देश में दिन ब दिन बेरोजगारी बढ रही है और वह लोग बढा रहें है जिनकी शिक्षा या तो शून्य है और या तो फर्जी डिग्री लेकर धूम रहें है।कभी कालेज में नही गये और पैसे के बल पर घर बैठे डिग्री ले ली वह चाहे बीए की हो , एम ए की हो या तकनीकी डिग्री । इन डिगी्र को उन कालेजों ने मुहैया कराया जो कि शासन के चापलूस थे और कालेज खोलकर बैठ गये । वहां कक्षायें नही लगती ,अध्यापक नही होता लेकिन उपस्थिती बच्चों की पूरी है चाहे वह आयें या न आयें । परीक्षा में भी कापी लिखकर दे जाते है , लिखना नही आता तो कापी प्रोफेसर लिख देते है । ऐसे लोग कई करोड में है।यह कांग्रेस के पिछले कार्यकाल की देन है जिसका खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है।
सरकारी नौकरी करने वाले में ऐसे लाखों लोग ऐसे हैं जो उच्च पदों पर जाने के लिये ऐसी डिग्री का प्रयोग कर रहें है और बदले में यह हो रहा है कि काम आता नही है और वह बडे अधिकारी बनकर योग्य लोगों पर अधिकार का डंडा चला रहें है। सरकार ऐसे चलेगी ,नही चल रही है और हर मुखिया आता है अपनी दुकान चलाता है और फिर देश को भगवान भरोसे छोडकर चला जाता है। सरकार किस चिडिया को कहते है सरकारी अधिकारी इस बात को जानते ही नही। केन्द्र सरकार को इस पर कठोर निर्णय लेने चाहिये।
पिछले दिनों बिहार में दसवीं व बारहवीं का परिणाम आया , बच्चों में आक्रोश था कि उनके नंबर कम दिये गये । बोर्ड ने कहा कि जिन्हें लगता है कि उनके नंबर कम है वह पुर्नमूल्याकंन करा लें लेकिन जो नजारा देखने को मिला वह अतुलनीय था । बच्चों ने पुर्नमूल्याकंन नही कराया बल्कि बोर्ड के कार्यालय में पत्थरबाजी की , उनमें लडकियां भी शामिल है। क्या यही वह चीज है जिसे हम अपनी अगली पीढी को देना चाहते है। बिहार सरकार खामोश है और केन्द्र सरकार ने अब तक कुछ भी नही किया। थोडी सख्ती पर इतने बच्चे फेल हैं पूरी तरह से नकल अध्यादेश लगाया जाता तो क्या होता। वहां की सरकार बच्चों पर यह काम कर सकती है लेकिन जिस तरह से टीचर पात्रता परीक्षा ली जाती है और जिम्मेदारी दी जाती है उस पर कुछ करने से गुरेज करते है।वास्तव में यह परीक्षा परिणाम वहां के बच्चों का नही शिक्षकों का है जो उन्हें पढा रहें है।
ऐसा नही है कि बिहार में ही ऐसा हो रहा है । यूपी के परिणाम भी आये है जिसमें मुलायम सिंह यादव के शासन काल में शिक्षा का स्तर क्या था पता चला है।इस राज्य में भी अराजकता का माहौल हो सकता है योगी सरकार को पहले से सचेत रहने की आवश्यकता है। यादवों को कैसे पास किया जाता था और कैसे पुलिस व अन्य विभागांे में भर्ती की जाती थी इसका नजारा आने वाले समय में देखा जा सकता है। शिक्षकों की योग्यता पहले ही सोशल मीडिया पर अपना रूतबा कायम किये हुए है। देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति का नाम तक नही आता , शिक्षिकायें स्वेटर बुनने व बच्चों से सामान बनाने तक सीमित है।
देश प्रगति तब करता है जब शिक्षित हो और यहां की शिक्षा ओंधे मुंह गिरी है। जिन लोगों ने यह काम किया वह आज सरकार के पकड़ में होकर भी बाहर है । सरकार का काम होता है कि व्यवस्था को सही करे न कि गलती पर पर्दा डाले , केंद्र सरकार, पूर्व सरकार की गलती पर पर्दा डाल रही है। शिक्षा और शिक्षक दोनों को खत्म करने के अपने कुत्सित प्रयास को अंजाम देने में लगी है। अगर आज शिक्षक भर्ती का केन्द्रीय करण हो जाता तो देश की शिक्षा इतनी खराब प्रारंम्भिक स्तर पर न होती ।
नियमित रुप से अध्ययन किये व्यक्ति को ही नौकरी के लिए योग्य माना जाय जब नित्रमित लोग न मिले तब स्वाध्यायी से डिग्रीधारी को प्राथमिकता मिले।