अठारवीं-उन्नीसवीं शताब्दी में गौ-रक्षा गतिविधियां

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना मालवीय, गोपाल कृष्ण गोखले और लाला लाजपत राय आदि ने समय-समय पर कहा कि स्वराज मिलते ही गो-वध तुरंत बंद किया जाएगा।

स्वाधीनता सेनानी लाला हरदेव सहाय ने देश स्वाधीन होने के बाद भी गौ हत्या का कलंक जारी देखकर कांग्रेस से त्यागपत्र देकर अपना जीवन गौ रक्षा के पावन उद्देश्य हेतु समर्पित कर दिया था।

1952 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में नागरिकों से संपर्क कर करीब दो करोड़ हस्ताक्षर संग्रहित किए और गोवध बंदी कानून बनाने की मांग का आवेदन पत्र राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी को भेंट किया।

1857 में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम गौ-माता की हत्या से उत्पन्न आक्रोश का ही परिणाम था।

कूका नामधारी  सिख संप्रदाय ने गौ रक्षा के समर्थन में खुलकर भाग लिया। और अनेकों ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए।

“गौ-घात का दुख जगत से मिटाउँ” गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने अपनी इष्ट नैना देवी मां से यह वर मांगा था।

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने गायों की रक्षा हेतु 1882 में पंजाब में गौ रक्षिणी सभा की स्थापना की।

अंग्रेज गवर्नर मैकाले अपनी डायरी में लिखता है कि भारत भ्रमण के दौरान उसने कभी किसी को गंभीर रोग से ग्रस्त भारतीय को नहीं देखा । कारण पूछने पर वह लिखता है की भारतीय गाय का सर्वाधिक उपयोग करते हैं जिससे जैविक कृषि होती है एवं भारतीय दूध, दही, घी का पर्याप्त इस्तेमाल भोजन में करते थे।

Leave a Reply