कोलेस्ट्रॉल में लाभदायक
आयुर्वेद में गाय के घी को अमृत समान माना गया है| घी पर हुए शोध के अनुसार इससे रक्त और आंतों में मौजूद कोलेस्ट्रॉल कम होता है| ऐसा इसलिए होता है क्योंकि घी से बाईलरी लिपिड का स्राव बढ़ जाता है| देसी घी शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल के लेवल को सही रखता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद करता है इसलिए अगर आप कोलेस्ट्रॉल की समस्या से परेशान हैं तो अपने आहार में गाय के घी को शामिल करें|
पाचन शक्ति बढ़ती है
घी का स्मोकिंग पॉइंट दूसरे फैट की तुलना में बहुत अधिक है| यही कारण है कि पकाते समय यह आसानी से नहीं जलता| घी में स्थिर सैचुरेटेड बांड्स अधिक होते हैं जिससे फ्री रेडिकल्स निकलने की आशंका बहुत कम होती है| घी की छोटी फैटी एसिड की चेन को शरीर बहुत जल्दी पचा लेता है जिससे आपकी पाचन शक्ति अच्छी रहती है और यह हारमोंस के लिए फायदेमंद रहता है|
हार्ट के लिए लाभकारी
अब तक तो यही बताया जाता रहा है कि घी ही रोगों की सबसे बड़ी जड़ है| लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि गाय का घी नलियों के ब्लॉकेज में लुब्रिकेंट की तरह काम करता है| जमा फैट को गलाकर विटामिन में बदलता है|
त्वचा में निखार
गाय के घी में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो फ्री रेडिकल से लड़ता है और चेहरे की चमक बरकरार रखता है| त्वचा को मुलायम और नमी प्रदान करता है|
मेटाबॉलिज्म को सही रखना
शरीर में जमा फैट को गलाकर विटामिन में बदलने का कार्य देसी घी करता है | खाना जल्दी डाइजेस्ट करता है| मेटाबॉलिजम की प्रक्रिया को बढ़ाता है क्योंकि इसमें सीएलए होता है जो इंसुलिन की मात्रा को नियंत्रित रखता है जिससे वजन बढ़ने और शुगर जैसी दिक्कतें होने का खतरा कम हो जाता है | इसके अतिरिक्त यह हाइड्रोजनीकरण से नहीं बनाया जाता है इसलिए देसी घी खाने से शरीर में एक्स्ट्रा फैट बनने का सवाल ही नहीं पैदा होता |
इम्यून सिस्टम मजबूत करता है
देसी घी में विटामिन के 2 पाया जाता है जो ब्लड सेल में जमा कैल्शियम को हटाने का काम करता है | इससे ब्लड सरकुलेशन सही रहता है| देसी घी इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में सहायता करता है जिससे इंफेक्शन और बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है| इसमें माइक्रो न्यूट्रेंस होते हैं| देसी घी में एंटी कैंसर, एंटीवायरल जैसे तत्व मौजूद होते हैं जो कई बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं | गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है| गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है बल्कि इस बीमारी के फैलने से भी आश्चर्यजनक रूप से रोकता है |
हड्डियों की मजबूती
विटामिन K2, कैल्शियम सहित खनिजों का उपयोग करने में मदद करने के लिए शरीर के लिए आवश्यक है | वास्तव में यह विटामिन कैल्शियम की तुलना में बेहतर हड्डियां बनाता है| जोड़ों और संयोजी ऊतकों के लचीलेपन को बढ़ावा देता है |
रोग चिकित्सा में
- नाक में रोज गाय के घी की दो बूंद डालने से –
- एलर्जी खत्म हो जाती है|
- माइग्रेन सिर दर्द से छुटकारा |
- याददाश्त तेज होने में मदद|
- सुनने की क्षमता बढ़ती है|
- लकवा रोग के उपचार में लाभदाई|
- नाक की खुश्की दूर होती है|
- बाल झड़ने की गति रुक जाने में मदद होती है |
- गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है|
- बच्चों की छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है |
- शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पीने से लाभ होता है|
- शरीर की जलन गर्मी दूर करने हेतु हथेली और पांव के तलवों में भी घी की मालिश करने से आराम मिलता है|
- फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से बहुत आराम मिलता है|
- आयुर्वेद में वैद्य फिस्टुला और बवासीर के इलाज के लिए जिस विधि का उपयोग करते हैं उसे क्षरा कहा जाता है| इस विधि में उपचार के बाद होने वाली जलन और उत्तेजना से राहत देने के लिए घी का उपयोग किया जाता है |
- बच्चों का कान छेदन करते हैं तब दर्द और जलन को कम करने और छेदन प्रक्रिया आसान करने के लिए भी सबसे पहले घी लगाया जाता है|
- फटी एड़ियों के ऊपर घी लगाने से आराम मिलता है| यह त्वचा के रूखे पन को जल्दी भर देता है और त्वचा को मुलायम कर देता है|
- हिचकी के ना रुकने पर खाली पेट गाय का आधा चम्मच की खाने से लाभ होता है|
पुराना घी
पुराना घी गुणी होता है, यह जितना पुराना होता है उतना ही गुणी हो जाता है| पुराना घी तीक्ष्ण, खट्टा, तीखा, उष्ण, श्रवण शक्ति को बढ़ाने वाला, घाव को मिटाने वाला, मस्तक रोग, नेत्र रोग, करण रोग ,खांसी कृमि, विष आदि दोषों को दूर करने वाला होता है|
10 वर्ष पुराने घी को कोच, 11 वर्ष पुराने घी को महाघृत कहते हैं| सामान्यतया 1 किलो घी प्राप्त करने के लिए 25 से 30 लीटर दूध लग जाता है|
घी के अंदर विद्यमान घटक तत्वों का विश्लेषण-
अम्लों के नाम गाय भैंस
ब्युट्रिक 2 .6 4.1
कैप्रोइक 1.4 1.3
कैप्रिलिक 0.8 – 2.4 0.4 – 0.9
फैप्रिक 1.8 – 3.8 1.7
लैटिक 2.2- 4.3 2.8 – 3.0
मिरिस्टिक 5.8 – 12.9 7.3 – 10.1
पामिटिक 21.8 – 31.3 26.1 – 31.1
स्टीएरिक 1.0 0.9 – 3.3
उनोलिक 28.6 – 41.3 33.2 – 35.8