सरसंघचालक मोहन भागवत ने जाति व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया है सर्व संघचालक की पहल ने इस विषय को पुनः पटल पर ला दिया कि संत समाज भी जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रयास में सहभागी होने का दर्द है व पीठाधीश्वर जगद्गुरु विष्णु प्रपन्नाचार्य तीर्थ ने भी शिक्षा के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की बात कही है हर स्तर पर मंच और जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को मिटाने के लिए जिस तरह से आवाज उठ रही है। वह सकारात्मक व सुखद है साथ ही इससे आगे बढ़ाए जाने की आवश्यकता परिलक्षित होती है।
जाति व्यवस्था कैसे समाज को विकास में बाधक है और संत समाज व बड़े मंचों से हो रही पहल कैसे सकारात्मक बदलाव का वाहक बन सकती है इसकी पड़ताल आज हम सबके लिए बहुत बड़ा मुद्दा है।
इस मामले में हिंदू विचार को ने अपने वक्तव्य रखे संत समाज की ऐसी एक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखता जो समाज में विसंगतियां या वैमनस्य फैलाती हो जाति वर्ग की अपेक्षा व्यवस्था व्यक्त की योग्यता उसकी सामर्थ्य और आवश्यकता पर आधारित होनी चाहिए ।संत समाज इसी पर आधारित व्यवस्था के तहत काम करता है उसमें ना कोई जाति है और न कोई वर्ण व्यवस्था,केवल शिक्षा से ही दूर किया जा सकता है ऐसी व्यवस्था हो जो गरीब और अमीर के लिए समान हो इस दिशा में संत समाज धार्मिक व्यवस्थाएं काफी कुछ कर रही हैं दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सरकार को भी आगे बढ़ना चाहिए।
सनातन हिंदू व्यवस्था वर्ण और आश्रम है अभी पूरे विश्व के किसी भी संप्रदाय ने इसके समकक्ष कोई वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं खोजी है जाति हमारी धार्मिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं है यह भारतीय संविधान का सच है जाति प्रमाण पत्र धर्माचार्य नहीं अपितु सरकारी कार्यालयों से जारी होता है जमुना संवैधानिक है वास्तव में इसे संविधान से ही दूर किया जा सकता है इससे पहले समाज को भी यह तय करना होगा कि उसे जाकर भेदभाव समाप्त करना है या जातियां समाप्त करनी है ।मुगलों से पहले देश में जाति के स्तर पर भेदभाव व्यवस्था नहीं थी मुगलों ने इसको समाज में लागू किया इसके बाद अंग्रेजों ने इसे और सघन कर दिया और सनातन धर्म को तोड़ने का काम किया देश आजाद हुआ तो जाति धर्म की विसंगतियां तेजी से फल में लगे सबसे पहले तो भारतीय संविधान से ही जाति शब्द को हटाया जाना चाहिए किसी भी तरह के फॉर्म में जाट का वर्ण नहीं होना चाहिए इसके स्थान पर सनातन हिंदू शब्द का प्रयोग समाज को समझाने का काम किया जा रहा है कि जाति एवं धर्म का बड़ा नुकसान हो चुका है और इसे रोकने के लिए सभी को आगे आना होगा।
सनातन धर्म जोड़ना सिखाते है तोड़ना नहीं जीव जंतु नदी पर्वत सभी हमारे लिए पूजनीय सनातन धर्म में जाति वर्ण व्यवस्था सामाजिक ताना-बाना पर आधारित है परंतु इसकी आड़ में हम किसी की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए जब हमारे देवी-देवता ऋषि मुनि किसी का तिरस्कार नहीं करते तो उसके अनुयाई कैसे किसी मनुष्य का त्याग कर सकते हैं छुआछूत अपशब्द हमारे धर्म का हिस्सा नहीं है गुलामी के दौर में हिंदुओं को बांटने के लिए भ्रांतियां पैदा की गई जिसे खत्म करना है धर्मगुरु कथा प्रवचन गोष्ठियों व संगठनों के आधार पर बनाते हुए वर्ण व्यवस्था को सही स्वरूप जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि जाति व्यवस्था का विरोध समर्थन में ही किया गया इस्लाम में भी सदैव वर्ग के आधार पर भेदभाव का विरोध और इंसानियत की पैरवी की गई है कुरान ए मजीद की आयत में लिखा है कि अल्लाह ने तुमको मर्द और औरत के रूप में पैदा किया है काम और कबीले बनाए हैं जातिवाद ने समाज को बहुत नुकसान पहुंचाया इंसान को एक ही बना एक बंदे के बनाए हुए हैं हर धर्म के बुद्धिजीवियों को समाज को बांटने का जाति वर्ण का विरोध करना चाहिए एक इंसान दूसरे इंसान को किसी प्रकार छोटा ना समझे मजहब और आस्था अलग अलग हो सकते हैं लेकिन इसमें भेदभाव की कोई जगह नहीं है इस भाव को फैलाने के लिए धर्मगुरु काम कर रहे हैं इसे सघन करना है सरकारों को भी चाहिए कि वर्ण व्यवस्था को समाप्त कर स्कूलों पर कार्यक्रम चलाए और इस की रोशनी में पाठ्यक्रम तैयार करें ताकि अगली पीढ़ी इस व्यवस्था के खिलाफ जाति धर्म और संप्रदाय के नाम पर समाज को बांटने के लिए बस के रूप में ही बनाया बाकी कोई अंतर नहीं है ।इंसानियत सर्वोपरि है और धर्म समाज को नुकसान होता है जिसका खामियाजा इंसान को भुगतना पड़ता है सभी को इस व्यवस्था को हटाकर इंसानियत पर ध्यान देना चाहिए।
यही बात अंत पंथ्यों के धर्मगुरु भी कहते हैं सिख धर्म में कहा गया है कि समाज में जातिगत भेदभाव खत्म होना चाहिए इसका समाज को व्यापक नुकसान झेलना पड़ रहा है ।सबसे पहले सियासी दखल ना जी बंद होनी चाहिए क्योंकि सियासत दल जाति के आधार पर वोटों को बांटकर उनका लाभ लेने के लिए तत्पर रहते हैं जन्म से पहले किसी की जान निर्धारित कर दी जाती है जो तर्कसंगत नहीं है और विचार क्षमता के आधार पर ही उसका वर्ग में होना चाहिए जाट आरक्षण में इसी तरह का मुद्दा है जिसके हाथ में नहीं है आरक्षण के लिए आर्थिक स्थित सबसे अहम मापदंड है उसी के आधार पर दिया जाना चाहिए अगर कोई जाति के आधार पर आरक्षण हासिल करता है तो वह आर्थिक रूप से संपन्न है तो वह सही नहीं है।
फिलहाल भागवत जी के कहने के बाद इस व्यवस्था ने एक नई परंपरा शुरू कर दी है जिसका लेकर के सभी लोग अपना अपना समर्थन देने में लगे हैं वह चाहते हैं कि जातिगत व्यवस्था खत्म हो जाए और लोग सामान्य जीवन जी सकें इसके लिए राजनीति में सुधार की आवश्यकता है और सरकारी व्यवस्था में भी जिससे हमें शीघ्र करना होगा।