उत्तर प्रदेश में अभी चुनाव इतने सन्निकट नहीं हैं कि इतने वेग और तीव्रता से राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता मुखर की जाये जिसमें इतना भी होश न रहे कि हमारी प्रतिक्रिया हमारे लिए ही आत्मघाती सिद्ध हो। हाल के दिनों में बसपा द्वारा दयाशंकर सिंह के विरुद्ध आक्रामकता ने इतना विकृत रूप धारण कर लिया कि दयाशंकर के शब्द गौण हो गये और बसपा प्रमुख के बयान निकृष्ट राजनीति की चरम सीमा तक पहुँच गये। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं और गलत व्यक्ति भले ही अपनी सफाई देता रहे किन्तु जनता की जागरूक दृष्टि उसकी औकात बता देती है। दयाशंकर सिंह ने जो कुछ भी कहा उसके लिए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वतः क्षमा माँगी, उन्हें पार्टी ने भी दण्डस्वरूप निष्कासित किया, कानून भी सम्भवतः अपने कर्तव्य से इतर कार्य नहीं करेगा किन्तु प्रतिक्रिया स्वरूप जो कदम बसपा नेताओं द्वारा अश्लील कथनों के रूप में सार्वजनिक चुनौती की भाँति प्रस्तुत किया गया वह समाज के किसी भी वर्ग के लिए स्वीकार्य नहीं है। भाजपा नेतृत्व ने अपने चिरकालीन सिद्धान्तों का अनुपालन करते हुए अपने एक प्रभावी सांसद को निष्कासित करने में विलम्ब नहीं किया किन्तु उससे भी जघन्य अपराध बसपा प्रमुख द्वारा किया गया और उस पर उन्हें जरा भी खेद नहीं है। स्वयं पर किये गये आक्षेप को समग्र दलित समाज से जोड़ना उनकी ओछी मानसिकता का प्रतीक है। जिस घटना का प्रारम्भ ही गलत हो उसका समापन कभी मंगलकारी नहीं हो सकता है।
राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता में व्यक्तिगत आक्षेप लगाना तो सामान्य बात हो ही गयी है किन्तु अब तो उससे भी निकृष्ट स्तर पर गिरकर परिवार को भी शामिल किया जाने लगा है यह लोकतन्त्र के गिरते स्तर का स्मारक बन रहा है। राष्ट्रीय पार्टी की श्रेणी में बैठी बसपा के नायकों के मुँह से ऐसे अपशब्दों की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। एक ओर जहाँ सम्पूर्ण विश्व में नारी सशक्तीकरण की चर्चा की जा रही है तो वहीं भारत जैसे देश में, जहाँ ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का मन्त्रोच्चार किया जाता है, नारी की पूजा की जाती है, वहाँ नारी के प्रति एक सुशिक्षित नारी द्वारा ऐसे अश्लील आह्वान करना या करवाना विडम्बना की बात है। जब एक नारी ही नारी का शीलभंग करने के लिए तत्पर है वह प्रशासक के रूप में क्या नारी को यथोचित सम्मान दिला पायेगी? स्वाति सिंह की पीड़ा आज देश का प्रत्येक नागरिक अनुभव कर रहा है। उनकी 12 वर्षीय पुत्री बसपाइयों के आतंक से अभी तक उबर नहीं पाई है। क्या हमारे देश की कोई नारी सुश्री मायावती की इस उद्दण्डता को स्वीकार करेगी? मात्र राजनीतिक लाभ के दृष्टिकोण से उन्होंने व्यक्तिगत कटाक्ष को सम्पूर्ण दलित समाज से जोड़ दिया, नसीमुद्दीन साहब ने अपनी स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने का भोंडा प्रयास किया और स्वयं को देवी कहने वाली बहन मायावती ने देवत्व का प्रदर्शन करते हुए बयान दिया कि यह गाली केवल गाली का अनुभव कराने के लिए दी गयी। एक अपराध का प्रत्युत्तर यदि दूसरा अपराध है तो क्या इससे सामाजिक समरसता की कल्पना की जा सकती है। मायावती जी ने न केवल समग्र नारी जाति का अपमान किया बल्कि महिलाओं की प्रतिष्ठा को भी लांछित करने का अशिष्ट प्रयास किया है और महिला समाज के अन्तर्गत केवल कुलीन वर्ग की महिलाएँ ही नहीं आती हैं बल्कि इसमें दलित, मुस्लिम, सिख, ईसाई तथा अन्य धर्मों की महिलाएँ भी आती हैं। दयाशंकर सिंह ने तो व्यक्तिगत आक्षेप किया था किन्तु बसपा प्रमुख ने सम्पूर्ण देश की नारी जाति का अपमान कर डाला। इसके पक्ष में बोलना केवल अपनी झेंप मिटाना हो सकता है किन्तु यदि उन्होंने अपने इस कृत्य के लिए भारत की नारियों से क्षमा याचना नहीं की तो उन्हें इस अपराध बोध को लेकर ही जीना होगा।
Yes.yh drasticon shi he.loksahi me aisa nhi hota.netao ko kanun ki mryada ka dhyan rakhker hi bolna chahiye.kyoki hmara desh shabhy sanskruti ka desh he.