किसी जमाने में ईस्ट इंडिया नाम की विदेशी कम्पनी ने व्यापारी बनकर इस देश में घुसपैठ की थी और हमें गुलाम बना लिया था और आज भी विदेशी ऑनलाइन कम्पनियां हमारे देश के व्यापार पर कब्जा कर रही हैं और हम लोग आने वाले खतरे से अनजान 100 -200- 500 रु की बचत के लालच में अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं ।’ पिछले दिनों देश में जहां जहां बाढ़ आई हुई थी वहां किसी भी ऑनलाइन कम्पनी ने आवश्यक सामग्री नहीं पहुंचाई , वहां स्थानीय दुकानदार ही काम आए । कहीं ऐसा तो नहीं कि देश के दिवालिया होने का कारण देश का पैसा विदेश जाना हो ?इस पर हम भारतीयों को गौर करना चाहिये और अपने आप को उनके समतुल्य लाना होगा। इस पर चर्चाओं कातौर अब चलने लगा है। सरकार का मानना है कि व्यापार का डिजलाइजेशन हूुआ है और लोग अब आनलाइन जाना ज्यादा पसंद कर रहें है लेकिन विपक्ष का तर्क इससे एकदम अलग है। टेडयूनियनों का मानना है कि मध्यम व छोटे उघोग इससे खत्म हो जायेगें। इस पर एक समीक्षा की जरूरत है।
मध्यमवर्ग व छोटे दुकानदारों को तकलीफ क्यों हैं। जोमेटो से उदाहरण लेते है वह खान पान की सामग्री आपके पास से लेता है और आप तक पहुंचाता है। सामान आपका सर्विस उसकी , सामान की कीमत देता है आप ग्राहक के पास नही जा सकते थे , वह आनलाइन बुक कर रहा है वहां तक पहुंचा रहा है तो आपकी आपत्ति कहां है।आप अपने नौकर से पहुंचवाते तो उसे समय पर पगार नही देते , आठ धंटे की जगह बारह घंटे काम लेते और न्यूनतम मजदूरी भी नही देते । कम से कम काम का दाम मिल रहा है यह बात आपको हजम नही होगी। विदेशी कम्पनी तो सरकार को भी दे रही है , अपने वर्कर को दे रही है आप क्या दे रहे हो यह अब सोचने की जरूरत है जो आप करना नही चाहते । क्योंकि आपको बेईमानी की लत लग गयी है वह आपके खून में इस कदर शामिल हो गया है कि पीढी दर पीढी निकलने का नाम ही नही ले रहा है। संभल जाइये आने वाले समय आपके लिये और खराब आने वाला है।
अब बेरोजगारी की बात , आनलाइन दुकाने खुल जाने से बेरोजगारी बढ रही है। जो सामान लोगों के घर पर जा रहें है वह विदेशी तो नही जा रहें है देश के ही लोग ले जा रहें है। उन्हें उसके बदले में पगार मिल रहा है। अच्छा मिल रहा है कहीं भागना नही पड रहा है। उन कम्पनियों में काम करने वालों की पगार में देरी नही होती कि कल आ जाना देगें । सीधे खाते में तय तारीख पर आ जाती है।किसी तरह का विवाद देश के दुकानदारों की तरह नही है। रेाजगार नही मिला यह कहना गलत है । भ्रम मत फेलाइये लोगों के चूल्हें जल रहें है। इसलिये अपने आप को बदलिये और मुख्य घारा में आइये। विदेशी सामान बिक रहा है उसके स्तर का उत्पाद बनाइये और बाजार में लाइये। जैसे आटोमोबाइल में क्षेत्र मंे हुआ । राजदूत , एचडी , विजय सुपर , लेबेंटा आदि कम्पनी बंद हो गयी आने वाले समय में आपको कोई नही पूंछेगा। अब व्यापार की बात , एफडी आई लेकर कांग्रेस आई थी , वाल्टमार्ट आपकेा याद होगा । पूरे देश में विरोध हुआ था क्योंकि वह अपने लोगों को यहां समायोजित करने की मांग कर रहे थे। अब एैसा नही है एफडीआई के तहत जो भी यहां व्यापार करेगा वह भारतीयों को नौकरी देने के लिये बाध्य होगा। एैसा पालिसी में है। देश के लोग जब नौकरी नही दे पा रहें है न्यूनतम मजदूरी में टाल मटोल करते है देश को गरीबी की नर्क में झोकतें है तो बाहर वाले मद्छ कर रहें है तेा बुरा क्या हैं । व्यापार आज आनलाइन होने से चरम पर है सिर्फ खा़़द्धान में उनका वर्चस्व नही है जिस दिन किसान उन्हें बेंचने लगेगा उस दिन चोर व्यापारियों का क्या होगा इसका अंदाजा लगा कर टेड यूनियन उन्हें समर्थन देने को तैयार है। उनकी चोरी ने महंगाई केा चरम पर पहुंचा दिया है। देष परेषान है और वह मौज कर रहें है। उनके इस वर्चस्व को तोडना ही होगा। मगर अफसोस कुछ सरकारें अपने कुत्सित प्रयास से इस लक्ष्य में व्यवघान पैदा करने में लगी है।
गौरतलब है कि कुल हेज कलेक्शन एक साल में लगभग 12 लाख करोड़ का है यानी एवरेज 15% का एवरेज टेक्स माना जाए तो कुल व्यापार जिस पर हेज चार्ज होता है( 0% टेक्स वाली आइटम भी इतनी ही बैठेंगी) वो एक साल में लगभग 80 लाख करोड़ का है,यानी कुल व्यापार का लगभग 20% हिस्सा ऑनलाइन कम्पनियां खींच चुकी हैं।अब बात करते है आनलाइन खरीदकारी की। तो इससे सबसे बडा नुकसान छोटे दुकानदारों को है जो कि गली आदि में अपनी दुकानें चलाते है और खराब माल भी अच्छा दाम में बेंचते थे , कोई पसंद ग्राहक की नही थी क्योंकि अच्छा माल बाजार में जब है ही नही तो आप लेगें क्या? अपनी सोच उन्हें बदलना था लेकिन वह बेईमानी के जाल से बाहर निकल नही पाये।नतीजा आज सामने है विकल्प मिला तो आनलाइन ही सहारा बन गयी लोग अब घर बैठे जब माल बढिया पा जा रहें है तो बाहर क्यों जाये। अब काम करना होगा और नयी सोच पैदा करनी होगी।जिससे लोग आप के पास आये और बढिया सामान के लिये याद करे। जिसका 30% शेयर अमेजन के पास है और 20-22% फ्लिपकार्ट और बाकी में बाकी सब कम्पनियां।अफसोस कि कहीं कोई सीधा जबाब नहीं ढूंढ पाया पर अंदाज लगा पाया कि कम से कम 10 लाख रुपये प्रति सेकंड सेल है भारत मे ऑनलाइन कम्पनियों की ।यानी प्रति मिनट 6 करोड़ रुपये मिनट, यानी 360 करोड़ रुपये प्रति घण्टा और एक दिन में लगभग 4 हजार करोड़ रुपये की बिक्री।एक साल में लगभग 15 लाख करोड़ की सेल जिसका लगभग 50% सिर्फ 2 कम्पनियां कर रही हैं।ये पैसा पहले मार्किट में आता था,रोटेट होता था पर अब बस ऑनलाइन सेल में ही जा रहा है।ऊपर से तुर्रा ये की ये बिकता इसीलिए है क्योंकि अक्सर ज्यादा सेल वाली चीजों पर सब्सिडी दे रही है ये कम्पनियां मार्किट से दुकानदार को आउट करने के लिए और इसी हिसाब से अगले 5 साल में कर भी देंगी,फिर अपनी मर्जी के रेट ले लेगी,इनके पास अथाह पैसा है ,जिसका सोर्स कोई नही जान सकता । आनलाइन की बात चली है तो भारतीयों के हुनर की बात करते है । पेटीएम विदेशी नही है भारतीय है , मुद्रा का आनलाइन लेन देन करती है कहां से कहां पहुंच गयी । आज विदेशों में भी ठीक ठाक कारोबार कर रही है। एैसा और लोग भी कर सकते है। डिजीटल युग है क्रांति का जमाना है कब तक अपनी अयोग्यता का रोना रोते रहेगें। मालों को देखिये , आयेदिन खुल रहें है 70 प्रतिशत लोग भारतीय है वह सफल हो रहें है इसका कारण यह है कि उन्होेने अपनी सोच बदल ली है।अब एक सामान वाली दुकाने नही बल्कि एक सीरिज वाली दुकानें चलेगी जिसको समझ लेना चाहिये। ।भविष्य के खतरे को पहचानो और ऑनलाइन खरीददारी का विकल्प बनों।