कृषि में गोमूत्र
- गोमूत्र को कीटनाशक जैसा प्रयोग करने पर लाभ होता है | यह पोटाश और नाइट्रोजन का स्रोत भी है | इसका प्रयोग फल, सब्जी, बेल वाली फसलों को कीड़ों व बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है|
- गोमूत्र को 5 से 10 गुना पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करने से माहू और सैनिक कीट मर जाते हैं |
- गोमूत्र में तंबाकू की पत्तियां, धतूरा, लहसुन आदि मिलाकर प्रभावी कीटनाशक तैयार कर प्रयोग किया जाता है |
- गोबर-गोमूत्र की स्लरी चार बार फसल में देने पर एक बोरी डी.ए. पी. देने के बराबर परिणाम दिखाई देते हैं | एक स्लरी मतलब 120 किलो गोबर के साथ 20 लीटर गोमूत्र |
- गोमूत्र में फिनॉल, कटेकॉल , सल्फर इन घटकों की रोग व बीमारी फसल को नहीं होती है |
- बेहतर कीट नियंत्रक – गोमूत्र के अनेक उपयोग हैं जिनमे से कुछ निम्न देखे जा सकते हैं :-
१. 1 लीटर गोमूत्र को एकत्रित करके इसमें 40 लीटर पानी मिलाकर यदि खाद्यान्न,
दलहन, तिलहन, सब्जी आदि के बीजों को 4 से 6 घंटे तक इस घोल में भीगा दें
फिर बाद में खेत में बुवाई किया जाए तो ऐसे बीजों का जमाव शीघ्र होता है,
अंकुरण बढ़िया होता है, पौधा मजबूत और निरोग भी होता है| इस प्रकार गौमूत्र
बेहतर बीज उपचार करता है|
२. कीटों के नियंत्रण के लिए 2 से 3 लीटर गोमूत्र को नीम की पत्तियों के साथ डिब्बों
में 15 दिनों तक रखकर सड़ाते हैं, सड़ने के बाद इसे छान लेते हैं और छाने हुए
द्रव के 1 लीटर दवा में 50 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से
अनेक प्रकार के कीड़ों से फसल की सुरक्षा होती है| उदाहरण के लिए पत्ती खाने
वाले कीट, फल छेदक कीट तथा तना छेदक कीट आदि|
३. गोमूत्र और लहसुन की गंध के साथ कीटनाशक बनाकर रस चूसक कीटों को
नियंत्रित किया जा सकता है | इसके लिए 10 लीटर गोमूत्र में है 500 ग्राम लहसुन
कूटकर उसमें 50 मिलीलीटर मिट्टी का तेल मिला देते हैं | मिट्टी के तेल और
लहसुन के पेस्ट को गोमूत्र में डालकर 24 घंटे के लिए रख देते हैं फिर बाद में
इसमें 100 ग्राम साबुन अच्छी तरह मिलाकर और हिलाकर एक महीन कपड़े से
कपड़छन कर लेते हैं | अब इस तरह से तैयार हुयी दवा के 1 लीटर घोल को 80
लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से फसल को चूसक कीट नहीं लगते हैं
और उनसे फसल की सुरक्षा हो जाती है |
- गोमूत्र में विद्यमान फॉस्फेट ऑफ़ यूरिया, म्यूरेट आफ पोटाश, कार्बोनेट, पोटास अमोनिया, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, गंधक, तांबा, लोहा, कोर्बोलिक अम्ल , हिप्यूयूरिक एसिड, लेक्टोज आदि रसायन फसल की वृद्धि में सहायक होते हैं |
- गोमूत्र में फिनिल पराक्रिसाल, कैटेकाल, आर्सिनॉल , इलोजनेटेल फिनाइल होने के कारण यह जीवाणु नाशक और विषाणु नाशक है |
- खेत का त्याज्य कचरा गेहूं का भूसा , जंगली खरपतवार, इनसे कंपोस्ट तैयार करने में गोमूत्र का इस्तेमाल होता है |
- गोमूत्र में हींग डालने से उसके गंध से मादा कीट कम अंडे देती है| इससे कीट जीवनचक्र में अवरोध आता है | उनकी प्रजनन क्षमता कम होती है जिससे उनका फैलाव और उनसे होने वाले नुकसान की संभावना कम होती जाती है |
गोबर और गोमूत्र से खाद और कीटनाशक निर्माण की कई विधियां उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ यहां देखी जा सकती हैं :-
- एक मिट्टी के मटके में 15 किलोग्राम गोबर, 15 लीटर गोमूत्र , 15 लीटर पानी और एक किलोग्राम गुड़ डालकर सील कर दें | 10 दिनों के पश्चात इस खाद में 5 गुना पानी मिलाकर खेत में नालियों के माध्यम से 1 एकड़ भूमि में डाल दें | इसका चार बार उपयोग करने पर रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं रहती है | प्रथम उपचार बुवाई के पूर्व तत्पश्चात बुवाई के 10 दिन बाद और फिर 15 – 20 दिनों के अंतर पर दो बार इसका प्रयोग करना आवश्यक रहेगा |
- बीज बोने के पहले उनका गोमूत्र से शोधन (उपचार) करना लाभकारी होता है |
- फसल उगने के पश्चात जब अच्छी तरह बढ़ने लगे (पत्ते व् टहनियां निकल आने पर) तब 1 लीटर गोमूत्र में 20 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करना चाहिए फिर पौधे विकसित होने पर फूल निकलने के पूर्व 1 लीटर गौमूत्र में 15 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें इस प्रकार ३ बार किये गए छिड़काव से पेड़ पौधों का अच्छा विकास होता है | कई बीमारियों पर रोक लग जाती है, पेड़ पौधों को आवश्यकतानुसार पौष्टिक और खनिज प्राप्त होते हैं|
- गोमूत्र के दो छिड़काव के बीच या साथ में नीम की पत्ती का अर्क या रात भर भिगाई गई नीम की खली के पानी को छानकर फिर 20 गुना पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करने से बीमारियों की रोकथाम बेहतर तरीके से की जा सकती है |
एक भारतीय गाय से औसतन 10 किलोग्राम गोबर और 17 लीटर गोमूत्र प्रतिदिन प्राप्त होता है | इसे कचरे , मिट्टी के साथ घोलकर 3 ×2 ×1 मीटर गड्ढे में 75 से 100 दिन दबा कर रखने पर ‘नेडेप कंपोस्ट’ खाद प्राप्त होती है|