दिल्ली के कई ईलाकों में भिखारियों पर सर्वे हो रहा था, क्योंकि दिल्ली जैसे महानगर में भीख मांगकर आदमी अपना गुजारा न करें तो क्या करें। बात चल ही रही थी कि एक छोटी सी बच्ची ने पीरागढ़ी चौराहे पर अपना करतब दिखाना शुरू किया । लालबत्ती की वजह से गाडियां खड़ी थी और करतब देखने वाले कारों से झांककर यह देख रहे थे कि क्या हो रहा है? इसके बाद जब करतब खत्म हुआ तो उस छोटी सी बच्ची ने मांगना शुरू किया। किसी ने एक रूप्या दिया, तो किसी ने दो रूप्या, किसी ने धिक्कारा तो किसी ने गालियां दी। इस पांच साल की नन्ही सी बच्ची इन सभी बातों से बेखबर कि किसी ने क्या दिया और किस ने नहीं , वह जो कुछ पायी , हाथों में लेकर पास की दुकान में गयी और खा पीकर फुर्सत हो गयी । उसके बाद उसकी मां आयी और पैसा मांगने पर, जब नहीं मिला तो उसकी पिटाई कर दी, यह काम भी चौराहे पर ही हो रहा था। किसी ने कुछ नहीं कहा और सभी अपनी अपनी डगर चले गये। क्या जो उन्होने किया यह सही था, इस बात पर किसी ने अपना दिमाग नहीं लगाया। यह बच्ची देश को क्या दे सकती है जब देश उसे यह सब कुछ देगा। इस पर विचार की आवश्यकता है। ये सभी बातें बातचीत के दौरान भाजपा के कद्दावर नेता संजय जोशी ने अपने बातचीत के दौरान कही।
संजय जोशी ने कहा कि दिल्ली की हालत बहुत खराब है कयोंकि कि यहां हर राज्य से लोग नौकरी की तलाश में आते हैं और जब नहीं मिलती है तो राहजनी करते हैं या फिर इसी तरह चौराहों पर भीख मांगने का काम करते हैं । उनका पूरा परिवार भीख मांगने का काम करता है। जिस राज्य के वह लोग है उन राज्यों को उनके लिये कुछ करना चाहिये लेकिन वह वहां भी भूखे मर रहे थे और दिल्ली में भी उनकी स्थित खाना बदोश वाली है। इससे देश का कौन सा भला होने वाला है।
संजय जोशी ने कहा कि राज्यों में पैसा जनता के उद्धार के लिये भेजा जाता है और लोग देश की राजधानी में या तो झुग्गी बनाकर रहते है और भीख मांगते है या फिर राहजनी करते हैं , तो इसका मतलब यह होता है कि जिस प्रदेश के यह भिखारी है उस प्रदेश की सरकार का काम ठीक नहीं है यह बात दिल्ली में भीख मांग रहे भिखारी बयान कर रहें हैं । केजरीवाल सरकार को ऐसे लोगों की पहचान कर उनको उनके राज्यों में वापस भेजना चाहिये क्योंकि शरण दूसरे देश में ली जाती है अपने देश में नहीं। दिल्ली को शरणार्थियों का शहर बना दिया गया है जिस पर कोई नीति उनको उनके राज्यों में भेजने के लिये बनानी चाहिये। नहीं तो कुछ दिनों में दिल्ली का नाम दर्द देने वाली दिल्ली बन जायेगी, जैसे शीला दीक्षित के कार्यकाल में दिल्ली को बलात्कारी दिल्ली कहा जाता था, और यह यही केजरीवाल कहा करते थे।
संजय जोशी ने कहा कि एक सर्वे इसी देश के कुछ हिस्सों का आया है, जिसे यहां की एक बेबसाइट एक्सपोजर डाट काम ने जारी किया है जिसके अनुसार भारत में 78000 भिखारी बारहवीं पास हैं ? चौंकिए मत, शैक्षिक बेरोजगारों को लेकर पिछले हफ्ते आई जिसमे 2011 की डाटा रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 3 लाख 72 हजार भिखारियों में से 21 प्रतिशत भिखारी 12वीं पास हैं। यही नहीं 3000 भिखारियों के पास पेशेवर डिप्लोमा है। अब तो और ज्यादा होगी ।
उन्होनें बताया कि रिपोर्ट के मुताबिक जब इन लोगों से भिखारी बनने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा को इसलिए भिखारी बन गए, क्योंकि उनकी डिग्रियां उन्हें कोई संतोषजनक नौकरियां नहीं दिला सकी। सोचिये कैसी डिग्री उस समय की रही होगी जिसने उन्हें इस लायक बना दिया। तो बिना पढे लिखे लोगों को कौन पूछता है? यह काम तो उसे करना ही पडेगा और इस काम को करके वह कितनी तरक्की कर लेगा , देश को अपना क्या योगदान देगा , यह समझने की आवश्यकता है।
संजय जोशी ने कहा कि रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यह सर्वे देश के कुछ हिस्सों में किया गया अन्यथा यह संख्या काफी आगे होती। रिपोर्ट के अनुसार भद्रकाली मंदिर के पास मौजूद 30 भिखारियों में से एक हैं दिनेश खोदाभाई जोकि 12वीं पास हैं। टूटी फूटी अंग्रेजी जानने वाले दिनेश बताते हैं कि वो भीख इसलिए मांगते हैं ताकि ज्यादा पैसे कमा सकें। उन्होंने कहा कि वो भीख मांगकर रोज 200 रूपये कमा लेते हैं। दिनेश के अनुसार इससे पहले अस्पताल में वार्ड ब्वॉय के तौर पर नौकरी करते थे जहां उन्हें हर दिन 100 रूपये के हिसाब से तनख्वाह दी जाती थी। बी कॉम थर्ड इयर में फेल होने के बाद सुधीर बाबुलाल आंखों में बहुत से सपने लेकर विजयनगर से आए थे। यहां उन्हे नौकरी भी मिली लेकिन उनकी तनख्वाह थी महज तीन हजार रूपये और बदले में उन्हें 10 घंटे तक काम करना होता था। इसके अलावा उन्हें हफ्ते में कोई छुट्टी भी नहीं दी जाती थी। उन्होंने बताया कि घर ना होने की वजह से उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया और अब वो नदी के किनारे सोते हैं और भीख मांगते हैं जिससे उन्हें रोज करीब 150 रूपये भीख में मिल जाते हैं।
संजय जोशी ने कहा कि बेबसाइट पर दी गयी जानकारी अगर यह सही है तो कल्पना कीजिये कि 2011 में आयी इस रिपोर्ट को बनाने वाले ने किस तरह से जीवन के सिद्धान्तों की पहचान की होगी । रिपोर्ट में कहा गया है कि 52 साल के दशरथ परमार ने गुजरात विश्वविद्यालय से एम कॉम की पढ़ाई की है। तीन बच्चों के पिता दशरथ परमार ने सरकारी नौकरी की तैयारियों के चलते प्राइवेट नौकरी भी छोड़ दी और अब वो सामाजिक संस्थाओं की तरफ से दिए जाने वाला मुफ्त खाना खाकर जीवन जी रहे हैं। जहां तक इनके पुर्नवास की बात है तो उस समय की नीत कांग्रेस की केन्द्र सरकार को इन भिखारियों के लिए कुछ करना था जो उन्होने नहीं किया। रिपोर्ट की माने तो गैरसामाजिक संगठन मानव सदन चलाने वाले बीरेन जोशी ने कहा कि जबतक भिखारियों को आसानी से पैसा मिलना बंद नहीं होता तबकर इन भिखारियों का पुर्नवास करना बहुत मुश्किल है।
संजय जोशी ने कहा कि ग्रैजुएशन करने वाले लोगों का भी भिखारी बनना देश में नौकरी की स्थिति को दर्शाता है। वास्तव में देखा जाय तो आजकल कला स्नातक व परास्नातक का कोई महत्व नहीं रह गया है , लोग इतिहास , भूगोल , दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र , हिन्दी व संस्कृत जैसे विषयों के प्रति आर्कषित नहीं हो रहे है क्योंकि यह ज्ञान तो दे सकती है लेकिन पेट नहीं भर सकती और जिस तरह का माहौल है उसमें साठ प्रतिशत बेरोजगारों में यही डिग्री धारक है । उन्होने कहा कि स्किल इंडिया इस दिशा में उठाया गया कदम है जिससे बाद में लोगों को इस तरह का काम न करने पडे इस पर रोक लगायेगा।
संजय जोशी ने लोगों से अपील की कि वह भीख मांगने की परम्परा का स्वागत करने के बजाय अपने क्षेत्र के प्रतिनिधियों से पूछे कि उन्हें यह क्यूँ करना पड रहा है। उसने उनके लिये कुछ क्यूँ नहीं किया?
बेहतरीन लेख। गरीबों तथा वंचितों के प्रति यह संवेदनशीलता आपको जननायक सिद्ध करती है।अशेष शुभकामनाएं सर