दीपावली मात्र भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया का भी एक बहुत बड़ा त्यौहार है। खासतौर से दक्षिण अफ्रीका में इसे उसी उल्लास से मनाया जाता है जिस तरह अपने देश में किया जाता है।ऐसा त्यौहार है जो कई अन्य धर्मों द्वारा हमेशा से मनाया जाता रहा है वह चाहे सिख धर्म हो या बौद्ध धर्म के प्रति कई मान्यताएं हैं भगवान राम जब 14 साल के वनवास से वापस अयोध्या पहुंचे तो उनके आगमन पर पूरे अयोध्या को प्रकाश से भर दिया गया दीपमाला तैयार की गई जो इस बात का प्रतीक थी कि किस तरह से लंबी काली रात के बाद उजाला का समय आता है इसके अलावा यह भी माना जाता है कि भगवान महावीर ने इसी दिन मोक्ष प्राप्त किया था जैन धर्म में भी इस पर्व की मान्यता है इसी तरह भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म को सम्राट अशोक ने इसी दिन अपनाया था इसलिए भी यह त्यौहार बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए खास है एक ऐसा त्यौहार जो कई तरह से सत्ता की ओर इंगित करता है ।
पिछले कुछ वर्षों में हमने इस त्यौहार का स्वरूप बदल डाला जिससे इसकी गरिमा को बदल दिया और कई तरह से दुष्परिणामों को जन्म दिया है। आज से 40 50 साल पहले दीपावली मिट्टी के दीपों से प्रकाश करने का त्यौहार था जब कुम्हारों के चौक से बने दीपक घर प्रकाशित करते थे कि तेल के जलते दीप को से पर्यावरण को भी सांस लेने का मौका मिलता था वैसे आज भी कुछ हद तक कुछ उस तरफ लोगों का रुझान रहता है लेकिन जिस तरह से अब बिजली की खपत और जानवरों में उसकी जगह ले ली है उस से आने वाले समय में हमें बड़ी ही कठिनाई झेलनी होगी। जब बिजली की खपत ने देश को वैसे भी व्यथित कर रखा हो तब त्यौहार मनाने का कोई लाभ नहीं है।
इसके साथ ही दीपावली पर बड़ी मात्रा में आतिश बाजी की जाती है और लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं इस तरह जहां हम एक तरफ संसाधनों का अपव्यय करते हैं वहीं दूसरी तरफ पहले ही खतरे की सीमा पर जा चुके पर्यावरण प्रदूषण को कई गुना बढ़ावा देते हैं जो प्रदूषण स्तर 200 से 300 पीपीएम में रहता है दीपावली के दौरान 900 से 1000 पीपीएम तक हो जाता है जो कि बड़ा घातक किस तरह यही कारण है कि खासतौर से राजधानी नई दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों में सुप्रीम कोर्ट को भी चेतावनी रहती है। किस हद तक पटाखों का उपयोग नहीं होना चाहिए जो हवा में प्रदूषण की मात्रा को बढ़ा देते हैं यह चेतावनी दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि कॉविड 19 के बाद लोगों में श्वसन संबंधी समस्याओं की वृद्धि हुई है जिससे स्वतंत्र काफी कमजोर हो चुका है इस तरह की आतिशबाजी से हम बीमारी और ग्रसित हो जाएंगे।
प्रकाश का पर्व दीपावली अब बिजली की भाति भाति झालरों के पीछे छुप जा चुका है घरों में अनावश्यक तरीके से सजावट के नाम पर रंग-बिरंगी झाल से सजाई जाती है कुछ देर की भव्यता भविष्य के अंधेरे को आमंत्रित करती है जिस तरह से दीपावली और उससे जुड़े चार-पांच दिनों की सीमा में अधिक ऊर्जा की खपत की जाती है वह कहीं से भी जनहित में नहीं बल्कि त्यौहार के विपरीत है एक नजर में देखें तो 2019 में दीपावली के समय एक दशमलव 2400000 मेगावाट और वर्ष 2020 में 4000000 मेगावाट बिजली का उपयोग किया गया यह भी समझ ले कि हमारे देश में बिजली का सबसे बड़ा स्रोत कोयला है तो इस तरह से देखा जा सकता है कि अत्यंत मात्रा में बिजली का उपयोग कर हम कोयले की खपत को बढ़ा रहे हैं जो सीधा पर्यावरण पर असर डालता है इससे हम अपने घरों को आज सजा लेते हैं लेकिन उस अंधेरे को नहीं समझ पा रहे हैं जो इसके बाद उत्पन्न होता है पर्यावरण प्रदूषण व बिजली के अति उपयोग के परिणाम स्वरूप उत्पन्न अंधकार हमारे जीवन में घर-घर जाता है इस प्रकार बढ़ती मांग देश और राज्य को अनावश्यक भार पढ़ा देती है।
पटाखों का चलन 1946 के बाद तीव्र हुआ और उसके पीछे बहुत बड़ा कारण था व्यापार दूसरी तरफ यह भी देखने को आया कि शिवकाशी जहां सबसे ज्यादा पटाखे बनते हैं और जहां से पटाखों का बाजार चलता है वहां इसे बनाने वाले गरीब लोगों में से 15 से 40 लोग हर वर्ष अपना जीवन खो देते हैं और इसी तरह करीब 80 से 330 सौ लोग यहां किसी न किसी तरह गंभीर बीमारी है संकट से गुजरते हैं या बीमारी पटाखों के में प्रयोग होने वाले बारूद के संपर्क में रहने के कारण होती हैं ।ऐसे में पटाखों का अनावश्यक मांग न सिर्फ पर्यावरण बल्कि पटाखे बनाने वाले कारीगरों के जनों को भी खतरे में डाल देता है।
हमें दीपावली का सही मतलब को समझते हुए पर्यावरण अनुकूल दीपावली की तरफ रुख करना चाहिए ।इसका सीधा अर्थ है इस बात से है कि दीपावली में हमारी तमाम गतिविधियां किसी तरह के दुष्परिणामों की परिणति ना बने उदाहरण के लिए अगर दीपावली में हम बिजली कम खर्च करेंगे और उसके बदले में मिट्टी के दीपक जलाएंगे तो इससे कुमारों की आजीविका मिलेगी ऐसे दीपक अनियंत्रित भी काम आ जाते हैं इस प्रकार पर्यावरण मित्र दीपावली में दीपों की जगमगाहट अलग तरह का स्थायित्व की अनुभूति देती है यही भगवान राम के आगमन और नमन का सही बात है पर्यावरण के अनुकूल मानकों पर धमाका और प्रकाश करने वाले ग्रीन पटाखे भी बाजार में उपलब्ध है उनका प्रयोग करें।
ऐसे पटाखों का कोई सीधा दुष्प्रभाव पर्यावरण पर नहीं पड़ता है और आज की सबसे बड़ी आवश्यकता भी है इसे समझते हुए खासतौर से दीपावली के दुष्परिणामों से बचने के लिए हमें ग्रीन दीपावली की तरफ जाना चाहिए देश और दुनिया में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है साथ ही संसाधनों का भार बढ़ रहा है दीपावली या कोई अन्य त्योहार हमें पर्यावरण प्रेमी के स्थाई भाव से मनाना चाहिए क्योंकि इससे हम जहां एक तरफ त्यौहार का बेहतर अर्थ समझेंगे और समझाएंगे ,वहीं दूसरी तरफ अपना भविष्य भी सुरक्षित कर पाएंगे।