पंडित जवाहरलाल नेहरु की नीतियां कभी भी भारत देश के हित में नहीं रहीं, उन्होंने जल को लेकर एक ऐसा समझौता किया जिसका खामियाजा आज भी भारत को भुगतना पड रहा है। इस समझौता का नाम था इंडस जल समझौता जो कि उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच हुआ था। इस समझौता में जम्मू कश्मीर की 6 नदियों का पानी का वितरण होना था। विश्व बैंक की अगुवाई में जहां नेहरू ने जो समझौता किया उसमें सतलुज रावी और व्यास नदी को भारत के हिस्से में रखा जबकि चिनाब झेलम और इंडस नदी का पानी पाकिस्तान को दे दिया। इन नदियों के पानी की मात्रा भारत द्वारा ली गई नदियों के पानी की मात्रा से लगभग ढाई गुना थी यानी पाकिस्तान को जो पानी मिला वह 80 एमएएफ था और भारत को जो पानी मिला वह 33 एमएएफ था। जिसके कारण हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में हमेशा पानी का संकट बना रहता है। किसान परेशान है और सरकार इस समझौते पर कोई बात नहीं करना चाहती है।
वैसे देखा जाए तो जवाहरलाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, मनमोहन सिंह और तमाम आए प्रधानमंत्रियों ने इस समझौते पर कोई टीका टिप्पणी नहीं की। उसे जस का तस बने रहने दिया। जबकि पाकिस्तान इस बात को लेकर अभी भी एहसान मानने को तैयार नही है। बार बार आतंकी गतिविधियां कर रहा है और दोबार यु़द्ध भी कर चुका है। फिर भी सरकार मौन है । आज तक इस बात पर अमल किया जा रहा है। इस फाइल को खोलना चाहिए और गड़े मुर्दे उखाड़ने चाहिए कि भारत का नदियांे का पानी बराबर हिस्सा में मिले। कहा यह भी जाता है इस समझौते के बाद जवाहरलाल नेहरू ने 125 किलो सोना प्रतिवर्ष पाकिस्तान को नहरों को बनाने के लिए दिया था इसका लेखा-जोखा होना बाकी है। आज के समय में सोने की कीमत लगभग 70000 करोड रुपए हैं और ब्याज सहित ₹100000 लाख करोड़ बनता है भारत को कहना चाहिए कि हमारा सोना हमें वापस कर दो ताकि हम नहरे बना सकें और अपने यहां सिंचाई का साधन उपलब्ध करा सके।
इंडस जल समझौता पुनः होने की जरूरत है और भारत को सख्त लहजे में कहना चाहिए कि अगर पाकिस्तान ने सोने के बराबर रुपए नहीं दिए तो भारत पाक का पानी बंद करने के लिए बाध्य होगा और यदि पाकिस्तान के किसानों से भारतीय सरकारों को इतना मोह है तो वह नेपाल से आने वाली शारदा नहर को यमुना नदी से जोड़ें और हरियाणा पंजाब और राजस्थान में पानी को लेकर आएं तब पानी की समस्या से निजात मिल सकता है जिस पर अटल सरकार में काम हुआ था लेकिन फिर जब मनमोहन सरकार आयी तो मामला ठंडे बस्ते में चला गया। मोदी के आने के बाद फिर इस पर काम होगा ऐसा लगता है लेकिन कबतक यह कहना मुश्किल है।
फिलहाल जो स्थिति है उसे देखकर यही लगता है कि कई बार पाकिस्तान ने भारत के ऊपर आक्रमण किया और मुंह की खाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता । गडकरी ने भी कहा, अमित शाह ने भी कहा लेकिन यह होगा कब? भारतीय जनता पार्टी की सरकार पानी के समझौते को पुनः दोहरा सकती है इस पर सभी मौन है। अब देखना यह है जो कांग्रेसी पाकिस्तान के पक्ष में देश को लूटा रहे थे उसके विपरीत भाजपाई देश को पाकिस्तान से क्या दिला पाते हैं।
यदि ऐसा नही होता है तो पंजाब की स्थित बहुत खराब होगी वहां उपर पानी है नही और वर्तमान में 13 लाख टयूबेल जो चल रहें है वह नीचे का पानी भी खत्म कर देगें। हरियाणा व राजस्थान से एसवाईएल के जरिये पानी आता है और वह भी पंजाब के रास्ते , जब पंजाब के पास पानी नही है तो वह हरियाणा व राजस्थान को पानी कहां से देगा। यमुना में पानी नही मिलेगा तो दिल्ली को पानी कहा से मिलेगा। आने वाले समय में राजनैतिक रूप् से यहां दंगल होने वाला हैं क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। हरियाणाा में भारतीय जनता पार्टी की व राजस्थान में कांग्रेस की व दिल्ली में आम आदमी पार्टी की । पंजाब के पास पानी इसलिये नही है कि उसके हिस्से का पानी नेहरू पाकिस्तान को बेंच आये है। हरियाणा इस बात को जानता है लेकिन दूसरी पार्टी की सरकार है इसलिये तोहमत लगाने से बाज नही आयेगा। राजस्थान का हाल भी हरियाणाा जैसा ही हैं। दिल्ली तो बेचारी है केन्द्र सरकार पर तोहमत लगा सकती है कुछ कर नही सकती।