बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने और खासकर राजद के फिर से सत्ता में दखलअंदाजी के बाद से राज्य में जिस कदर अपराध बढ़े हैं, उसने राज्य को उनके फैसले पर सोचने को विवश कर दिया है। आए दिन लूट-खसोट, हत्या, अपहरण, बलात्कार व अन्य अपराध की वारदातों ने राज्य की जनता को सहमा दिया है। ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी साख खोते जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वज़ह है कि राज्य की जनता ने नीतीश कुमार को देखकर ही राजद के उम्मीदवारों पर लंबे अरसे के बाद भरोसा किया था, लेकिन फिर से दबंगई की घटनाओं ने नीतीश कुमार के फैसले पर ही सवालिया निशान लगाना शुरू कर दिया है।
बीते 13 फरवरी को भोजपुर जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र में बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा की गोली मार कर हत्या कर दी गई। विशेश्वर ओझा की हत्या से पहले छपरा के तरैया में बीजेपी नेता केदार सिंह की गोली मारकर हत्या की गई थी। वहीं भागलपुर जिले में एक वकील की सरेआम हत्या हो गई। ऐसे हर दिन मामले बिहार में होते जा रहे हैं जो पहले की तुलना में कहीं ज्यादा है। ऐसी ही स्थिति राजद के एक समय के 15 वर्षों के शासन में हुआ करती थी, जब लोग भय में जीते थे। सुबह घर से निकलने के साथ ही लोग दहशत में हुआ करते थे कि शाम तक वह खुद घर सुरक्षित परिवारवालों के पास लौट आए। इस पर नीतीश कुमार को गौर करना चाहिए कि क्या बिहार में उनके चेहरे पर लोगों ने इसलिए उन्हें मत दिया था ?