हिन्दूओें का विभाजन कब तक

सनातन परंपराओं से कुछ कुरीतियों पर निकालने की आवश्यकता है।जिसका असर पूरे समाज पर पड रहा है। इसके लिए सब को सामने आना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि जो हम हिंदू धर्म में सनातन परंपराओं की बात कर रहे हैं। उसमें सिर्फ ब्राह्मणों के लिए ही यह व्यवस्था है। कि धर्म शास्त्र में अपनी दखल रख सकते हैं। शेष जाति हुए या बिरादरी के लिए यह व्यवस्था नहीं है।जिसमें सुधार की अत्यंत आवश्यकता है।
संस्कृत विद्यालय जो भी चल रहा है ज्योतिष धर्म शास्त्र वेद वेद पुराण उपनिषद आज की जो भी शिक्षा दी जाती हैं, वह सिर्फ ब्राह्मण बच्चों को ही दी जाती है। अन्य बिरादरी के लोग यह शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते जिसके कारण हिंदुत्व से वह विरक्त होते जा रहे हैं। उन्हें अपने धर्म की जानकारी नहीं है तो वह किस तरह से अपने धर्म में रहेंगे वह दूसरे धर्म को स्वीकार कर रहे हैं और तेजी से उसमे मिलकर नया भारतं बना रहे। देश के ज्यादातर हिस्सों में इस्लाम तेजी से पैर पसारता जा रहा है। कुछ लोग पैसे के लालच में ईसाई धर्म स्वीकार कर रहे हैं और बाद में वह अपने घरों के धन उसी धर्म में वितरित कर रहे हैं। एक मौलाना जो कि हर नमाज अता करता है और उसके बाद वह मुस्लिम बने लोगों से धन धन उपार्जन करता है। इसके अलावा इस इसाई में जो है जब प्रार्थना होती है तो इस आयत के जो पादरी हैं, वह इसाई बने लोगों से चंदा वसूलते हैं। या यूं कह सकते है हिन्दूओं के घन से यह दोनों पंथ लगातार तरक्की कर रहें हैं।
इसी तरह एक लंबी लाइन,सनातन परंपरा से जुड़े हुए लोगों की ईसाई और इस्लाम में जा रही है। कुछ और लोग हैं जिन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। जैन धर्म स्वीकार कर लिया या अन्य किसी पंथ पर चले गए। सबसे बड़ी बात यह है कि देश में इतना बड़ा विभाजन किया गया। किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। बड़े बड़े मंदिर में पुजारी हैं। करोड़ों रुपए चंदा चढ़ता है, लेकिन उन लोगों ने अपने समान कोई दूसरा स्थान बनाने की कोशिश नहीं की। नहीं किसी भी विद्यालय को खोला जिससे धर्म शास्त्र के बारे में लोग जानकारी अर्जित कर सकें और ना ही वहां पर किसी तरह की ऐसी व्यवस्था की जिससे एक नया स्थान निर्मित हो सके।
सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार हिंदुओं से जुड़े हुए और मठों और मंदिरों के चंदे को जो है, दूसरे चीजों के लिए इस्तेमाल करती है जबकि यह चंदा और सारी चीजें हिंदुओं के लिए ही इस्तेमाल होनी चाहिए थी। सरकार को चाहिए कि मंदिरों का सरकारी करण करते समय मंदिरों के विस्तार में ही उसको पर लगे उसके पैसे को लगाया जाए। इसी तरह हिंदुओं से जुड़े हुए मठों में जहां पर करोड़ों रुपए का चंदा आता है। वहां पर संस्कृत विद्यालय खोले जाएं। धर्म पुराण वेद आज की शिक्षा दी जाए और इससे भी ज्यादा जरूरी है। वह यह है कि सरकार अपने पाठ्यक्रम में वेद, पुराण, उपनिषद आदि की व्यवस्था करें ताकि जो बच्चे उसमें पड़े उन्हें इस चीजों की बेसिक जानकारी हो।

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