवशेष है जिन्हें आप समेट रहें है।
जरूरत है केन्द्र सरकार भारतीय दंड संहिता में सुधार करे जो कि गुलामी के दौर में यानि 1862 का बना हुआ है। उसमें सरकार बनाम प्रतिवादी की जगह वादी जगह प्रतिवादी करने की , ताकि गुलामी के दौर से पडी छाप से छुटकारा मिल सके । सीघे मामला न्यायालय मंे जाय और वादी के गवाह की जगह पुलिस गवाह बनी खडी रहे।मुकद्मा वापस लेने का अधिकार वादी के पास हो न कि सरकार के पास ? देश की जनता सरकार बनाती है तो निर्णय लेने का अधिकार सरकार के पास क्यों ?इस तरह तो हर अपराधी सरकार निकालकर अपने साथ कर लेगी और जैसा कि आज हो रहा है अपराधी नेता बन रहें है। मामले ठंडे बस्ते है चलता रहेगा । लोग तस्त्र रहेगें और सरकार अपना काम करती रहेगी।

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