रक्षा मंत्री का हालिया बयान बेहद महत्वपूर्ण

 पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(पीओके) के लोग अपने साथ हो रहे भेदभाव से आजिज आ चुके हैं और अब वे स्वयं भारत में विलय के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर देंगे।कुछ राजनीतिक प्रेक्षक लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इसे सियासी मान सकते हैं और संभव है कि इसके पीछे चुनावी लाभ लेने की मंशा हो, तो भी यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर में अवाम के साथ लगभग उसी तरह अत्याचारों का सिलसिला शुरू कर दिया है, जैसा करीब पचपन साल पहले उसने पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में किया था।

रक्षा मंत्री के इस कथन के पीछे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ का एक ताजा तीखा बयान भी है। इसमें उन्होंने कहा था कि फिलिस्तीन और कश्मीर की आजादी के लिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को अब निर्णायक रुख अपनाना होगा। यकीनन प्रधानमंत्री होने के नाते उनके पास गुलाम कश्मीर की असल तस्वीर होगी, जहां आए दिन मुल्क से अलग होने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले महीने ही इलाके के बड़े राजनीतिक नेता अमजद अयूब मिर्जा ने खुले तौर पर कहा था कि अब पाकिस्तान से अलग होने के लिए इस खूबसूरत घाटी के लोग छटपटा रहे हैं। वे जल्द ही हिंदुस्तान में विलय के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ने जा रहे हैं।

इस आंदोलन को बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन चला रहे सभी गुटों का भी समर्थन है। वादी के गिलगित बाल्टिस्तान में तो इस मसले पर अरसे से हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। नौबत यहां तक आई कि सरकार को चेतावनी जारी करनी पड़ी कि वहां साम्प्रदायिकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह मुस्लिमों को मुस्लिमों के खिलाफ उत्तेजित करता है। गिलगित इलाके में शिया आबादी बहुतायत में है। ईरान में सबसे अधिक शिया रहते हैं। उसके बाद भारत में शियाओं की संख्या है। पाकिस्तान सुन्नी बाहुल्य राष्ट्र है। पर, उसके कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में लगभग दस लाख शिया मुसलमान रहते हैं और जब तब वहां शिया – सुन्नी टकराव होता रहता है।पाक सरकार इसे साम्प्रदायिक तनाव बताती है। पाकिस्तान सरकार चुपचाप वहां सुन्नियों को बसाने का काम करती रही है। इसका विरोध भी समय-समय पर होता रहा है। हालत यह है कि सुन्नियों की आबादी शियाओं से करीब दोगुनी हो चुकी है। यह प्रांत ताजिकिस्तान, चीन और भारत के कारगिल – द्रास की ओर से जुड़ता है। चीन अपना ग्वादर तक जाने वाला गलियारा भी इसी क्षेत्र से बना रहा है। गिलगित के लोग इसके विरोध में रहते हैं। भारत में विलय की मांग के पीछे यह भी कारण है।

इस खूबसूरत वादी में लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इंटरनेट की सुविधा आए दिन छीन ली जाती है। रैली या सभा के लिए उन्हें इजाजत लेनी पड़ती है। सुन्नी नागरिक सशस्त्र बल के जवान उन पर चौबीसों घंटे नजर रखते हैं। कुछ समय पहले गिलगित में विरोध प्रदर्शन हुए तो लोग भारत के समर्थन में नारे लगाते देखे गए थे। एक सुन्नी मौलवी ने शियाओं पर तीखी टिप्पणी कर दी। इससे हालात बिगड़ गए।वर्षों से यह मांग भी होती रही है कि कारगिल मार्ग भी खोल दिया जाए, जिससे पर्यटक बेरोकटोक भारत भी आ सकें। लेकिन पाकिस्तान सरकार इस मांग को सख्ती से दबा देती है।

वास्तव में गिलगित – बाल्टिस्तान पाकिस्तान में होते हुए भी वहां के अन्य राज्यों की तरह नहीं है. उसे अधिक स्वायत्तता हासिल रही है। लेकिन दो-तीन साल से पाकिस्तान वहां के लोगों को हासिल हक चालाकी से छीनता जा रहा है भारत इस चीन-पाक आर्थिक परियोजना का विरोध भी इसलिए कर रहा है क्योंकि गिलगित -बाल्टिस्तान का बड़ा क्षेत्र इसमें शामिल है।भारत का कहना है कि यह कश्मीर का हिस्सा है और समूचे कश्मीर का विलय भारत में हो चुका है। इसलिए भारत का गिलगित इलाके को लेकर उठाया गया नया कदम और बयान चीन को चिंता में डालने वाला है। कम लोग यह जानते होंगे कि पाकिस्तान और चीन के बीच एक रक्षा संधि भी है। इस संधि के मुताबिक पाकिस्तान की किसी भी देश से जंग की स्थिति में चीन उसे अपने ऊपर आक्रमण मानेगा और पाकिस्तान को समर्थन देगा। शक्सगाम घाटी पाकिस्तान ने चीन को 1963 में एक समझौते के तहत उपहार में दे दी थी। 

ताजा सूचनाओं पर भरोसा करें तो पाकिस्तान चीन को गिलगित का एक बड़ा भू भाग मुफ्त देना चाहता है।इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान चीन आर्थिक गलियारा परियोजना के लिए चीन ने पाकिस्तान को करीब 22 अरब डॉलर कर्ज दिया है। इसे वापस लौटाना पाकिस्तान के लिए अगले सौ बरस तक भी मुमकिन नहीं होगा। इसीलिए वह क्षेत्र का बड़ा हिस्सा चीन को तोहफे के तौर पर देना चाहता है। इसलिए भारत के लिए वहां प्रत्येक जनआंदोलन अनुकूल होगा जो भारत में विलय की मांग करता हो।

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