सभी तरह के प्राकृतिक झरनों का देश है भारत

lakesहमारा भारत तीन तरफ से जल से घिरा है और समुद्र के अंदर जहां ढेर सारे टापू है वहीं भारत के भीतर 28 ऐसे झरने है जो कि अपनी मौजूदगी का अहसास रंगारंग तरीके से कराते है लेकिन इन झरनों में कुछ ही है जिसे देश के लोग जानते है और घूमने जाते हैं. इतना ही नही वहां के लोगों के लिये यह रोजगार का साधन है किन्तु यह काफी छोटे है जिसे बड़े पैमाने पर विस्तार नही करने दिया गया जैसे मध्यप्रदेश के जबलपुर मे नर्मदा नदी से निर्मित भेडाघाट , यहां संगमरमर से बने शिवलिंग के लिये लोग आते है और खरीद कर ले जाते है क्योकि मान्यता है कि यहां यह तराशे नही जाते बल्कि नदी में खुद बहते हुए इन पत्थरों को आकार मिल जाता है और यह पूज्यनीय हो जाते है। इक्का दुक्का ही ऐसे है जिसे विदेशों में पहचान मिल पायी है बाकी सभी भारत में ही गुम होकर रह गये। जिसके कारण सैलानियों का आना नही हो पाता वरना यह भी डल झील की तरह वहां के लोगों के लिये रोजगार का प्रमुख साधन होते और भारत की बेरोजगारी को कम करने में सहायक होते। भारत सरकार इन झीलों का व्यवसायिकरण करे और प्रचार करे तो आज यह झील अपने आप में भारत की पहचान हो सकते है। इनमें वह सभी गुण है जो भारत को खासा आय का प्रदान कर सकती है।
अब बात करते हैं धरती के स्वर्ग व झीलों के प्रदेश जम्मू कश्मीर की, कहा जाता है, डल झील तो सिरमौर है ही, उसके साथ मीठे पानी की बुलर झील, बैरीनाग झील, मानसबल झील , नागिन झील, शेषनाग झील , अनंतनाग झील सभी झीले अपने आप में बेजोड़ है सबसे खास बात यह है नागिन झील , शेषनाग झील का जो स्वरूप है उस तरह का स्वरूप पूरे विश्व में देखने से नही मिलता. इसे प्रचार करने की आवश्यकता है और यही आतंक का कारण भी है क्यूँकि वहां के लोगों को लगता है कि अगर इसका प्रचार होगा तो लोग इसे देखने आयेगें और उसके लिये यहां पर व्यापार भी बड़े पैमाने पर होगा जिस पर अभी उनका अपना हक है और जिस तरह से चाहे वह इसे कर सकते है। सरकार को इसे इस दायरे से बाहर निकालना होगा और देश में ही नही पूरे विश्व में अपने इस अलौकिक झील का प्रचार करना होगा। यह भारत की सोने की चिडिया का हिस्सा है जिसे हम पिछले कई वर्षोसे पनपने नही दे रहे हैं सबसे बडी बात यह है कि रेशमी पहाड़ व देवदार के बीच उत्पन्न यह झरने किसी भी देश में नही है और भारत में है तो अविकसित अवस्था में पड़ा है जबकि विदेशी पर्यटकों के आर्कषण का केन्द्र होना चाहिये।
इसके बाद उत्तराखंड प्रदेश आता है, यह पर्यावरण व बर्फीले पहाड़ की लिहाज से जम्मू कश्मीर से कम नही है। इसमें वैसे तो अनगिनत छोटे मोटे झरने है लेकिन सात झीलें सबसे ज्यादा चर्चित है। वह है सातताल झील , नैनीताल झील , राकसताल झील, मालाताल झील, देवताल झील , नौकुछियाताल झील, खुरपाताल झील है यह सभी झीलें पर्यावरण से लबरेज है और आत्मशांति का प्रमुख मार्ग है। जम्मू कश्मीर व उत्तराखंड की यही विशेषता भी है एक ओर जहां बर्फ से लदे पहाड़ मिलते है तो दूसरी तरफ देवदार के पेडों से सजी पहाडियां मिलती है जो दर्शकों को अपनी ओर आर्कषित करती है। यह अपने आप में अलग तरह का अनुभव होता है जिसके लिये दर्शक यहां आ सकते है और अपनी छुट्टियों को बिता सकते है। प्रदेश सरकार को तो इससे आय हो सकती है किन्तु उससे ज्यादा भारत का नाम हो सकता है। अब बात झीलों की चल रही है तो यहां यह बात बता देना भी उचित होगा कि भारत में पहाडी क्षेत्र ही नही बल्कि राजस्थान का मरूस्थलीय क्षेत्र भी शुमार है। पूरे राजस्थान में सात झीलों का एक ऐसा समिश्रण है जो पूरे देश में चर्चा का विषय है जिसे अपने आप को प्रतिस्थापित करने की जरूरत है। ये झीलें है राजसमंद झील , पिछौला की झील , सांभर झील , लुनकरनसर झील , जयसकंद झील , फतेहसागर स्थित झील व डीडवाना झील। इन झीलों में मीठा व खारा दोनों तरह का पानी है, इसके अलावा आंध्र प्रदेश में दो झीलें है जिनके नाम हुसैनसागर झील व कोलेरू झील है , तमिलनाडु में पुलीकट झील , मणिपुर में लोकटक झील, केरल में बेम्बानड झील , महाराष्ट में लोनार झील व उडीसा की चिल्का झील को आर्कषण का केन्द्र बनाया जा सकता है।किन्तु अभी ज्यादातर स्थानों पर सरकार की नजर नही पहुच पायी है।
इन झीलों के बारे में कुछ और बातें शेयर की जा सकती है जैसे उडीसा की चिल्का झील भारत की सबसे बडी झील है किन्तु इसका प्रचार प्रसार न होने के कारण इसका सौन्दर्य विश्व क्षितिज पर नही उभर सका, खारे पाने की यह लैगून झील भारतीय नौसेना का प्रशिक्षण केन्द्र भी हो सकता है शायद इस वजह से इसे प्रचार से दूर रखा गया हो। हलाकि खारे पानी की और भी झीलें है जैसे सांभर व डीडवाना झील जिसका उपरी सिरा मरूस्थल होने के कारण खारा है इसे भी प्रचार से वंचित रखा गया, यह बात अभी तक समझ से परेय है। इन दोनों झीलों के बारे में एक बात और प्रसिद्ध है कि पूरी दुनिया में सांभर झील जहां वालसन का प्रतीक है वहीं डीडवाना झील प्लाया का बहुत बडा उदाहरण है। इसी तरह मीठे पानी की सबसे बडी झील बूलर झील जम्मू कश्मीर में है लेकिन लोग डल झील को जानते है वूलर को नही, सांभर व डीडवाना को नही। इसका भी एक मात्र कारण वहां की उपेक्षा है। सबसे बडी कृतिम झील भाखडा नागल बांध सतलुज पर बनाये जाने से निर्मित हुई वह गोबिन्द सागर झील है और पंजाब के रोपड में स्थित है लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे भी प्रचार से वंचित रखा गया। उत्तराखंड की पंचखोपरी नदी सबसे उंचाई पर स्थित है और महाराष्ट के बुलढाना की लोनार झील ज्वालामुखी से उद्गार से बनी झील है, इसे भी प्रचार से दूर रखा गया। कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि हमारा देश एक ऐसा देश है जहां पर हर तरह की झील है और सैलानियो के आर्कषण का केन्द्र बन सकता है यदि सरकार सार्थक पहल करे और प्रशासन इसपर गंभीरता से ध्यान दे। इतना ही नही आय का एक प्रमुख स्रोत भी बन सकता है।

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