गांधी और अन्ना हजारे दोनों का कल्पित भारत रुग्ण किया गया

इस युग में महात्मा गांधी जैसा व्यक्तित्व पुन: अवतरित हो पायेगा इसकी सम्भावना नहीं है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने तो यहाँ तक कह दिया कि आने वाली पीढ़ियों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस धरती पर महात्मा गांधी जैसा व्यक्ति भी कभी पैदा हुआ था। उसी गांधी को कांग्रेस ने अपने अस्तित्व का आधार बनाया और 70 वर्षों तक उनके नाम का दुरुपयोग करते हुए उन्हें खूंटी पर टांगे रखा। महात्मा गांधी एक विचार थे और उन्होंने कांग्रेस को उन्हीं विचारों और आदर्शों के अनुकूल बनाने का प्रयास किया। किन्तु दुर्भाग्य यह कि कांग्रेस ने उन्हीं आदर्शों और विचारों की हत्या कर डाली। गांधी का अस्तित्व उनकी हत्या से समाप्त नहीं हुआ बल्कि कांग्रेस ने उनके विचारों की हत्या करके उन्हें समूल नष्ट कर डाला। और ऐसा करने का प्रयोजन मात्र भारत की सत्ता पर एकाधिकार करने का रहा। एक कालखण्ड ऐसा रहा जब महात्मा गांधी नीत कांग्रेस के सिद्धान्तों की प्रशंसा अंग्रेज तक करते थे किन्तु उनके निधन के समय से ही कांग्रेस की सत्तालोलुपता उनके विचारों को टुकड़ों में काट-काटकर अपनी सत्ता की हवस में ईंधन के रूप में प्रयोग करती रही। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात जापान जैसे समाप्तप्राय देशों ने विकसित देशों की श्रेणी में अपना स्थान बना लिया किन्तु कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें तो जैसे देश को लूटकर अपना पेट भरने के अतिरिक्त कुछ सोच ही नहीं रही थीं। अब तक हमें विकसित देशों की पंक्ति में होना चाहिए था किन्तु सत्ता अन्तरण के पश्चात कांग्रेस की विक्षिप्तता की स्थिति ऐसी हो गयी है कि उसे यह ध्यान ही नहीं रह जाता कि वे देश की जिस दुर्दशा की बात करते हैं वह उन्हीं की देन है। अब वे सत्तर वर्षों की गहरी खाई को पाटने के लिए दो वर्षों के भाजपा नीत सरकार को जिम्मेदार ठहराने की बचकानी हरकत भी कर डालते हैं। भाजपा ने कभी किसी दल को अछूत नहीं माना किन्तु कांग्रेस का इतना मानसिक पतन हो चुका था कि उसके लिए भाजपा ही नहीं अन्य समाजवादी और वामदल भी अछूत ही रहे। आज स्थिति यह है कि वही कांग्रेस भाजपा के विरोध में अपना सर्वस्व अर्पित कर अन्य दलों के सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर हो रही है। क्या गांधी अपने कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा देखकर जीवित रह पाते। गांधी स्वयं मरने के लिए सदैव तैयार थे किन्तु अपने विचारों की हत्या किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकते थे।

कांग्रेस की यही स्थिति देखकर गांधीवादी विचारधारा के प्रबल पोषक और गांधी को अपने जीवन में उतारने वाले अन्ना हजारे ने कांग्रेस की चरित्रहीनता के विरुद्ध रामलीला मैदान में एक व्यापक जन आन्दोलन प्रारम्भ किया था। उनके इस आन्दोलन को जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के समतुल्य माना गया था। पूरा देश कांग्रेसियों के सामूहिक भ्रष्टाचार से आन्दोलित हो उठा था। अन्ना हजारे के नेतृत्व में विशाल जनसमुदाय अपना आक्रोश प्रदर्शित कर रहा था। किन्तु कुछ चतुर लोग उनके इस आन्दोलन का उसी प्रकार लाभ उठाने के प्रयत्न में लग गये जिस प्रकार गांधी जी के आन्दोलन का लाभ कांग्रेसियों ने उठाया था। मंच पर अनेक लोग अन्ना हजारे से प्रेरित होकर अपना समर्थन देने पहुँचे। न्यायाधीश, सेना के ईमानदार और अवकाश प्राप्त पदाधिकारी, प्रशासनिक सेवा से निवृत्त ईमानदारी अधिकारी, वकील, कुछ असफल राजनेता, कवि, कुछ विचारक और विश्लेषक आदि विविध क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोग इस आन्दोलन से जुड़कर राजनीति से परे रहकर देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए तत्पर हो गये। किन्तु इस भीड़ में कतिपय लोग अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार करने में लगे हुए थे। अन्ना हजारे स्वप्न में भी राजनीति में आने के लिए कभी उत्सुक न थे और यह बात उन्होंने स्पष्ट रूप से कही भी थी। किन्तु जिन्हें किसी भी प्रकार से सत्ता में आने की लालसा थी उनके लिए यह एक सुअवसर बन गया। धीरे-धीरे अन्ना हजारे को किनारे लगा दिया गया और कुछ लोगों ने मिलकर उनके नाम पर राजनीति प्रारम्भ कर दी। जनता के मस्तिष्क में इन राजनीतिज्ञों में अन्ना हजारे की छवि ही दिखाई दे रही थी। जनता की अपेक्षा थी कि ये लोग अन्ना हजारे के आदर्शों पर चलकर दिल्ली की गद्दी के माध्यम से देश को नई दिशा देंगे और इसे प्रत्येक प्रकार के भ्रष्टाचार से मुक्त करायेंगे। किन्तु कहावत है कि इतिहास स्वयं को दुहराता है। परिणाम वही हुआ जो अतीत में गांधी के साथ हो चुका था। एक नई पार्टी का गठन भी हुआ और उसने सरकार भी बनाई। किन्तु जनता को एक बार पुनः मूर्ख बनाया गया। विशुद्ध विचारधारा वाले लोगों के आपत्ति करने पर उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। आज दिल्ली की जो दुर्दशा है वैसी तो कांग्रेसियों ने भी नहीं की। झूठे आरोपों, व्यर्थ के प्रलापों, निराधार आरोपों और निर्लज्जतापूर्ण शब्दावलियों के उपयोग के अतिरिक्त इस सरकार ने दिल्ली के लिए सोचना ही बन्द कर दिया। आज अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को ढोते हुए ये लोग अन्य राज्यों में अपनी सरकारें बनाने का दुर्लभ स्वप्न देख रहे हैं। किन्तु वहाँ की जनता ने दिल्ली का जो वर्तमान स्वरूप देखा है उससे उन्हें इस कुत्सित विचारों वाली पार्टी की वास्तविक का ज्ञान हो चुका है। देश की जनता अराजकता को कभी स्वीकार करने वाली नहीं है।

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