यह सत्य है कि कला और संस्कृति सीमा हीन और दायरों से परे होती है। लेकिन इसमें कोई शंका नहीं कि यह केवल हिंदुस्तान पर ही लागू की जाती है। पाकिस्तान जैसे देश इस परिभाषा से अलग क्यों रखे जाते हैं ? क्या ये सच नहीं कि वहां भारतीय कलाकार न तो अपनी प्रस्तुति दे पाते हैं और न ही उनको वह सम्मान मिलता है ? क्या ऐसा एक भी पाकिस्तानी कलाकार मिला, जिसने भारत से पैसे बटोरने में तो कोई आपत्ति नहीं की लेकिन भारत पर हमलों की कभी निंदा की हो? वे आते हैं, गा बजा कर, कुछ अभिनय दिखा कर यहाँ से पैसे बटोर कर वापस कराची और लाहौर चले जाते हैं मानो हिंदुस्तान उनके लिए धन कमाने की मंडी मात्र हो। क्या भारत ऐसे तथाकथित कलाकारों के लिए कला का एटीएम है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिस पर उन्हें ज़रूर अमल करना चाहिए जो पाकिस्तानी कलाकारों को भारत मौका देने के पक्षधर हैं। हमें भारत की कला और संस्कृति को अगर सुरक्षित रखना है तो इसमें ऐसे मुल्क जो हमारी संस्कृति की कद्र भी नहीं करते हैं और यहां से पैसा भी कमाते हैं, पर नज़र रखनी होगी। जो हमारा सम्मान करेगा, हम उसी के हैं और वही हमारे लिए सम्मान के काबिल है। विचार ज़रूर करें।