किसान आन्दोलन : भटकाव की ओर

नरेन्द्र मोदी की भाजपा नीत सरकार ने देश में किसानों की समस्या को गहराई से परखने के बाद अनुभव किया कि हमारे देश के अन्नदाता जो अपने कठिन परिश्रम से पूरे देश को अन्न प्रदान करते हैं उन्हें अपने परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। सरकार ने अनुभव किया कि किसानों की आय में दोगुनी वृद्धि करनी आवश्यक है ताकि वे देश में सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें। पूर्व की सरकारों ने किसानों की स्थिति पर न तो यथोचित ध्यान दिया और न ही उनके विषय में गम्भीर रही। कांग्रेस के शासन काल के दौरान एक स्थिति ऐसी भी आई जब किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की समाप्ति पर भी विचार किया गया था जिसके लिए भारत सरकार पर संयुक्त राष्ट्र का दबाव था।

किन्तु वर्तमान सरकार ने देश के किसानों की आय दोगुनी करने पर गहन मंत्रणा के पश्चात उनके लिए तीन नये कानूनों का प्रवर्तन किया। ये कानून (i) कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020; (ii) कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020; और (iii) आवश्‍यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 थे। इन अधिनियमों में किसानों को पूरी स्वतन्त्रता दी गयी कि वे अपनी उपज केवल मंडी में ही बेचने तक बाध्य न रहें बल्कि वे अपनी उपज किसी भी ऐसे प्रोसेसर या व्यापारी को बेच सकें जो उन्हें उनकी उपज का लाभकारी मूल्य प्रदान कर सके। वे किसी भी व्यापारी के साथ करार करके परस्पर सहमति के आधार पर एक निर्धारित कीमत पर अपनी भावी उपज का विक्रय कर सकते हैं। इस करार में एक प्रकार से सम्पूर्ण शक्ति किसानों के हाथों में दी गयी है।

अब विपक्ष ने किसानों में यह भ्रम फैलाना प्रारम्भ कर दिया है कि इस अधिनियम से किसानों की भूमि पर व्यापारी का अधिकार हो जायेगा। किसानों की एमएसपी बंद हो जायेगी। किसान लुट जाएगा। सरकार ने इस करार अधिनियम में किसानों की सुविधा के लिए किसी विवाद के निपटान के लिए निकटवर्ती एसडीएम के समक्ष मामला ले जाने की सुविधा प्रदान की ताकि किसानों को अनावश्यक रूप से न्यायालयों की लम्बी और दुरूह प्रक्रिया से न गुजरना पड़े। इसमें अफवाह फैला दी गयी कि एसडीएम सरकारी कर्मचारी होता है और वह सरकार के दबाव में कॉर्पोरेट के पक्ष में फैसला देगा।

यद्यपि सरकार ने किसानों से भी सुझाव मांगा कि यदि उन्हें इस अधिनियम में कहीं भी कोई ऐसी बात दिखाई दी जिससे उनकी हानि होने की संभावना हो उसे प्रस्तुत करें, सरकार उस पर विचार करने के लिए तैयार है। सरकार ने एमएसपी से छेड़छाड़ न होने, विवाद की स्थिति में न्यायालय में जाने और किसी भी स्थिति में किसी भी प्रावधान के तहत किसानों की भूमि पर कब्जा न होने देने का लिखित में आश्वासन देने के लिए सहमति भी व्यक्त कर दी, लेकिन अब एक दुराग्रही तंत्र सक्रिय हो गया है। कोई भी यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि इन अधिनियमों में किसानों का अहित करने वाला प्रावधान कौन-सा है?

आश्चर्य तो तब होता है जब शाहीन बाग के आन्दोलनकारी भी उनके बीच में बैठे दिखाई देते हैं। इससे अनेक अनकहे रहस्यों पर कुछ न कुछ प्रकाश पड़ता दिखाई देता है। इस आग में घी डालने के लिए भाजपा के सुशासन से भयभीत देश के सभी प्रमुख दल उसी प्रकार एकजुट दिखाई दे रहे हैं जैसे सीएए के विरुद्ध वे एक जुट हो गए थे। सीएए के प्रावधानों में भी वे नागरिकता समाप्त करने के प्रावधान का कोई अंश स्पष्ट नहीं कर पाए थे। लेकिन देश में अस्थिरता पैदा करने का षडयंत्र निरंतर उनके मस्तिष्क में घूमता रहता है। इसी प्रकार का बवाल हाथरस कांड पर भी इन्हीं कुत्सित विचार के पोषकों ने किया था।

सरकार खुले मन से किसानों की शंकाएं दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है, किन्तु यदि मंशा ही कुछ और हो तो इस समस्या के समाधान के प्रति कोई आशा करना व्यर्थ ही होगा। पुरस्कार वापसी गैंग एक बार पुन: सक्रिय हो चुका है। देश की समस्याओं को विदेशों तक खींचकर ले जाने वाले लोगों की क्या मंशा हो सकती है, यह विचारणीय विषय है। इन अधिनियमों से निश्चित रूप से बिचौलियों की भूमिका खत्म होने वाली है और सामान्य किसान को इससे निस्संदेह लाभ होने वाला है। यदि बिचौलियों का समर्थन आम किसानों की अनदेखी इस आन्दोलन का लक्ष्य है तो यह गम्भीर चिन्ता का विषय है। इन अधिनियमों से केवल उन्हें परेशानी हो सकती है जो कमीशन एजेंट और बिचौलिए हैं तथा जिनका मंडियों पर एकाधिकार है। सरकार का दृष्टिकोण व्यापक है। वह कुछ खास विचारधारा के लोगों द्वारा उकसाये जाने वाले किसानों की शंका का समाधान करने के लिए उत्सुक है। भारतीय किसानों को भी हठधर्मिता का त्याग करके देश की प्रगति में सहयोग करने पर ध्यान होगा।

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