हत्यारों की विचारधारा से कैसा मेल

राहुल गांधी को बुरा लगा जब पीएम मोदी ने उनके स्वर्गीय पिता राजीव गांधी के लिए एक विवादित बयान दिया… सही बुरा लगा, किसी भी बेटे को बुरा लगेगा… एक इंसान के तौर पर मुझे भी राजीव गांधी पसंद थे, मुझे भी बुरा लगा… लेकिन मुझे सबसे ज्यादा बुरा तब लगता है जब मैं तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस के गठबंधन को देखता हूं… ये वो डीएमके है जिसके नेता करुणानिधि को स्वर्गीय राजीव गांधी हत्याकांड में संदेह की नज़र से देखा गया था… ये मैं नहीं कह रहा… ये तथ्य तो राजीव गांधी की हत्या की जांच करने के लिए बने जैन आयोग कि रिपोर्ट में सामने आए हैं… 

जैन आयोग की रिपोर्ट में करुणानिधि के खिलाफ जबरदस्त खुलासे किए गये जिसके तार सीधे राजीव गांधी हत्याकांड से जुड़े थे… कितनी अजीब बात है कि पिता के अपमान करने वाले पर तो राहुल को गुस्सा आता है लेकिन जिस पार्टी का नाम उनके पिता की हत्या से जुड़ा था उसके साथ गठबंधन करने में उन्हे कभी आपत्ति नहीं हुई… यहां तक कि उनकी कांग्रेस पार्टी उसी डीएमके के सहयोग से 2004 से लेकर 2013 तक केंद्र में सरकार चलाती रही और सत्ता का सुख भोगती रही… 2013 में डीएमके ने खुद नाता तोड़ा जब करुणानिधि की बेटी काणिमोड़ी 3जी घोटाले में जेल पहुंच गईं।

जैन आयोग की रिपोर्ट 1997 में सामने आई थी तब केंद्र में गुजराल की सरकार थी, जिसमें करुणानिधि की डीएमके भी शामिल थी… कांग्रेस ने गुजराल से कहा कि वो डीएमके के मंत्रियों को सरकार से बाहर करें नहीं तो वो समर्थन वापस ले लेंगे… गुजराल ने मना किया तो कांग्रेस ने उनकी सरकार गिरा दी और देश में नये चुनाव का ऐलान हो गया… सोचिए जिस जैन आयोग की रिपोर्ट पर कांग्रेस ने गुजराल की सरकार गिराई वो रिपोर्ट कांग्रेस आज भूल गई है और इन चुनावों में तमिलनाडु में डीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है।

सिर्फ जैन आयोग ही नहीं राजीव गांधी की हत्या की जांच से जुड़े कई अधिकारियों ने करुणानिधि और डीएमके के बारे में कई बड़े खुलासे किए हैं… इन्ही में से एक हैं के. रागोथमन… जिन्होने अपनी किताब Conspiracy to kill Rajiv Gandhi – From CBI files में लिखा है कि – “21 मई 1991 यानि जिस दिन राजीव गांधी की हत्या हुई उसी दिन डीएमके नेता करूणानिधि की रैली भी श्रीपेरमबदूर में ही होने वाली थी… पुलिस को सूचना दी गई थी कि करुणानिधि श्रीपेरमबदूर शहर के टॉवर क्लॉक में रैली करने वाले हैं और राजीव गांधी भी उसी दिन रैली करेंगे… दोनों के कार्यकर्ताओं के बीच आपस में विवाद ना हों इसलिए पूरे बंदोबस्त किए जाएं… 21 मई 1991 को राजीव तो रैली के लिए श्रीपेरमबदूर पहुंच गए लेकिन ऐन वक्त पर करूणानिधि ने अपनी रैली रद्द कर दी।”

ऐसी ही एक किताब है Rajiv Gandhi Assassination: The Investigation जिसे लिखा है सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर और राजीव गांधी हत्याकांड के मुख्य जांच अधिकारी डी. आर. कार्तिकेयन ने… इस किताब में भी कार्तिकेयन ने डीएमके की भूमिका पर कई सवाल उठाए हैं… लेकिन इस किताब का सबसे दिलचस्प वो हिस्सा है जिसमें वो बताते हैं कि कैसे वो समय समय पर सोनिया गांधी को जांच के बारे में बताने के लिए 10 जनपथ जाते रहते थे और एक ऐसे ही दिन उन्हे बड़ा दुख हुआ जब सोनिया ने जांच की धीमी गति के साथ-साथ इस बात पर भी गुस्सा जताया कि राजीव गांधी के असली कातिलों को क्यों नहीं तलाशा जाता है ? सियासत की विडंबना कहिए या मजबूरी है कि जब करुणानिधि का निधन हुआ तो सोनिया ने उन्हे श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि “Karunanidhi was like a father figure to me”…  

राहुल गांधी से ये पूछना चाहिए कि अपने पिता के अपमान पर उन्हे इतना गुस्सा आता है… लेकिन वो उन लोगों के साथ मंच क्यों साझा करते हैं जिनके दामन पर उनके पिता के खून के छींटे हैं ? राहुल ने एक जनसभा में कहा था कि उन्हें बेअंत सिंह (इंदिरा के हत्यारे) और प्रभाकरण (राजीव के हत्यारे) से नफरत नहीं है… नफ़रत न होना अपनी जगह है लेकिन आप इन लोगों की विचारधारा से कैसे जुड़ सकते हो ? क्या आप ये सत्ता पाने के लिए कर रहे हैं ? याद कीजिये राहुल जी,  आपने आरएसएस पर एक बयान दिया था, जिसके बाद आप पर केस भी चल रहा है, आपने कहा था – ”आरएसएस के लोगों ने बापू को गोली मारी और आज उनके लोग गांधी जी की बात करते हैं।”

राहुल जी, आप खुद क्या कर रहें हैं ?सोचियेगा ज़रूर… 

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