तीन तलाक बिल केा लेकर जो कुछ हुआ ,वह कांग्रेस के लिये ठीक नही था लेकिन कांग्रेस के पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नही था । वह विरोध करती तो भी मुस्लिम महिलाओं के वोट नही मिलते और न करे तो भी उसे नही मिलने वाला ,क्योंकि भाजपा ने अपने शासन वाले राज्यों में मुस्लिम मौलानाओं की बोलती बंद कर रखी है।
आज के जो हालात है उस पर गौर किया जाय तो कांग्रेस चाहती है कि सदन में इस बात का फैसला हो जाय कि यदि तीन तलाक के बाद पुरूष जेल चला जायेगा तो उसके परिवार की देखभाल कौन करेगा। यहां यह समझना चाहिये कि कांग्रेस इस बात का इशारा कर रही है कि तलाक के बाद महिला व बच्चों का वह ख्याल रखते थे जबकि ऐसा नही है तलाक के बाद उनके बच्चे या तो चाय की दुकानों पर काम करते थे या फिर मोटर साइकिल की दुकानों पर और किसी तरह अपने व अपने मां का पेट पालते थे ।
दूसरी बात यह है कि उनका कहना था कि पेशन तय कर दें अब सवाल यह उठता है कि एक राशि तय कर दी जाय ताकि हर आदमी उसका इंतजाम कर तलाक दे सके और दूसरा निकाह कर सके। फिर फायदा कानून बनाने का, उसे समझना चाहिये कि कानून बन रहा है तो उसके हैसियत के हिसाब से ही पेशन भी तय की जायेगी । करोडपति पर लखपति और लखपति पर हजार पति का कानून थोडे ही लागू होगा , हैसियत के हिसाब से ही पेशन दी जायेगी और भरण पोषण भी।
कांग्रेस चाहती थी कि सरकार कुछ ऐसा कर दे जिससे उनकी बात भी रह जाय और मुस्लिम यह समझे कि उनके साथ वह खडी है लेकिन अब जो हो रहा है वह बिल्कुल उल्टा है और जो हो रहा है उसके अब तक वह यह समझ गयी है जिस काम को वह हिन्दूओं में कर रहे थे , वह अब भाजपा मुस्लिमों के साथ कर रही है। वोट तो बंटेगें और यही 2019 का दिशा भी तय करेगें।इस बात को कांग्रेस अच्छी तरह समझ रही है लेकिन मुस्लिम महिलायें भी समझ रही है कि आज लोकसभा में पास किया है तो कल राज्यसभा में भी होगा इसलिये वह भाजपा के साथ है।
सबसे बडी बात यह है कि कांग्रेस जानती थी कि लोकसभा में विपक्ष का बहुमत नही है इसलिये वहां वह चुपचाप थी और राज्यसभा में उसका बहुमत है तो वहां वह मुस्लिम पुरूषों के लिये सुविधा चाहती है और यही नही समाजवादी पार्टी व कम्युनिस्ट भी उसके साथ है। दक्षिण भारत के दल साथ है अब मुस्लिम महिलाअेां केा यह समझना होगा कि असली दुश्मन उसकी कौन है और किसके ईशारे पर अब तक उनका दोहन हो रहा है। कौन है जो उनके खिलाफ कानून व शरीयत चलाना चाहते है।
सरकार केा चाहिये कि इस बिल को बजट सत्र में रखे और उसे पास कराने का प्रयास करे , जैसे कांग्रेस कराती थी कई राज्यसभा सदस्य ऐसे है जो कि सदन के योग्य नही है और चलने नही देते उनकी व्यवस्था करे ताकि वह मुस्लिम महिलाओं के समर्थन में होने वाले इस बिल का विरोध करने सदन न पहुंच सके।सरकार का एक मतलब होता है और बिल पास कराना उसे आना ही चाहिये।