बहुत कम लोग ही जानते हैं कि जी20 की शुरुआत वैसे तो 1999 में ही हो गई थी लेकिन वैश्विक नेताओं की बैठक की शुरुआत 2008 में हुई। लेकिन यूं ही जी20 नहीं बन गया था। न दुनिया में तेल संकट और आर्थिक व्यवस्था चरमराती और ना ही यह ग्रुप बनता। जी 20 के बनने की कहानी की शुरुआत 1970 के आसपास ही हो गई थी। यह वह दौर था, जब दुनिया में तेल संकट गहरा गया था। इसी संकट से दुनिया को बाहर आने के लिए 7 सबसे बड़े औद्योगिक देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, कनाडा, जर्मनी और इटली ने G7 नाम से ग्रुप बनाया।
कई साल तक इस ग्रुप ने कई क्षेत्रों में काम किया लेकिन जब बात आर्थिक मोर्चे की आई तो यह सफल होती नहीं नजर आई। इसके बाद जी7 पर सवाल उठने लगे। 1990 के आसपास इसे विस्तार देने की चर्चा हुई। हालांकि, सदस्य देशों में सहमति नहीं बन पाई। उस वक्त रूस सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन भारत, चीन और ब्राजील को भी ग्रुप में शामिल करने की बात हुई। 1998 में बर्मिंघम सम्मेलन में रूस को आधिकारिक तौर पर ग्रुप का हिस्सा बनाया गया और इसका नाम G8 हो गया। इसके बाद 1999 के दौर में एशिया में वित्तीय संकट गहरा गया था। तब 19 देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों ने बैठक की। इसमें जी8 के सदस्य देशों के साथ साथ भारत, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया, तुर्किये और यूरोपीय यूनियन को बुलाया गया। सितंबर 1999 में जी-8 सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों ने जी20 का आइडिया दिया और यहीं से जी20 की शुरुआत हुई।
जी20 की बैठक तो हर साल होती थी लेकिन 2008 में पूरी दुनिया में आर्थिक संकट आने पर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने जी8 को अपग्रेड करने की बात कही। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शिखर सम्मेलनों की संख्या में कमी और जी8, संयुक्त राष्ट्र और पुराने संस्थानों में की बात कही। वे चाहते थे कि भारत, ब्राजील या चीन जैसे देश जी8 का हिस्सा बने, क्योंकि उनके बिना दुनिया की समस्याएं खत्म नहीं हो सकती हैं। इटली ने भी G8 को बदलने की बता कही और चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और मैक्सिको के साथ अतिथि देश मिस्र को इसमें शामिल करने की बात कही। इसके बाद अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया और अरब दुनिया के कई आर्थिक दिग्गजों को जोड़कर ग्रुप ऑफ 20 यानी जी20 की स्थापना हुई। जिसकी पहली बैठक साल 2008 में हुई।
अब सफलता की बात करें तो भारत के अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन अपने मूल झंडा और परिणाम के मामले में इतिहास में सबसे महत्व कांची वह सफल सम्मेलन साबित हुआ इसमें कुल 112 परिणाम दस्तावेज वह अध्यक्ष जी दस्तावेज तैयार किए गए पिछले सम्मेलन की तुलना करें तो यह दुगने से भी ज्यादा है इसी वजह से इसे अब तक का सबसे सफल सम्मेलन माना जा रहा है इसमें 73 परिणाम दस्तावेज यानी आउटकम डॉक्यूमेंट है जो सदस्य देशों के मंत्रियों की ओर से बीते महीने में देश के विभिन्न शहरों में हुई बैठकों में बनी सहमत पर तैयार हुए हैं इन्हें लाइन आफ एफर्ट दस्तावेज भी कहते हैं वही 39 दस्तावेज संलग्न है जिन्हें कार्य समूह के दस्तावेज से अलग अध्यक्ष की दस्तावेज कहा जाता है।
फिलहाल भारत में g20 शिखर सम्मेलन में इतिहास रचते हुए आम सहमति से नई दिल्ली घोषणा पत्र को मंजूर कर लिया खास बात यह रही की घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध की चर्चा होने के बावजूद रूस और चीन ने भी इसे मंजूरी थी घोषणा पत्र में प्रधानमंत्री के चर्चित उदाहरण को जगह दी गई है जिसमें उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है। घोषणा पत्र में परमाणु हमला या हमले की धमकी को अस्वीकार बताया गया है इसे पिछले साल पुतिन की उच्च चेतावनी से जोड़कर देखा जा रहा है जब यूक्रेन युद्ध के दौरान उन्होंने पश्चिमी देशों को परमाणु हमले की परोक्ष चेतावनी दी थी अलावा घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध जलवायु परिवर्तन लैंगिक असमानता आर्थिक चुनौतियां हरित विकास आंतकवाद समेत तमाम मुद्दे शामिल किए गए।