इन दिनों रामसेतु को लेकर के लोगों में अब एक नई उत्तेजना शुरू हो गई है कि जिस तरह से राम जन्मभूमि का निर्माण हुआ है इस तरह से रामसेतु का भी पुनर्निर्माण होगा और लोग रामेश्वरम से सीधे श्रीलंका को जा सकेंगे।
2016 में असम के सिलचर स्थित विश्वविद्यालय संग्रहालय विज्ञान केंद्र ने पहली बार रामसेतु के पुरातात्विक महत्व और इसकी प्राचीनता को स्थापित करने के लिए एक योजना बनी थी इसके तहत रामसेतु कि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए क्षेत्र में पुरातात्विक अवशेषों की व्यवस्थित खोज की जानी थी भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद इस प्रस्ताव पर पानी के भीतर राम सेतु की पुरातात्विक जांच के लिए सहमत भी हो गया था लेकिन वित्तीय सहायता और अन्य आवश्यक अनुमोदन के अभाव में उत्खनन नहीं किया जा सका। हालांकि सेतु का अधिकांश हिस्सा अब जलमग्न हो गया है इसलिए पानी के भीतर पुरातात्विक जांच जरूरी है ताकि इसके निर्माण में मानवी हस्तक्षेप किस हद तक था इसका पता चल सके।
भारत और श्रीलंका के लोगों के लिए आस्था के प्रतीक रामसेतु का संबंध रामायण से है पौराणिक कथाओं के मुताबिक श्री राम और उनकी वानर सेना ने इसका निर्माण कराया था इसलिए इसे रामसेतु का नाम दिया गया ।यह पल मानव निर्मित है या प्राकृतिक इसे लेकर वैसे तो कई वर्षों से पास चल रही है लेकिन कुछ दिनों पहले एक फिल्म रामसेतु रिलीज होने के बाद एक बार फिर रामसेतु पर अध्ययन कराए जाने की मांग उठने लगी है।
देश के वरिष्ठ पुराण तत्व विद भी इसके समर्थन में है यह पल हजारों वर्ष पुराना है यह बात राम सेतु पर किए गए पुरातात्विक विद के शोध में सामने आई है शोध के दौरान उन्हें कुछ सिक्के मिले हैं । जिस पर रामसेतु का चित्र है ऐसे में इस विषय पर काम करने की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है ।पुरातत्व विद चाहते हैं कि एएसआई या अन्य विश्वविद्यालय इस पर कम करें।शोध के अनुसार श्रीलंका के जहां क्षेत्र के राजा आर्य चक्रवर्ती के समय चलन में रहे सिक्कों पर सेतु की बनावट मिलती है ।रामसेतु का आधा हिस्सा ही भारत के पास है चुकि भारत के हिस्से से समुद्र में रामसेतु शुरू होकर श्रीलंका के क्षेत्र में पूरा होता है ऐसे में ऐसा माना जा रहा है कि सिक्कों पर जो चित्र है वह रामसेतु के हैं। कहा जा रहा है कि इस इलाके में किसी अन्य सेट होने का प्रमाण नहीं मिलते।
शोध के अनुसार रामसेतु से जुड़ी लोकप्रिय मान्यताएं और परंपराएं कम से कम 2000 साल पुरानी है। यह व्यापक सांस्कृतिक ऐतिहासिक और पुरातात्विक संदर्भ में संरचना की जांच के लिए एक मजबूत आधार बनती है ।पुरातात्विक अवशेष प्राचीन अभिलेख सिक्कों मूर्तियां और चित्रों धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष में इसके प्रमाण मिलते हैं। गौरतलब हो कि पिछली सरकारों ने इस पर किसी भी तरह का कार्य करने से मना कर दिया था और एक नया विवाद खड़ा कर दिया था कि रामसेतु नाम का कोई निर्माण है ही नहीं। जो भी सरकार वहां पर आई, चाहे वह राज्य की सरकार हो या केंद्र की सरकार हो ,उसने इस दिशा में कोई भी प्रयास नहीं किया कि रामसेतु की वास्तविकता क्या है यह लोगों के सामने आए।
फिलहाल यह बात सही है कि रामसेतु पर काम नहीं हुआ है अब अगर इस बारे में चर्चा हो रही है तो इस पर पुरातात्विक अध्ययन होना चाहिए ।इसकी कार्बन डेटिंग की भी कराई जा सकती है जिसके अस्तित्व में रहने का सही समय पता चल सकेगा। रामसेतु हम सबकी आस्था का प्रतीक है इस पर काम होना चाहिए। और तो और सबसे बड़ी बात यह है कि उसे समय की इंजिनियरिंग कितनी प्रभावशाली थी इस बात का पता चलता है।