गंगा निर्मल कैसे हो।

इतिहास की कथाओं मे वर्तमान के सूत्र ढूंढता हूँ तो बस इतना समझ आता है कि शायद हिमालय से गङ्गा को भारत भूमि की ओर मोड़ लाने में भगीरथ की अनेक पीढियां लग गईं। भागीरथ के साठ हजार योद्धाओं ने जीवन पर्यंत परिश्रम किया और इस मोक्षदायिनी धारा को भारत भूमि की ओर मोड़ दिया और फिर इस पुण्यभूमि ने हर हर गङ्गे का घोष सुना । वास्तव में शिव की जटाएं कोई मानवीय कल्पना नहीं,अपितु हिमालय की समस्त घाटियां ही कैलाशी की जटा हैं।गङ्गा उन्ही में उलझीं और उनका वेग कम हुआ।गङ्गा भारतभूमि पर उतरीं,प्रकृति से पराजित सभ्यता को पुनः प्रकृति का स्नेह मिला,जल मिला और मिली मोक्षदायिनी माँ…गङ्गा भगीरथ के तप का पुण्यफल हैं।

तभी से प्रारम्भ हुआ गोद में नवान्न और प्रथम वर्षफल ले गङ्गा में उतर कर ईश्वर को अर्पण करने का लोकपर्व छठ! रवि फसल के साथ चैत्र में, खरीफ के साथ कार्तिक में… गङ्गा के दिये अन्न-फल को सबसे पहले माता गङ्गा को ही समर्पित करने का कृतज्ञ सनातन भाव!सभ्यता इसी कृतज्ञता को ही कहते हैं ।सभ्यता की हमारी अपनी परिभाषा थी,हम उसी की सीमा में युगों से जी रहे थे।फिर हमने एक आक्रमणकारी और लुटेरी परम्परा से नई परिभाषा सीखी और फिर सत्तर वर्षों में ही इस पुण्यभूमि की आधी नदियां मर गईं।  जिस वरुणा और असि के नाम से भगवान शिव का बनारस प्रसिद्ध हुआ,वे नाला बन गईं। दिल्ली में भगवान श्री कृष्ण की कालिंदी नाला बनी हुई हैं। वाल्मीकि की तमसा,बुद्ध की फल्गु… सब लगभग मृतप्राय हैं। हजारों हजार वर्ष पुरानी सभ्यता में घुसे वाह्य संक्रमण ने राष्ट्र का बौद्धिक विनाश कर दिया,अब भगीरथ की सन्तति गङ्गा को नाला बनते देखने को विवश है|

युगों युगों से भारत को मुक्ति देती गङ्गाओं को मुक्ति कौन दिलाये?भगीरथ के पुत्रों में पुनः कौन है जो भगीरथ सा तप करे? असभ्य हो चुकी सभ्यता को सभ्य बनाने का बीड़ा कौन उठाए, नदियों में देवियों की पुनः प्राणप्रतिष्ठा कौन करे? कहाँ से आएं वे साठ हजार सगरपुत्र,जो गङ्गा तट पर खड़े हो कर कहें कि कोई नाला नदी में प्रवाहित नहीं होगा।कौन कहे कि कम्पनियों के नालों से निकलता जहर यमुना में नहीं गिरेगा?कौन गरजे कि नदियां सभ्यता की वाहक होती हैं शहर उनमें अपनी असभ्यता की कीच न बहाए! कौन आखिर कौन?

 मैं? तुम? आप? वे साठ हजार सगरपुत्र पुनः हममें से ही निकलेंगे।हममें से ही किसी को भगीरथ होना पड़ेगा।जैसे इंद्र किसी व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि एक पद का नाम था,वैसे ही भगीरथ भी एक प्रतिष्ठा ही है।जो स्वयं को इसके योग्य बना ले…। वादा कराए कि किसी नदी में कभी कोई कचरा नहीं डालेंगे,और जितना सम्भव हुआ इस असभ्यता का विरोध भी करेंगे। यही मुक्ति मार्ग है….।

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