भारत एक बार फिर विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है इसका सबसे बडा उदाहरण पिछले दिनों अरब देश में बनने वाले मंदिर की भूमि पूजन व उसके कार्यक्रम में होने वाले संस्कार थे। जिसमे विश्व को जोडने के लिये एक ओर जहां हिन्दू के प्रकांड विद्वान शामिल हुए वहीं मुस्लिम के उलेमाओं को भी शामिल किया गया । रीतिरिवाज मे मुस्लिमों को शामिल करना इस बात की ओर इंगित करता है कि हिन्दओं में अब शिरकत मुस्लिमों की भी होने लगी है। यह निश्चित तौर पर एक ऐसे रास्ते की ओर हिन्दूओं को लेकर जायेगा जिससे उनके विस्तार को मदद मिलेगी और वह ईसाई ,मुसलमान की तरह अपने आप को विश्व में तीसरी शक्ति के रूप में स्थापित कर सकेगा।
सही मायने में देखा जाय तो राधेकृष्ण के मंदिर के लिये अरब की जमीन सबसे उपयुक्त है क्योंकि वहां वास्तव में गीता के ज्ञान की आवश्यकता है और यह एक ऐसा ज्ञान है जो कि परिवार , समाज व राष्ट्र के ज्ञान के साथ साथ जीने के तरीके भी बताता है। अरब में दासी प्रथा भी है और बहुपत्नी विवाद भी , एक ओर जहां विश्व में महिलाओं की संख्या कम हो रही है वहीँ अरब में शेखों के पास हजारों पत्नी है जो बेवफा जिन्दगी जी रही है। गीता व कृष्ण का ज्ञान उन्हें नयी दिशा की ओर ले जायेगा। और इन दोनों का जितना प्रसार होगा उतना ही अरब देशों में इंसानियत का विस्तार होगा।
इसी तरह हाल की बात की जाय तो अमेरिका में भी एक हिन्दू मंदिर बनने की बात की जा रही है ,जो भगवान राम व सीता का है। अगर ऐसा हुआ तो यह अमेरिका में भारत को मिलने वाला सबसे बडा सम्मान होगा। क्योंकि अभी तक वहां पर जो मंदिर है वह भारत से गये लोगो तक ही सीमित है और उनके बारे में अमेरिका में कुछ नही बताया जा रहा है लेकिन जब अमेरिका के सहयोग से यह मंदिर बनेगा तो उसके बारे मे प्रचार भी होगा और वहां के लोगों को बताने का प्रयास भी होगा कि आखिर यह क्यों बनाया गया और जिनका मंदिर है वह है कौन ? भगवान राम के बारे में जानने पर उनके विचारों को मानने वाले 10 प्रतिशत लोग भी हो गये तो अमेरिका में यह जीत वैसे होगी जिसका मुकाबला कोई देश नही कर सकेगा।
वैसे भी भारतीय संस्कार की बात की जाय तो इसमें कोई संदेह नही की , वह विश्व के सभी रीति रिवाजों में सबसे आगे है । इसका एक मात्र कारण यहां के परिवार की व्यवस्था व उसके एक साथ रहने व खडे होने की परम्परा व बलिदान की भावना है। यह परिवार बिखरते नही है और जीवन पर्यन्त यहां साथ साथ रहते हुए एक दूसरे के काम आते है। जबकि अन्य पंथों पर संस्कर अपने स्वार्थ तक निहित है । इसलिये ही जब भी उदाहरण की बात होती है तो भारत में रह रहे मुस्लिमों , ईसाईओं व अन्य पंथों की बात की जाती है। वास्तव में देखा जाय तो भारत की यह सबसे बडी दौलत है जो पूरे विश्व में किसी के पास नही है।
फिलहाल केन्द्र में मौजूद भाजपा सरकार की यही कोशिश है कि पूर्व में जैसे हिन्दू सनातन धर्म के रूप मे जाना जाता था और इसी से विचाार धारा निकल कर पहले पंथ बनी और अब धर्म के रूप में आकर पूरे विश्व के अपने आस्तिव को बढाने के लिये बेताब है उसी तरह हिन्दू भी अपनी वास्तविक शक्ल में आये और सम्पूर्ण विश्व को एक नयी दिशा दे। क्योंकि जड तो यही है और यह जितना ही विकसित होगा फल उतना ही मीठा व अच्छा होगा जो स्वस्थ समाज को नये रंग व नयी उर्जा प्रदान करता रहेगा।