आज 6 दिसंबर – गीता जयंती है। महाभारत का सार कथानक अनीतियों से लड़ने वालों की मीमांशा का विश्लेषक है। गीता युद्ध मैदान में विचलित अर्जुन को समझाने का सारभूत तत्वज्ञान है। श्रीकृष्ण ने हतोत्साहित अर्जुन को अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करने हेतु जो कर्मयोग सिखाया उसका सारतत्व है गीता।
महाभारत का ख्यातिप्राप्त श्रेष्ठ राजयोद्धा अर्जुन विमोह के वश हो सशंकित, उद्विग्नता की स्थिति को प्राप्त होकर अनेक क्षत्रिय धर्म के कर्तव्य मार्ग से भटक जाता है। कर्म की वेदी पर धर्मनीतिक हवन में आत्माहुति नहीं डालना चाहता है। वह डरता है अपने कुल के विनाश से। वह तर्क देता है, नीतियों की बातें करता है पर कभी अपने ऊपर लागू नहीं करता है, अपने तर्कों से अपनी जिज्ञासा मिटाकर आत्मप्रगति के मार्ग को अवरूद्ध कर देता है। विकर्म के पथ पर आतताईयों को चलता देखता है परन्तु कर्म के नगाड़ों की ध्वनि से भयभीत हो स्वयं को कर्मपथ से च्युत करता है। वह डरता है, भयभीत होता है, पसीने से भीगकर उसके अंग शिथिल हो जाते हैं तथा वह राजकर्म के कर्तव्य पथ पर चलने से नकार देता है। अपने धनुष बाणों के साथ वह अपने कर्तव्य राजकर्म – क्षत्रिय धर्म से विमुख हो जाता है। अर्जुन के राजमार्ग पर मोहग्रस्तता का ग्रहण लगता है अतः श्रीकृष्ण गीता का ज्ञानामृत पथभ्रष्ट अर्जुन को देते हैं तथा कर्तव्य पथ पर चलने को कहते हैं। प्रजा की रक्षा के लिए आतताईयों का वध करने में उसकी रूकावटों को हटाने लिए गीता का तत्वज्ञान एक क्षत्रिय राजयोद्धा को देते हैं।
आज अनीतियाँ सर्वत्र व्याप्त हैं। इन अनीतियों से लड़ना ही महाभारत है। ऐसे समय जब अनीति, अधर्म , कुरीतियों से लड़ते हैं तो अपने कर्तव्य कर्म की पात्रता प्राप्त करने के लिए गीता ज्ञान की आवश्यकता होती है।
अन्याय कर्म को सहने वाला व्यक्ति भी उस अन्याय कर्म परिणामों का दोषी होता है। अर्जुन एक प्रसिद्ध धनुर्धर और राजयोद्धा है जिसकी धनुष की टंकार से अन्यायी कांपते हैं। अज्ञानता के मल के कारण हो वह अपने आप को पहिचान नहीं पाता है तथा अपने राजकर्म के पथ कर्तव्य को भूल जाता है तथा उसे स्वयं का राजमार्ग दिखाई नहीं देता है। ऐसी स्थिति में सही मार्गदर्शन के रूप में गीता ज्ञान का आर्विभाव हुआ है। अतः गीता हमें कर्तव्य कर्मों का बोध करा जीवन को अधिकारों के कंटकाकीर्ण पथ से निकाल जीवन को उसका राजमार्ग प्रशस्त करती है। यही मार्ग अर्जुन को भगवान कृष्ण ने गीता के माध्यम से बताया है।
श्री कृष्ण भगवान हमारे ईष्ट देव है और हजारों साल से हम इनकी पूजा करते आ रहें है। लेकिन असल में हम उन्हें उतना ही मानते है जितनी हमारी जरूरतों को पूरा कर सके । उन्होंने महाभारत के समय श्रीमद्भागवत गीता में कही, उस पर हमारा ध्यान नही जाता और हम सोचते है भागवत कथा अपने घर में सुनकर हमने सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया । ऐसा नही है , भागवत कथा के कितने रूप है यह कोई नही जानता।हर व्याख्ता उसे अपने तरह से देखता है और उसी तरह से व्यक्त करना चाहता है। जिसके कारण उसके मूल भाव विलुप्त हो जाते है।यदि भारतीय दर्शनशास्त्र की बात करें तो श्रीमद्भागवत गीता का जो सार है वह यह है कि ईश्वर को प्राप्त करने के तीन योग बताये गये है। ज्ञान योग जिसके तहत श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन आता है। दूसरा भक्तियोग जिसके तहत प्रहलाद का नाम आता है और तीसरा प्रेमयोग जिसमें लोग वैरागी हो जाते है जैसे मीरा। चौथा कोई मार्ग नही है ,ईश्वर को प्राप्त करना है साक्षात्कार करना है तो वह इन्ही मार्गाे पर चलना होगा। इस बार गीता जयंती का सार भी यही होगा जिसे प्रधानमंत्री ने विशेष महत्व देने का प्रयास किया है।
क्या होगा विशेष:
हर साल हरियाणा के कुरूक्षेत्र में गीता जयंती मनाई जाती है ,लेकिन इस बार बात कुछ और है भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा, रिहाइश द्वारिका , निर्वाण स्थली सोमनाथ में भी इस गीता जयंती के अंश देखने को मिलेगें। पूरे विश्व को इसमें शामिल किया जा रहा है, जिसमें विदेशों में स्थित बड़े कृष्ण मंदिर इस कार्यक्रम को वृहद रूप देने वाले है । कहा यह भी जा रहा है कि विश्व में भगवान कृष्ण के अनुयायियों की संख्या जिस तरह से बढी है , उसे देखते हुए इस तरह का आयोजन साल में कई बार होना चाहिये। जिसमें विश्व के सभी जगहों पर रहने वाले उनके अनुयायी चाहे वे किसी जाति , भाषा या मूल के हो , हरे राधा हरे कृष्णा के नाम पर एक जगह इकट्ठा हो सके। इस बार गीता जयंती इस काम में मील का पत्थर साबित होगा। भारत सरकार व हरियाणा सरकार के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में कई कार्यक्रम ऐसे होगे जो पूरे विश्व का ध्यान आर्कषित करेगें। ताकि भगवान श्रीकृष्ण के नाम को और विस्तारित रूप पूरे विश्व में दिया जा सके। इस दौरान एक हब बनाने का भी प्रयास होगा , जिसके तहत उनकी जन्मस्थली मथुरा जो कि उत्तर प्रदेश में स्थित है और उनकी रिहाइश जो कि वेदद्वारिका व निर्वाण स्थल सोमनाथ में है जो कि गुजरात में स्थित हैं, उनकी कर्मस्थली कुरूक्षेत्र जो कि हरियाणा में है तीनों को मिलाकर बनाने की है जहां विश्व से आने वाले अनुयायी भगवान श्रीकृष्ण के बारे में बृहद अध्ययन कर सके।
इसलिये मनाते है गीता जयंती:
अब बात हम गीता जयंती मनाते क्यों है? यह एक अबूझ पहेली रही है । वास्तव में गीता का ज्ञान हमें अपने जीवन में कैसे रहना है यह सिखाता है। किस कर्म को करना है किसे नही, इस ओर इंगित करता है।सबसे बडी बात कि इंसान क्या है और उनकी शक्ति क्या है इस बात का बोघ कराता है,गीता ने ही बताया कि कर्म करते रहना चाहिये फल की चिन्ता नही करनी चाहिये , गीता ने ही सिखाया कि आत्मा अमर है वह एक काया छोडकर दूसरे काया में प्रवेश कर जाती है, मृत्यु एक सच है, विपदा के समय नर तो क्या नारायण भी अपना नियम बदलते देखे गये है, प्रकृति में मौजूद सभी चीजों का उपयोग किस रूप में किसके लिये है आदि आदि।गीता चिंतन , आध्यात्म और एकांकी की ओर प्रेरित करता है और कहता है कि पहले अपने जीवन को जीने योग्य बनाओ, फिर दूसरे के जीवन की चिंता कर उसे सहयोग दो, और फिर बचे तो अपने कुटुम्ब के बारे में सोचे। आपका जीवन सुधर गया तो आपके कुटम्ब का जीवन वैसे ही सुधर जायेगा।
गीता के तथ्यों से खिलवाड अब नही:
पिछले कुछ सालों की बात करे तो गीता जयंती एक मनोरंजन की तरह था जिसमें बहुत कुछ ऐसा होता था जिसका गीता से कोई ताल्लुक ही नही था। जिसे अब सुधार कर वास्तविक गीता की ओर मोड़ने का प्रयास केन्द्र व प्रदेश सरकार की ओर से किया गया है। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि कहीं से भी किसी भी तरह गीता के तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा न जाय। जिससे विश्व में गलत संदेश जाय।सबसे खास बात यह है कि इस बात की पुरजोर कोशिश की गयी है कि जो भी सैलानी आये उन्हें लगे कि वह इस काल में नही बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के काल में है और उसी तरह के माहौल को बनाने का प्रयास किया गया है।खानपान व पहनावा भी जो होगा वह इस कार्यक्रम के दौरान उसी तरह का होगा।इस काम को करने में हरियाणा को ज्यादा प्रयास इलिये नही करना पड़ा क्योंकि उनका मूल स्वभाव अभी भी देखने को मिलता है। कुरूक्षेत्र की मिट्टी का स्वभाव उनमें दिखता है , ग्रामीण संस्कृति होने के कारण तीर्थस्थल स्वतः ही प्राचीन काल में पहुंच जाते हैं।
हाईटेक करने की कोशिश:
वैसे गीता जयंती पर हरियाणा की खट्टर सरकार ने भी काफी आयोजनों को अनुमति दे दी है और कहा है कि इस बार यह क्षेत्रीय नही, देश का नही बल्कि पूरे विश्व का होगा। इस दौरान 48 कोस में फैले पांच जिलों के 134 तीर्थ स्थलों पर कार्यक्रम होगा, जो महाभारत के कार्यकाल से जुडे है और उनकी मान्यता अभी भी है। गौरतलब हो कि इन तीर्थस्थलों को विकसित करने के लिये एक पर्यटन पैकेज भी तैयार किया गया था जिसमें सभी स्थलों पर उससे जुडी लाइब्रेरी ,संग्रहालय व कई प्रोजेक्ट इस दौरान शुरू होगें। ताकि यह पर्यटन की दृष्टि से निखर सके। इसके अलावा गीता की जन्मस्थली कुरूक्षेत्र को वाई फाई सिटी के रूप में अब विकसित किये जाने की बात कही जा रही है।देश विदेश से आने वाले लाखों लोगों के लिये सांस्कृतिक रूप से तैयारी की है जिन्हें हरियाणा के संस्कार , संस्कृति व रिति रिवाज के साथ साथ देशी खाना भी उपलब्ध होगा।जगह जगह महाभारत के काल की गाथाओं को रागनी के रूप में सुनाने व उसे प्रदर्शित करने का भी रिवाज पिछले कई दशकों से चल रहा है उसे और आधुनिक रूप देने की बात की गयी है। इन सभी तीर्थस्थलों को जोड़ने के लिये हरियाणा परिवहन ने कुछ विशेष बसें चलायी है जो इस मंशा को पूरी करने में मददगार साबित होगी।
Very nice