जब भाषा राष्ट्रीय हो सकती है फल फूल ,पशु पक्षी , नदी नाले , झंडा और पार्टियाँ तक राष्ट्रीय हो सकती है तो फिर धर्म ने ही क्या बिगाड़ा है,धर्म क्यो नहीं राष्ट्रीय हो सकता ?आप कहेंगे कि हमारा कोई धर्म राष्ट्रीय इसलिये नहीं हो सकता क्योंकि हम धर्मनिरपेक्ष हैं परन्तु प्रश्न तो फिर भी वही है कि हम धर्म निरपेक्ष क्यों हैं ?आप कहेंगे कि इस देश में अनेक धर्म हैं इसलिये किसी एक धर्म को राष्ट्रीय नहीं बनाया जा सकता , परन्तु यही बात तो भाषा आदि के सम्बन्ध में भी कही ही जा सकती है । इस देश में भाषायें अनेक हैं ,फिर भी उनमें से एक भाषा को राष्ट्रभाषा स्वीकर किया गया है । अनेक ध्वज हैं,फिर भी एक ध्वज को राष्ट्रध्वज स्वीकार किया गया है अनेक गीत हैं,फिर भी उनमें से एक गीत को राष्ट्रगीत स्वीकार किया गया है इसी तरह अनेक धर्मों के होते हुए भी किसी एक धर्म को राष्ट्रीय धर्म या राष्ट्रधर्म क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता ?आप कहेंगे कि भाई हम तो सर्व धर्म समभाव में विश्वास करते हैं। हमारे लिये धर्मनिरपेक्षता का यही अर्थ है कि हमारे लिये सभी धर्म समान हैं परन्तु क्या इसका मतलब यह नहीं हुआ कि आपके लिये धर्म तो सभी समान हैं परन्तु भाषा आदि कुछ भी समान नहीं हैं अब यदि भाषा आदि कुछ भी समान नहीं है तो फिर धर्म ही कैसे समान हो गये ?और यदि सभी भाषा आदि के एक समान होने पर भी उनमें से एक राष्ट्रभाषा हो सकती है,एक राष्ट्रगीत हो सकता है,राष्ट्रीय पशु पक्षी तक हो सकते है तो उसी तरह सभी धर्मों के भी एक समान होने पर भी उनमें से कोई एक राष्ट्रधर्म क्यों नहीं हो सकता ?सभी नागरिकों की समानता को स्वीकार करने पर भी उनमें से कोई एक ही राष्ट्रपति , प्रधानमन्त्री,मन्त्री ,मुख्यमन्त्री , एम पी , एम एल ए आदि बनता है इससे यह सिद्ध होता है कि समानता सर्वांश में नहीं होती ।मान भी लिया जाय कि यदि सर्वांश में समानता हो तो पदार्थों में भेद ही समाप्त हो जाये, पदार्थों की विशेषता ही उन्हें एक दूसरे से अलग करती है इसी विशेषता के आधार पर ही पदार्थों के साथ व्यवहार होता है कोई पदार्थ उपादेय होता है तो कोई हेय तो कोई उपेक्ष्य।सभी समान हों तो क्यों कोई हेय है तो दूसरा उपादेय ? फिर तो क्यों किसी विशेष गीत ,विशेष ध्वज,विशेष पशु ,विशेष पक्षी को ही राष्ट्रीय स्वीकार किया गया ? इसलिये मानना पड़ेगा कि पदार्थों में किसी अंश में समानता होती है तो किसी अंश में विशेषता भी होती है । उसी विशेषता केआधार पर ही किसी भाषा को राष्ट्रभाषा,किसी ध्वज को राष्ट्रध्वज और किसी गीत को राष्ट्रगीत स्वीकार किया गया है।अब प्रश्न यह उठता है कि वह कौन सी विशेषता हो सकती है जिसके कारण कोई भी चीज राष्ट्रीय बनती है,कोई एक गीत राष्ट्रगीत बनता है तो कोई एक ध्वज ही राष्ट्रध्वज बनता है ? इस प्रश्न का यही उत्तर सम्भव है कि जिस किसी वस्तु या पदार्थ का सम्बन्ध पूरे राष्ट्र के साथ हो,जिससे किसी राष्ट्र के निवासियों में अपने राष्ट्र की एकता और अखंडता का बोध हो और उसके प्रति श्रद्धाभाव उत्पन्न हो,उसे राष्ट्रीय माना जाना चाहिये ।
अब जरा सोचिए ,यह विशेषता अपने राष्ट्रध्वज,राष्ट्रगीत , राष्ट्रभाषा ,राष्ट्रीय पशु ,राष्ट्रीय पक्षी आदि आदि में है क्या ? ध्वज तो एक जड़ पदार्थ है,वह भला कैसे किसी पदार्थ के स्वरूप का बोध करा सकता है और यदि बोध नही करा सकता तो फिर उसके प्रति श्रद्धाभाव कैसे पैदा करेगा ? यही बात पशु पक्षी आदि जितनो के ऊपर राष्ट्रीय का सिक्का लगा है,सभी के विषय में कही जा सकती है।
अब रही बात राष्ट्रगीत की,तो गीत कोई भी हो , वह शब्द स्वरूप होता हैै और शब्द बोधक होता है इसलिये जनगणमन यह गीत भी बोधक तो है मगर किसका?क्या यह गीत इस देश के नाम और स्वरूप का तथा इसदेश के महात्म्य का बोध कराता है।इस गीत में भारत शब्द तो है,लेकिन,ध्यान दीजिये कि इस गीत में जय भारत की नहीं बल्कि भारत भाग्य विधाता की बोली गयी है।इस भारत भाग्य विधाता को जनगणमन अधिनायक कहा गया है,यह जनगणमन अधिनायक क्या होता है ? अधिनायक शब्द का संस्कृत में प्रयोग नहीं होता,हिन्दी में होता है और हिन्दी में यह उसी अर्थ में प्रयुक्त होता है जिस अर्थ में अंग्रेजी का डिक्टेटर या उर्दू का तानाशाह प्रयुक्त होता है तो इस गीत में जनगण के मन के अधिनायक अर्थात् तानाशाह की जय यह कह कर बोली गयी है कि वह भारत के भाग्य का विधाता है ,अब वह तानाशाह कौन है यह तो इस गीत में स्पष्ट नहीं है पर यह एकदम स्पष्ट है कि इसमें भारत की जय तो नहीं ही बोली गयी है ,तो फिर इस गीत का सम्बन्ध भारत नाम के राष्ट्र के साथ कैसे हुआ ?आखिर कोई वस्तु राष्ट्रीय तभी हो सकती है जब उसका सम्बन्ध पूरे राष्ट्र के साथ हो और उससे उस राष्ट्र की एकता और अखंडता के बोध के साथ उनके प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न हो।
यह एकदम स्पष्ट है कि अपने इस देश में ध्वज आदि जितनी भी वस्तुओं के पूर्व राष्ट्र शब्द लगा कर उन्हें राष्ट्रीय बताने की कोशिश होती है ,उनकी तरह ही यह गीत भी राष्ट्रीयता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता , फिर भी इन पर राष्ट्रीय होने का लेबल लगा दिया गया है।ये क्यों राष्ट्रीय हैं ? इनके राष्ट्रीय होने का मतलब ही क्या है ? यदि बिना किसी मतलब के ही ये राष्ट्रीय है तो फिर धर्म भी क्यों नहीं राष्ट्रीय माना जाता,जब कि इन सभी राष्ट्रगीत ,राष्टध्वज आदि से एकदम विपरीत धर्म में तो वे सारी विशेषताएँ विद्यमान हैं जिनके कारण किसी वस्तु को राष्ट्रीय स्वीकार किया जा सके?यदि धर्म में नहीं हैं तो फिर ध्वज गीत आदि किसी भी वस्तु में नहीं हैं। यह सोचने की,विचार करने की बात है ।